वडोदरा (ईएमएस)| राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने किसानों को संबोधित करते हुए स्पष्ट कहा कि रासायनिक खेती केवल भूमि को बंजर नहीं बनाती, बल्कि मानव जीवन में कैंसर और अन्य गंभीर बीमारियों का भयावह विस्फोट भी उत्पन्न कर चुकी है। उन्होंने किसानों को विश्वास दिलाया कि देशी गाय आधारित प्राकृतिक खेती अपनाने से उत्पादन घटता नहीं, बल्कि बढ़ता है। यह पद्धति पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों के लिए संजीवनी समान है। वडोदरा जिले के वांकानेर में आयोजित “प्राकृतिक कृषि सम्मेलन” में राज्यपाल ने गुजरात में हो रहे लगभग 9 लाख सफल प्राकृतिक खेती के प्रयासों की सराहना की और किसानों से बिना डर इस मार्ग को अपनाने का अनुरोध किया। किसानों से सीधे संवाद की नई पहल राज्यपाल ने गुजरात के किसान समुदाय के साथ सीधा और गहन संवाद स्थापित करने की नई पहल की घोषणा की। उन्होंने बताया कि पिछले पाँच वर्षों में सभी जिलों की यात्रा के बाद अब दूसरा चरण शुरू हुआ है, जिसमें वे गुजरात के हर तालुका तक पहुँचकर खेतों में किसानों से सीधे संवाद कर रहे हैं। उन्होंने यह नियम बनाया है कि जिस गाँव में वे जाएँगे, वहाँ पंचायत भवन या विद्यालय में रात्रि प्रवास करेंगे, गाँव वालों के साथ रात्रि सभा आयोजित करेंगे, अनुसूचित जाति परिवारों के साथ भोजन करेंगे और अगले दिन सुबह गाय का दूध स्वयं दुहेंगे, ताकि किसानों को महसूस हो कि वे स्वयं भी एक किसान हैं। राज्यपाल ने बताया कि वे हरियाणा के कुरुक्षेत्र स्थित गुरुकुल के संचालक हैं, जहाँ 200 एकड़ भूमि और 400 गायें हैं। पिछले 9 वर्षों से वे पूरी तरह प्राकृतिक खेती कर रहे हैं, बिना यूरिया, डीएपी या किसी कीटनाशक के। उन्होंने कहा कि इस पद्धति से उनकी उत्पादन क्षमता पहले से अधिक बढ़ी है, जो इसकी सफलता का जीवंत प्रमाण है। रासायनिक खेती के दुष्परिणाम राज्यपाल ने चेतावनी दी कि रासायनिक खेती करने वाले किसानों की जमीनें बंजर हो चुकी हैं। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, जिस भूमि का ऑर्गेनिक कार्बन (OC) 0.5 से नीचे हो, वह बंजर मानी जाती है। गुजरात में रासायनिक खेती करने वाले अधिकांश खेतों का ऑर्गेनिक कार्बन 0.2, 0.3 या 0.4 तक घट गया है। ऐसी जमीन से जबरदस्ती पैदावार लेने के लिए किसानों को हर साल अधिक मात्रा में यूरिया, डीएपी और अन्य रासायनिक खादों का उपयोग करना पड़ता है। इन रसायनों ने धरती की उर्वरता बढ़ाने वाले सूक्ष्म जीवाणु, अळसिया (केंचुए) और मित्र कीटों को नष्ट कर दिया है। रासायनिक दवाएँ इतनी विषैली हैं कि साँप जैसे जीवों को भी मार देती हैं, तो फिर मिट्टी में रहने वाले सूक्ष्मजीव कैसे बच सकते हैं? संयुक्त राष्ट्र (UNO) की रिपोर्ट के अनुसार, रासायनिक खेती के कारण विश्वभर में भूमि की उत्पादकता 10% घट चुकी है, और यदि यह प्रवृत्ति जारी रही तो स्थिति और भी भयावह होगी। गुजरात में बढ़ते कैंसर के मामले राज्यपाल ने 7 नवम्बर को राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस के रूप में उल्लेख करते हुए गुजरात में कैंसर के बढ़ते मामलों पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने बताया कि गुजरात प्रदेश कैंसर सोसाइटी के अध्यक्ष के रूप में उनके पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, राज्य में प्रतिदिन लगभग 790 नए कैंसर मरीज सामने आ रहे हैं। साल 2020 में गुजरात में 70,000 कैंसर मरीज थे, जो पाँच वर्षों में बढ़कर प्रति वर्ष 1.5 लाख नए मरीजों तक पहुँच गए हैं — यानी मरीजों की संख्या दोगुनी हो गई है। प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (आयुष्मान भारत) के अंतर्गत पिछले एक वर्ष में ही 2.88 लाख कैंसर मरीजों का उपचार किया गया। उन्होंने किसानों से अपील की कि वे ऐसी खेती न करें जो लोगों के जीवन के लिए खतरा बने, जैसे तमाकू की खेती, जो कैंसर जैसी घातक बीमारियाँ उत्पन्न करती है। राज्यपाल ने चेतावनी दी कि संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, यदि भारत में रासायनिक खेती और वर्तमान जीवनशैली जारी रही, तो अगले 7-8 वर्षों में कैंसर का भयंकर विस्फोट होगा। प्राकृतिक खेती से उत्पादन बढ़ता है, घटता नहीं राज्यपाल ने किसानों की उस भ्रांति को दूर किया कि प्राकृतिक खेती से उत्पादन घटता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि कोई जैविक (ऑर्गेनिक) खेती करता है तो उत्पादन कुछ घट सकता है, लेकिन प्राकृतिक खेती (Natural Farming) करने से उत्पादन घटता नहीं, बल्कि बढ़ता है। उन्होंने सभा में उपस्थित प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों के हाथ उठवाकर सिद्ध किया कि उनके खेतों की मिट्टी का ऑर्गेनिक कार्बन (OC) 1 या उससे अधिक है और उनकी भूमि अब जंगल जैसी उर्वर बन चुकी है। राज्यपाल ने कहा कि प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों को असमय वर्षा से रासायनिक खेती करने वालों की तुलना में बहुत कम नुकसान होता है, क्योंकि उनके खेतों में रहने वाले केंचुए मिट्टी में छिद्र (pores) बनाते हैं, जिससे मिट्टी की जल धारण क्षमता बढ़ जाती है। जबकि रासायनिक खेती वाली भूमि पानी सोख नहीं पाती और पानी भर जाने से फसल नष्ट हो जाती है। पर्यावरण प्रदूषण और बेमौसमी बारिश के लिए जिम्मेदार रासायनिक खेती राज्यपाल ने कहा कि जब खेतों में यूरिया और डीएपी का छिड़काव किया जाता है, तो इनमें मौजूद नाइट्रोजन जब वातावरण के ऑक्सीजन से मिलती है, तो नाइट्रस ऑक्साइड गैस बनती है। यह गैस कार्बन डाइऑक्साइड से 312 गुना अधिक हानिकारक है और यह पर्यावरण को प्रदूषित कर बेमौसमी वर्षा जैसी आपदाओं में योगदान देती है। उन्होंने किसानों से कृषि कल्याण और पशुपालन से जुड़ी योजनाओं का लाभ उठाने की अपील की। सतीश/08 नवंबर