लेख
14-Nov-2025
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सरकार की नजर अब देश के सबसे बड़े सुरक्षित कोषों में से एक पेंशन फंड पर है। वित्त मंत्रालय 10 लाख करोड़ रुपये के पेंशन फंड पर नजर लगाए हुए है। दरअसल सरकार पेंशन फंड को नई योजनाओं या बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में लगाने पर विचार कर रही है। यह फैसला सरकार के आर्थिक संसाधनों के लिए नया खजाना खोल सकता है। वहीं कर्मचारियों का भविष्य, जोखिम और चिंता का कारण बनने लगा है। दरअसल, पेंशन फंड का पैसा लाखों सरकारी और निजी कर्मचारियों की कई दशकों की बचत है, जिसे वह बुढ़ापे की आर्थिक सुरक्षा के रूप में देखते हैं। कुछ वर्ष पूर्व पेंशन फंड का एक हिस्सा बाजार में लगा दिया गया। सरकार ने शेयर बाजार को पैसा उपलब्ध कराने के लिए पेंशन फंड के सीमित निवेश को शेयर बाजार में लगाया हुआ है। अब पूरे पेंशन फंड को सरकार जोखिम में डालने जा रही है। इस कारण कर्मचारी संगठन उद्देलित हो रहे हैं। कर्मचारी पेंशन फंड के कोष का उपयोग अगर सरकार अपने विकास प्रोजेक्ट्स या कर्ज चुकाने के लिए करती है, तो ऐसी स्थिति में सरकार अपने कर्मचारियों के उस भरोसे पर चोट करेगी, जो कर्मचारी इस फंड और सरकार पर पेंशन को लेकर विश्वास करते हैं। पेंशन कर्मचारियों के बुढ़ापे का सबसे बड़ा सहारा होता है। वह स्वयं और अपने परिवार का पेंशन के जरिए गुजारा करता है। पेंशन फंड का निवेश जोखिम-मुक्त निवेश के रूप में होना चाहिए ताकि वह पेंशनधारी को स्थिर रिटर्न कर्मचारियों को देना होता है। कर्मचारी की बचत का उपयोग सरकार अपनी वित्तीय कमी और घाटे को पूरा करने के लिए नहीं कर सकती है। वित्तीय विशेषज्ञों का कहना है, अगर सरकार इस राशि को इंफ्रास्ट्रक्चर या लंबी अवधि के निवेश में लगाना चाहती है तो सरकार को गारंटीड रिटर्न देना होगा। आर्थिक विशेषज्ञों का यह भी कहना है, कि जब इंदिरा गांधी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था, तब बैंकों के पास जमा धन को सरकार ने बांड के जरिए रिजर्व बैंक के माध्यम से उधार लिया था। बैंकों में जमा राशि पर सरकार निश्चित दर से ब्याज देती थी, जिस कारण बैंकों के राष्ट्रीयकरण का उद्देश्य पूरा हुआ। पंचवर्षीय योजनाओं के लिए सरकार को बैंकों के माध्यम से बांड के रूप में एक बहुत बड़ी राशि उपलब्ध हुई। वहीं जिन लोगों ने अपनी छोटी-छोटी सी बचत भी बैंकों में जमा की थी। उन्हें ब्याज के रूप में भारी रिटर्न मिला, लोगों का विश्वास बैंकों पर बढ़ा। राष्ट्रीयकरण के बाद केंद्र सरकार को भारी मात्रा में जनता से धन प्राप्त हुआ। कुछ ही वर्षों में सरकार ने कृषि के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त की। वही पंचवर्षीय योजनाओं के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को धन उपलब्ध हुआ। सरकार यदि पेंशन फंड का इस्तेमाल सरकारी योजनाओं के लिए करना चाहती है तो उसकी गारंटी भी सरकार को लेनी होगी और एक निश्चित रिटर्न पेंशन होल्डर को समय-समय पर भुगतान करना