दक्षिण एशिया का भू-राजनीतिक परिदृश्य एक बार फिर आतंक की चपेट में है। हाल ही में पाकिस्तान में हुए आत्मघाती हमले में 12 लोगों की मौत ने पूरे क्षेत्र को दहला दिया है। यह सिर्फ एक आतंकी वारदात नहीं, बल्कि उस अस्थिरता का प्रतीक है जो पिछले कुछ वर्षों में पाकिस्तान की धरती पर पनपी है। जिस देश ने कभी आतंक को रणनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया, वही अब उसकी आग में जल रहा है। लेकिन भारत के लिए यह चेतावनी का घंटा भी है, क्योंकि पाकिस्तान की धरती से संचालित आतंकी संगठन भारत के खिलाफ भी सक्रिय हैं। यदि इस बार इन हमलों में पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों का हाथ पाया गया, तो भारत निश्चित रूप से जवाबी रुख अपनाएगा। पाकिस्तान को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चेतावनी भी समय समय पर दी कि जोकि तुम आतंकवाद के पनाहगाह बने है।एक दिन ये आतंकी संगठन तुमको ही रुलायेंगे।और पाकिस्तान में यही हो रहा है।आतंकी सरगना को एक एक कर मौत के घाट उतारने वाली घटना पूर्व में बनी है।लेकिन पाकिस्तान सुधरने वाला नही है।यह उसके जेहन में उतरता ही नही है।आतंकी फैक्टरियां पाकिस्तान में सक्रिय है।इस बार फिर से पाकिस्तान की धड़कने बढ़ गई है।उसने गुस्ताखी की होगी और आतंकी संगठनों की संलिप्तता होगी तो पाकिस्तान की हालत खराब होगी। *पाकिस्तान में बढ़ती आतंकी घटनाएँ* पिछले कुछ वर्षों में पाकिस्तान लगातार आतंकवादी हिंसा से जूझ रहा है। खैबर पख्तूनख्वा, बलूचिस्तान और यहां तक कि इस्लामाबाद जैसे संवेदनशील इलाकों में भी आत्मघाती हमलों की श्रृंखला बढ़ी है। पाकिस्तान तालिबान, इस्लामिक स्टेट-खुरासान, और लश्कर-ए-झंगवी जैसे संगठनों ने कई हमलों की जिम्मेदारी ली है। हालिया आत्मघाती हमले में 12 निर्दोष नागरिकों की मौत और दर्जनों के घायल होने से यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियां पूरी तरह नाकाम हैं। आतंकी अब सरकारी प्रतिष्ठानों, पुलिस थानों और सैन्य ठिकानों तक को निशाना बना रहे हैं। यह आतंकी लहर अब सिर्फ सीमित इलाकों में नहीं, बल्कि पूरे देश में फैल चुकी है। *आतंक का अपना जाल पाकिस्तान की सियासत का नतीजा* पाकिस्तान में आतंकवाद कोई नई समस्या नहीं है। यह उसी बीज का परिणाम है जिसे दशकों पहले रणनीतिक गहराई के नाम पर बोया गया था। 1980 के दशक में अफगान युद्ध के दौरान पाकिस्तान ने अमेरिकी सहायता से मुजाहिदीनों को पनाह दी। बाद में वही मुजाहिदीन तालिबान और अन्य आतंकी संगठनों में बदल गए।पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने इन आतंकियों को भारत विरोधी नीतियों में मोहरा बनाकर इस्तेमाल किया। जम्मू-कश्मीर में आतंकी गतिविधियाँ, मुंबई हमला (2008), पठानकोट, उरी, पुलवामा जैसे हमले इन्हीं नीतियों का परिणाम हैं। अब वही आतंक पाकिस्तान की सीमाओं के भीतर पलटवार कर रहा है। *पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और आतंक का गठजोड़* पाकिस्तान इस समय गहरी आर्थिक मंदी से गुजर रहा है। विदेशी कर्ज, महंगाई और बेरोजगारी ने जनता को त्रस्त कर रखा है। ऐसे हालात में आतंकवाद न केवल सुरक्षा के लिए बल्कि आर्थिक स्थिरता के लिए भी खतरा बन गया है। विदेशी निवेशक पाकिस्तान से दूर भाग रहे हैं। पर्यटन उद्योग ठप है। आतंकवादी गतिविधियों ने व्यापारिक गलियारों और परियोजनाओं, जैसे कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा को भी अस्थिर कर दिया है। चीन भी अब पाकिस्तानी सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठा रहा है क्योंकि उसके नागरिक भी आतंकी हमलों का शिकार हुए हैं। *भारत के लिए बढ़ता खतरा* पाकिस्तान में बढ़ती आतंकी गतिविधियाँ भारत के लिए भी चिंता का विषय हैं। भारत के सुरक्षा तंत्र को इस बात की जानकारी है कि पाकिस्तान की धरती पर सक्रिय संगठन जैसे लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, हिज्बुल मुजाहिदीन, और तहरीक-ए-तालिबान — फिर से regroup करने की कोशिश में हैं।इन संगठनों के इशारे पर भारत में भी आतंकी नेटवर्क सक्रिय हो सकते हैं।जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान और गुजरात जैसे सीमावर्ती राज्यों में इनकी घुसपैठ की कोशिशें पहले से चल रही हैं। सोशल मीडिया और क्रिप्टोकरेंसी के माध्यम से इन संगठनों की फंडिंग और भर्ती के नए रास्ते खुले हैं।