बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन के सहयोगी दलों को 202 सीटों पर विजय प्राप्त हुई है, जो किसी चमत्कार से कम नहीं है। यह जीत भी तब मिली जब इंडिया गठबंधन के सहयोगी दलों ने एसआईआर और वोट चोरी के मुद्दे पर पूरे बिहार में रैली निकालकर जन जागरण का काम किया। चुनाव-प्रचार के दौरान सरकार के खिलाफ भारी विरोध जनता के बीच में देखने को मिला। उसके बाद भी एनडीए गठबंधन की यह जीत सभी को आश्चर्यचकित कर रही है। यह चमत्कार कैसे हुआ? मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा, दिल्ली और अब बिहार में जिस तरह की जीत मोदी और शाह की जोड़ी ने हासिल की है, उसे देखते हुए यह स्पष्ट प्रतीत होने लगा है कि राज्यों में भाजपा अपनी ही सरकार बनाकर 2047 तक का जो सपना उन्होंने देखा है उसे साकार करने में लग गई है। केंद्र एवं राज्य में भाजपा की ही सरकार हो इसके लिए जो रणनीति 2017 से भाजपा और संघ बना रहा था वह पूरी तरीके से परवान चढ़ चुकी है। लोकसभा 2024 के चुनाव में भाजपा से एक गलती हुई थी, कि उसने यह मान लिया था कि 300 सीटों पर उसका कब्जा है। उसने उन 100 सीटों पर ध्यान दिया था, जहां से वह 400 सीट का लक्ष्य प्राप्त करना चाहते थे, लेकिन सत्ता पक्ष के खिलाफ जो वातावरण बन गया था उसमें 300 सीटों को वह बचा के नहीं रख पाए। वहीं पर उन्हें सबसे ज्यादा नुकसान हुआ और 240 सीटों पर आकर भाजपा रुक गई। इस गलती से भाजपा ने सबक लिया और अब उसने चुनाव आयोग के माध्यम से जीत की जो नई इबारत लिखना शुरू की है उसका विपक्ष के पास कोई तोड़ नहीं है। विपक्षी दलों के बीच में यह कहा जा रहा है कि वो जाएं तो कहां जाएं, केंद्रीय चुनाव आयोग में जो आयुक्त हैं वह सरकार द्वारा नियुक्त किए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट में उसके खिलाफ जो याचिका लगी हैं उस पर आज तक सुनवाई नहीं हुई। संसद के 141 सदस्यों को बर्खास्त कर सरकार ने संसद से चुनाव कानून पास कराया था। चुनाव आयुक्तों के ऊपर कोई भी आपराधिक मामला दर्ज नहीं हो सकता है। सरकार ने कानून बनाकर उसे असीमित शक्तियां दे दी हैं। ऐसे में कहा जा रहा, कि न्याय पालिका से अब जो भी न्याय मिल रहा है वह सरकार को मिल रहा है। न्याय पालिका विपक्ष के ऊपर आक्रामक है। ईडी, सीबीआई और अन्य जांच एजेंसियां जिस तरीके से विपक्ष को निशाने पर लेती हैं, न्यायपालिका से उन्हें संरक्षण मिलता है। ऐसी स्थिति में एक-एक करके समस्त विपक्षी दलों के नेता और क्षेत्रीय दलों के नेता भाजपा के निशाने पर हैं। एक-एक करके उन राज्यों में भी भाजपा बहुमत के साथ अपनी सरकार बनाती जा रही है जहां पर भाजपा का पहुंच पाना संभव ही नहीं था। इस मामले में चुनाव आयोग की भूमिका अति महत्वपूर्ण हो गई है। चुनाव आयोग कई ऐसे सॉफ्टवेयर उपयोग में ला रहा है जो चुनाव में मनमाफिक चुनाव परिणाम मशीन की सहायता से ला सकते हैं। चुनाव आयोग ने पूरी चुनाव व्यवस्था का केंद्रीय कारण कर लिया है। चुनाव आयोग में जो भी डिजिटाइजेशन है उस पर चुनाव आयोग का ही नियंत्रण है। ईवीएम मशीन, वीवीपेट, मतदाता सूची और