रिवाइज्ड शेड्यूल एम के तहत होगी जांच, एमएसएमई यूनिट्स के लिए भी अब नहीं बचेगी कोई ढील नई दिल्ली (ईएमएस)। भारत की दवा निर्माण इकाइयों के लिए मुश्किलें बढ़ने वाली हैं। सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (सीडीएससीओ) ने सभी राज्य दवा नियंत्रकों को आदेश दिया है कि वे जल्द से जल्द दवा निर्माण इकाइयों की जांच शुरू करें। ये जांच देश के गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस (जीएमपी) गाइडलाइंस यानी रिवाइज्ड शेड्यूल एम के तहत की जाएगी। यह कदम भारत की दवा निर्माण प्रणाली को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप लाने की दिशा में उठाया गया है। 7 नवंबर को ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) एक पत्र जारी कर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के ड्रग कंट्रोलर्स से कहा गया है कि हर महीने रिपोर्ट भेजें, जिसमें बताया जाए कि कितनी यूनिट्स की जांच की गई, क्या खामियां मिलीं और उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की गई। रिवाइज्ड शेड्यूल एम दिसंबर 2023 में लागू किया गया था। बड़े फार्मा प्लेयर्स के लिए यह नियम 1 जनवरी 2025 से अनिवार्य हो जाएंगे, जबकि एमएसएमई कंपनियों को 31 दिसंबर 2025 तक का समय दिया गया था। देश में करीब 10,500 दवा निर्माण इकाइयां हैं, जिनमें से लगभग 8,500 एमएसएमई कैटेगरी में आती हैं। लेकिन कई छोटी यूनिट्स ने न तो एक्सटेंशन मांगा और न ही अपग्रेडेशन प्लान जमा किया। हाल के वर्षों में जहरीली दवाओं से हुई बच्चों की मौतों ने दवा क्वालिटी पर गंभीर सवाल उठाए हैं। मध्य प्रदेश में कफ सिरप से 24 बच्चों की मौत के बाद यह सख्ती बढ़ी है। अब सीडीएससीओ का स्पष्ट संदेश है कि क्वालिटी पर कोई समझौता नहीं होगा। जांचें तेज की जाएंगी और नियमों का उल्लंघन करने वाली यूनिट्स पर सख्त कार्रवाई होगी। इससे उम्मीद है कि भारत की दवा उद्योग में गुणवत्ता और पारदर्शिता का नया मानक स्थापित होगा। सतीश मोरे/09नवंबर