होगा। पेंशन फंड को बाजार के हवाले नहीं किया जा सकता है। वह भी उसे बाजार का जिसका कोई धनी-धोरी ना हो। बाजार की अस्थिरता के चलते फंड की सुरक्षा और रिटर्न दोनों खतरे में पड़ सकते हैं। बुढ़ापे में पेंशन पाने वाले कर्मचारी इस तरह का जोखिम ना तो उठा सकते हैं ना ही सरकार को उन्हें इस जोखिम में डालना चाहिए। सरकार का तर्क यह है, अगर यह पैसा उत्पादक क्षेत्रों में लगाया गया, तो इससे अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा और इसका लाभ पेंशनधारकों को मिलेगा। सवाल यह उठता है, क्या सरकार की आर्थिक नीतियां स्थिर और पारदर्शी हैं? शेयर बाजार और वित्तीय संस्थाओं का निवेश क्या सुरक्षित है? वर्तमान स्थिति में सभी जगह आर्थिक व्यवस्था डंवाडोल है। सभी वित्तीय संस्थाएं ऑक्सीजन पर चल रही हैं। जिस बाजार पर केंद्र सरकार भरोसा कर रही, वह कभी भी ढहने के लिए तैयार है। शेयर बाजार और वित्तीय संस्थानों में जिस तरह के घपले और घोटाले हो रहे हैं, उसमें कर्मचारियों की आजीवन बचत और भविष्य को दांव पर लगाया जा सकता है? पिछले कुछ वर्षों में कई सरकारी कंपनियों और बैंकों के घाटे का बोझ आम जनता उठा रही है। बैंकों की सेवाएं लगातार महंगी होती जा रही हैं। ब्याजदर लगातार कम हो रही है। बैंक में जमा राशि के ब्याज से लोगों का खर्च नहीं चल पा रहा है। पेंशन फंड पर भी सरकार ने यदि यही रास्ता अपनाया, तो आने वाले समय में लाखों पेंशनधारकों की आर्थिक स्थिति डगमगा जाएगी। बुढ़ापे में वह और उनके परिवार 2 जून की रोटी और अपने इलाज के लिए मोहताज हो सकते हैं। यह रिस्क सरकार को नहीं लेनी चाहिए। सरकार को चाहिए कि वह पेंशन फंड का उपयोग केवल सुरक्षित, पारदर्शी और निश्चित रिटर्न सुनिश्चित करने वाले साधनों में निवेश करे। इस फंड को राजनीतिक या राजकोषीय संकट से निपटने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। सरकार को अपने ही कर्मचारी जो पेंशन पर आधारित है उनके भविष्य के साथ कोई खिलवाड़ ना हो इसका ध्यान रखने की जिम्मेदारी संवैधानिक रूप से सरकार की है। 10 लाख करोड़ रुपये का पेंशन फंड केवल वित्तीय आंकड़ा नहीं है। यह करोड़ों परिवारों के भविष्य की उम्मीद और जीवन जीने की गारंटी है। सरकार को यह याद रखना होगा, विकास योजनाएं तभी सार्थक होंगी। जब नागरिकों की आर्थिक सुरक्षा उससे प्रभावित न हो। विकास योजना तभी सार्थक होगी, जब वह नागरिकों के लिए बेहतर साबित होंगी। इस समय केंद्र सरकार और राज्य सरकार भारी घाटे में है। ब्याज और किस्त के रूप में केंद्र एवं राज्य सरकारों को अपने बजट का 25 से 40 फ़ीसदी तक पैसा खर्च करना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति में कर्मचारियों की बचत पर सरकार को दांव लगाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। सरकार को यह बात समझनी होगी। वहीं कर्मचारी संगठनों को भी उनका भविष्य सुरक्षित रहे इस हेतु सजग रहने की जरूरत है। कर्मचारी संगठन यदि सजग नहीं रहे, ऐसी स्थिति में सरकार और भगवान ही मालिक होगा। ईएमएस / 14 नवम्बर 25