हाल के वर्षों में एनआईए और एटीएस ने कई मॉड्यूल का पर्दाफाश किया है जो पाकिस्तानी हैंडलर्स से निर्देश ले रहे थे। इसलिए पाकिस्तान में हुई आतंकी घटनाएं भारत के लिए केवल एक पड़ोसी देश की समस्या नहीं, बल्कि अपनी सुरक्षा का पूर्व संकेत हैं। भारत का अब तक का जवाब सर्जिकल और एयर स्ट्राइक नीति रहा है।अगर पाकिस्तान आतंकी के इशारों पर दिल्ली में बम ब्लास्ट हुआ होगा तो पाकिस्तान की हालत बदतर होने वाली है।भारत उसे छोड़ेगा नही। भारत ने पिछले कुछ वर्षों में आतंक के खिलाफ नई नीति अपनाई है। 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक , 2019 की बालाकोट एयर स्ट्राइक और ऑपरेशन सिंदूर ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत अब आतंकी हमलों का जवाब सिर्फ कूटनीतिसे नहीं, बल्कि कार्रवाईसे देगा। अगर पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों का इस बार के हमले में भी हाथ पाया गया, तो भारत के लिए जवाबी कार्रवाई के विकल्प खुले हैं। भारत के रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि अब आतंक को सिर्फ सीमा पार रोकना पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसके स्रोत पर प्रहार जरूरी है।इसके साथ ही भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने की रणनीति भी अपनाई है। फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स में पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट’ में डालने में भारत की भूमिका निर्णायक रही। *आतंकी संगठनों का मकसद भारत-पाक तनाव को बढ़ाना* कई विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान के आतंकी संगठन जानबूझकर भारत के साथ तनाव बढ़ाना चाहते हैं। जब भी पाकिस्तान में राजनीतिक या आर्थिक संकट गहराता है, तब वहां के आतंकी समूह किसी बड़े हमले की साजिश रचते हैं ताकि जनता का ध्यान असली समस्याओं से हटाया जा सके। वर्तमान में पाकिस्तान की राजनीति अस्थिर है । चुनावी अनिश्चितता, सेना की बढ़ती भूमिका, और इमरान खान समर्थकों का विरोध प्रदर्शन। ऐसे माहौल में आतंकी गुटों को खुली छूट मिल जाती है। अगर भारत ने जवाबी कार्रवाई की, तो पाकिस्तानी सत्ता वर्ग इसे राष्ट्रीय एकता के नाम पर अपने पक्ष में भुना सकता है। इसीलिए भारत को संतुलित लेकिन दृढ़ रणनीति अपनानी होगी। *भारत की आंतरिक सुरक्षा खतरे की नई परतें* भारत में भी कुछ आतंकी मॉड्यूल और संगठन पाकिस्तानी इशारों पर सक्रिय पाए गए हैं। एनआईए और पुलिस ने कई बार स्लीपर सेल का भंडाफोड़ किया है। इन समूहों के सदस्य सोशल मीडिया के जरिये कट्टरपंथी विचारधाराओं से प्रभावित होकर भर्ती किए जा रहे हैं। कश्मीर घाटी में उभरते स्थानीय आतंकियों को सीमापार से हथियार और धन मिलता है। वहीं, बड़े शहरों में लोन वुल्फ हमलों का खतरा भी बना रहता है।इसके अलावा, रोहिंग्या घुसपैठ और अवैध शरणार्थियों के आधार कार्ड बनाए जाने जैसी घटनाओं से भी सुरक्षा तंत्र चिंतित है, क्योंकि यह आतंकी संगठनों को छिपने और घुलने-मिलने का अवसर देती हैं। अमेरिका और यूरोप के कई देश पाकिस्तान पर पहले ही दबाव बना चुके हैं कि वह आतंकियों को पनाह देना बंद करे। लेकिन पाकिस्तान की दोहरी नीति,एक ओर आतंकवाद के खिलाफ बयानबाज़ी और दूसरी ओर आतंकी संगठनों को राजनीतिक संरक्षण अभी भी जारी है। चीन, जो पाकिस्तान का सबसे बड़ा आर्थिक सहयोगी है, अब उसके आतंकी हालात से परेशान है। चीन के नागरिकों और सीपीईसी प्रोजेक्ट्स पर हुए हमलों से उसकी नाराज़गी साफ झलकती है।भारत को चाहिए कि वह इस वैश्विक माहौल का लाभ उठाकर आतंक के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर अपनी स्थिति और मजबूत करे। यदि भारत पाकिस्तान की आतंक प्रायोजक छवि को और उजागर करता है, तो उसे कूटनीतिक समर्थन बढ़ सकता है। भारत के लिए चुनौती यह है कि वह आतंकवाद के खिलाफ सख्त रुख अपनाए लेकिन साथ ही अंतरराष्ट्रीय मंच पर शांति और संयम का संदेश भी दे।इसके लिए भारत को तीन स्तर पर रणनीति बनानी होगी। यही समय की बलिहारि है। ( L103 जलवंत टाउनशिप पूणा बॉम्बे मार्केट रोड नियर नन्दालय हवेली सूरत मो 99749 40324 वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार, स्तम्भकार) ईएमएस / 17 नवम्बर