राष्ट्रीय
18-Nov-2025
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नई दिल्ली,(ईएमएस)। सऊदी अरब में मक्का से मदीना जा रहे भारतीय तीर्थयात्रियों की बस के डीज़ल टैंकर से टक्कर में कम से कम 42 भारतीय उमरा यात्रियों की मौत की खबर ने देश में शोक की लहर है। इस हादसे के बाद यह सवाल फिर उभर रहा है, कि उमरा और हज में क्या अंतर है और दोनों इबादतों का महत्व क्या है। उमरा और हज इस्लाम की बेहद महत्वपूर्ण धार्मिक यात्राएं हैं, लेकिन दोनों के नियम, समय और महत्व अलग-अलग हैं। वैसे तो उमरा को छोटा हज भी कहा जाता है। इसे साल के किसी भी महीने और किसी भी दिन किया जा सकता है। उमरा आमतौर पर कुछ घंटों में पूरा हो जाता है। इसमें चार प्रमुख कदम होते हैं, एहराम बांधना, काबा शरीफ का तवाफ, सफा–मरवा के बीच सई और बाल कटवाना या सिर मुंडवाना। वहीं हज की बात करें तो यह इस्लाम का पांचवां रुकन यानी फर्ज है, जिसे हर सक्षम मुसलमान को जीवन में एक बार करना अनिवार्य माना गया है। यह सिर्फ इस्लामी महीने जिलहिज्जा में 8 से 12 तारीख के बीच ही किया जा सकता है। हज की रस्में अधिक कठिन और लंबे समय तक चलने वाली होती हैं, जिसमें अराफात में वकूफ, मुझदलिफ़ा में रात गुज़ारना, रमी-ए-जमरात, क़ुर्बानी और तवाफ-ए-इफ़ाज़ा जैसी महत्वपूर्ण प्रक्रियाएं शामिल हैं। हज में कौन-कौन सी रस्में होती हैं? एहराम तवाफ़ सई अराफात में वकूफ – हज का सबसे बड़ा रुक्न मुझदलिफ़ा में रात गुज़ारना रमी-ए-जमरात – शैतान को पत्थर मारना क़ुर्बानी बाल कटवाना तवाफ़-ए-इफ़ाज़ा और तवाफ़-ए-विदा हज में कम से कम 5 से 6 दिन लगते हैं। धार्मिक जानकार बताते हैं कि उमरा और हज को अलग इसलिए माना जाता है क्योंकि हज समयबद्ध, साल में एक बार के साथ कठिन इबादत का हिस्सा है, जबकि उमरा काफी सरल और साल में कभी भी किया जा सकता है। हज का बकरीद से गहरा संबंध है। 10 जिलहिज्जा को की जाने वाली क़ुर्बानी हज की सबसे अहम रस्मों में से एक है। हज़रत इब्राहीम (अ.स.) की कुर्बानी की याद में इसी दिन दुनिया भर में मुसलमान बकरीद मनाते और क़ुर्बानी करते हैं। कुल मिलाकर उमरा और हज दोनों ही इस्लाम में पवित्र और महत्वपूर्ण इबादतें हैं, लेकिन हज अनिवार्य फर्ज है और इसे करने के नियम और कठिनाइयाँ अधिक हैं। उमरा इससे सरल और शांतिपूर्ण इबादत मानी जाती है। हिदायत/ईएमएस 18 नवंबर 2025