लेख
19-Nov-2025
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नक्सलवाद के खिलाफ जंग जीतने का दावा भारत सरकार कर रही है। केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा बार-बार कहा जा रहा है कि नक्सलवाद को 2026 मार्च तक खत्म कर दिया जाएगा। सरकार द्वारा नक्सलवादियों के खिलाफ बड़े पैमाने पर कार्रवाई भी की जा रही है। सरकार की इस कार्रवाई से सैकड़ों नक्सलवादी मारे गए हैं और हजारों नक्सलवादियों ने आत्मसमर्पण कर दिया है। इस तरह से कुछ समय के लिए नक्सलवादियों से राहत जरूर मिल सकती है, लेकिन यह असंभव जैसा है कि आगे फिर कभी यह सिर नहीं उठाएगा। आतंकवाद कुछ समय के लिए नियंत्रित तो जरूर किया जा सकता है, लेकिन आतंकवाद सदा से पूरी तरह खत्म नहीं हुआ और ना कभी होगा। इतिहास गवाह है कि आतंकवाद हमेशा हर काल में देखने को मिला है। दरअसल जब लोगों की महत्वाकांक्षाएं बढ़ती हैं या ज़रूरतें पूरी नहीं हो पाती हैं तो ऐसी समय पर आतंकी घटनाएं बढ़ जाती हैं। इस आतंक के जरिए या तो सत्ता पर कब्जा किया जाता है या आतंक के बल पर अपनी निजी इच्छाओं और जीवन-यापन की जरूरतों को पूरा करने की कोशिश की जाती है। इस कारण से समय-समय पर आतंकवाद पनपता रहा है और आगे भी बना रहेगा। इस कटु सत्य से इनकार नहीं किया जा सकता है। जहां तक नक्सलवाद की बात है तो बताते चलें, कि यह भारतीय कम्युनिस्ट आन्दोलन के फलस्वरूप उत्पन्न हुआ जो कि साम्यवादी क्रान्तिकारियों के आन्दोलन का अनौपचारिक नाम है। नक्सल या नक्सली शब्द की शुरुआत पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गाँव नक्सलबाड़ी से हुई। कम्यूनिस्ट नेता चारू मजूमदार और कानू सान्याल ने सन् 1967 में सत्ता के विरुद्ध सशस्त्र आन्दोलन प्रारंभ किया। बताया गया कि मजूमदार चीन के कम्यूनिस्ट नेता माओत्से तुंग से प्रभावित थे, जिनका मानना था कि भारतीय श्रमिकों एवं किसानों की दुर्दशा के लिए सरकार की नीतियाँ उत्तरदायी हैं। इस न्यायहीन दमनकारी वर्चस्व को बदलने के लिए सशस्त्र क्रान्ति का रास्ता अपनाया गया। तभी से लगातार नक्सली हमले होते रहे। दंतेवाड़ा की झीरम घाटी में कई बड़े नक्सली हमले हुए। दर्जनों नेता और सैकड़ो लोग मारे गए। इससे हटकर जम्मू-कश्मीर में भी समय-समय पर आतंकवाद देखने को मिला। असम राज्य में भी एक समय पर आतंकवाद का बोलबाला था। जो आतंक से जुड़े थे वे बाद में सत्ता में आ गए। इस प्रकार आतंकवाद देश के अंदर भी पनपता है और पड़ोसी देशों द्वारा भी आतंकवाद फैलाकर दूसरे देश में कब्जा करने या उसे कमजोर करने के लिए आतंकवाद का सहारा लिया जाता है। जम्मू-कश्मीर और पाकिस्तान इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं। इस स्थिति में सरकार कितने भी दावे कयों न कर ले आतंकवाद को कभी खत्म नहीं किया जा सकता है। आतंकवाद को खत्म करने का एक ही रास्ता है। हमेशा संवाद कायम रहे। संवाद में प्रेम और जोड़ने की इच्छा शक्ति हो, तो आतंकवाद को नियंत्रित किया जा सकता है। लेकिन जब-जब संवाद कम होता है या उससे दूर भागा जाता है प्रेम के स्थान पर नफरत के साथ जब हम दूसरों के अधिकार और संपत्ति को हड़पना चाहते हैं तो ऐसी स्थिति में आतंकवादी घटनाएं बढ़ने लगती हैं। केंद्र सरकार जो दावा कर रही है, उसमें पलड़ा सरकार का भारी हो सकता है। बहुत हद तक आतंकवाद को नियंत्रित भी किया जा सकता है, लेकिन इस पर सतत निगरानी रखनी होगी। सरकार को ऐसी नीतियां बनानी होंगी जिसे नक्सलवादी और आतंकी घटनाएं बढ़ती हैं उन घटनाओं को शुरुआत से ही नियंत्रित रखा जा सके। सरकार को सदैव सतर्क रहने की जरूरत है। आतंकवाद के खिलाफ जंग कभी समाप्त नहीं होगी, यह मानव जीवन के नेचर में हमेशा से विद्यमान है और आगे भी रहेगा। हां सरकार को यह जरूर देखना चाहिए कि नक्सलवाद और आतंकवाद जिन कारणों से पनपता है उन कारणों पर हमेशा ध्यान रखे। सरकार को सुरक्षा के साथ सतर्क रहने की जरूरत होती है। सरकार यदि इस जिम्मेदारी को पूरी करती है तो निश्चित रूप से आतंकवाद और नक्सलवाद जैसी घटनाओं को रोका जा सकता है। सरकार ने अभी जो कार्रवाई की है वह सराहनीय है, सरकार को आगे भी ध्यान रखना होगा कि ऐसा कुछ ना हो जिससे आतंकी घटनाएं पुनः बढ़ने लगें। इसके लिए सतर्कता की जरूरत है। ईएमएस / 19 नवम्बर 25