राज्य
08-Nov-2025
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* गांधीनगर के चंद्राला गांव के किसान ने आधुनिक तकनीक और सरकारी योजनाओं के सहारे खेती को बनाया समृद्धि का माध्यम गांधीनगर (ईएमएस)| ऐसा कहा जाता है कि, “जो किसान तकनीक का हाथ थामता है, वह केवल फसल नहीं उगाता, बल्कि समृद्धि का भविष्य बोता है।” इस बात को गांधीनगर जिले के चंद्राला गांव के किसान अमृत पटेल ने सच कर दिखाया है। अमृत पटेल ने पारंपरिक खेती की सीमाओं को तोड़कर और बागायती खेती की नई दिशाओं को अपनाकर आज अनेक किसानों के लिए प्रेरणास्रोत बन गए हैं। पारंपरिक खेती से बागायती खेती की ओर उनकी यह यात्रा केवल आमदनी बढ़ाने की नहीं, बल्कि आधुनिक कृषि की दिशा में एक प्रेरणादायक परिवर्तन था। लगभग 7 हेक्टेयर भूमि के मालिक अमृत पटेल ने कई वर्षों तक कड़ी मेहनत के बावजूद आय की अनिश्चितता और पारंपरिक खेती की सीमाओं में खुद को बंधा पाया। वर्ष 2019 से पहले वे अन्य किसानों की तरह सब्जियों की पारंपरिक खेती करते थे। रोज़ की मेहनत, बाजार भाव की अस्थिरता और फसल खराब होने का डर उनके लिए आम बात थी। इन परिस्थितियों में कभी-कभी उनकी आंखों में सपने तो होते थे, पर हाथों में मेहनत के साथ निराशा भी झलकती थी। अमृत पटेल मन ही मन जानते थे कि कुछ बदलने की ज़रूरत है — खेती को केवल पेट पालने का साधन नहीं, बल्कि समृद्धि का माध्यम बनाना आवश्यक है। उन्हें बागायती फसलों में पहले से ही गहरी रुचि थी। वर्ष 2019 में उन्हें गुजरात सरकार की विभिन्न बागायती कृषि योजनाओं की जानकारी मिली। बस, यहीं से उन्होंने ठान लिया कि अब वे सब्जियों और पारंपरिक खेती की बजाय फलों और बागायती फसलों पर ध्यान केंद्रित करेंगे। उन्होंने बागायती विभाग का सहयोग लिया और सरकारी योजनाओं की मदद से आधुनिक खेती की ओर कदम बढ़ाया। सरकारी सहायता ने उनके लिए एक ऐसा सुरक्षा कवच बनाया, जिसके सहारे वे नई तकनीकें और पद्धतियाँ अपना सके। वर्ष 2019-20 से उन्होंने अपनी पूरी 7 हेक्टेयर भूमि पर बागायती खेती शुरू कर दी। शुरुआती तीन वर्षों में उन्होंने जामफल (गुवा), तरबूज और सक्कर टेटी (मस्कमेलन) जैसी फसलों की खेती की। बागायती विभाग से उन्हें पौधारोपण, जल-घुलनशील उर्वरक, मल्चिंग शीट और पैकिंग सामग्री जैसी अनेक सहायताएँ प्राप्त हुईं। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ा — जो केवल पैसों से नहीं, बल्कि सम्मान से भी मापा जा सकता है। आज अमृत पटेल अपनी 7 हेक्टेयर भूमि पर जामफल और नींबू सहित कई बागायती फसलों की सफल खेती कर रहे हैं। फलों की पैकिंग के लिए उन्हें प्रति हेक्टेयर लगभग रु. 7,500 की सरकारी सहायता भी मिली है। इस सहायता से वे आकर्षक और सुरक्षित पैकिंग करके अहमदाबाद और गांधीनगर के विभिन्न बाजारों में अपने फलों का विपणन करते हैं, जिससे उन्हें सम्मानजनक आय प्राप्त होती है। बागायती खेती शुरू करने के पहले तीन वर्षों में ही उन्होंने रु. 42 लाख की कुल आय में से लगभग 64% यानी रु. 27 लाख का शुद्ध लाभ अर्जित किया। वर्ष 2024-25 में भी उन्होंने जामफल और नींबू की खेती से रु. 18 लाख की वार्षिक आय और खर्च घटाने के बाद रु. 9 लाख का शुद्ध लाभ प्राप्त किया। ये आंकड़े स्पष्ट दर्शाते हैं कि बागायती खेती अपनाने से उनकी आय में निरंतर और उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो पारंपरिक खेती से कई गुना अधिक है। अमृतभाई राज्य के किसानों को संदेश देते हुए कहते हैं —“परिवर्तन ही धरती का दूसरा नाम है। उसे स्वीकारो, सीखो और आगे बढ़ते रहो। ज्ञान, सरकारी सहायता और तकनीक के सही उपयोग से खेती को केवल जीविका का साधन नहीं, बल्कि सम्मानजनक समृद्धि का माध्यम बनाया जा सकता है।” बागायती खेती में सफल परिवर्तन से अमृतभाई के जीवन में न केवल आय में वृद्धि हुई है, बल्कि उन्हें सामाजिक सम्मान भी मिला है। आज उनकी गिनती प्रगतिशील किसानों में होती है। उनकी जामफल की खेती अन्य किसानों के लिए स्पष्ट मार्गदर्शन और प्रेरणा का स्रोत बन चुकी है। सतीश/08 नवंबर