मतगणना सभी पर केंद्रीय चुनाव आयोग का नियंत्रण है। चुनाव आयोग से संबंधित कार्यों के लिए जो ईवीएम मशीन और वीवीपेट वगैरा इस्तेमाल किए जा रहे हैं, उनकी जो सॉफ्टवेयर कंपनियां हैं उनमें भाजपा के ही पदाधिकारी सदस्य बनकर काम कर रहे हैं। मतदान, मतगणना और मतदाता सूची में गड़बड़ियों को लेकर राहुल गांधी तथ्यों के साथ पत्रकार वार्ता करके जो गड़बड़ियां की गई हैं उन्हें उजागर कर चुके हैं। एड़ीआर ने भी 2024 के लोकसभा चुनाव में लगभग 80 लोकसभा सीटों पर मतदान और मतगणना के परसेंटेज और चुनाव परिणाम को लेकर चुनाव आयोग को जो आपत्ति दर्ज कराई थी उसे भी चुनाव आयोग ने ठंडे बस्ते में डाल रखा है। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में भी जब ये मामले जाते हैं तब इन मामलों पर तारीख पर तारीख मिलती है। सुनवाई और फैसला किसी मामले में नहीं होता है। इस स्थिति में विपक्ष और क्षेत्रीय दलों की मूर्खता और सत्ता लोलुपता के कारण भाजपा को दिन प्रतिदिन शक्तिशाली बनाती चली जा रही है। उड़ीसा जैसे राज्य में जिस तरह से भाजपा ने सत्ता हासिल की है, पंजाब, हरियाणा और महाराष्ट्र में अपने ही सहयोगी दलों को एक तरह से खत्म कर दिया है। बिहार के भी जो चुनाव परिणाम आए हैं उसमें भले नीतीश बाबू की पार्टी दूसरे नंबर की हो लेकिन जिस तरह से उनकी पार्टी के अंदर भाजपा ने सेंध लगा दी है उसमें नीतीश बाबू भी फड़फड़ा रहे हैं। अब उनके पास भी उनका और उनकी पार्टी का कोई स्वतंत्र आधार नहीं रहा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा अच्छी तरह से जानती हैं जब तक कांग्रेस की बागडोर गांधी परिवार के हाथ में है तब तक उसका मुकाबला नहीं किया जा सकता है। 75 वर्षों के बाद भी कांग्रेस आज 300 से ज्यादा लोकसभा सीटों में प्रभावशाली है। भाजपा को चुनौती केवल कांग्रेस से है। 2014 के बाद से प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और संघ के निशाने पर केवल कांग्रेस है। जो क्षेत्रीय दल आज देश में विभिन्न राज्यों में देखने को मिल रहे हैं वह कांग्रेस की विरासत पर ही राज कर रहे हैं। भाजपा इसको अच्छे तरीके से जानती है। कांग्रेस और उन्हें एकजुट नहीं होने देना चाहती है। यदि विपक्ष और क्षेत्रीय दल संविधान और लोकतंत्र की इस लड़ाई में कांग्रेस के साथ एकजुट हो गए तो फिर सत्ता में बने रहना भाजपा के लिए मुश्किल ही नहीं असंभव हो जाएगा। पिछले एक दशक में एक-एक करके क्षेत्रीय दल समाप्त होते चले जा रहे हैं। मायावती जैसी नेता और उनकी पार्टी बसपा आम आदमी पार्टी जो भाजपा के ही गर्भ से निकली थी उसे भी भाजपा ने पनपने नहीं दिया। केजरीवाल अपने आपको प्रधानमंत्री मोदी के मुकाबले में खड़ा करने लगे थे, उन्हें भी ठिकाने लगाने में ज्यादा देर नहीं लगी। यदि यही क्रम 2 साल और चल गया तो भारत के सभी राज्यों में भाजपा की ही सरकार होगी, इससे कोई इनकार नहीं कर सकता है। जिस तरह से रावण के पास नौ ग्रह कैद थे, इसी तरह से केंद्र सरकार के अधीन जितनी भी संवैधानिक संस्थाएं हैं या जितनी भी व्यवस्थाएं कार्यरत हैं उन सब में भाजपा और संघ के लोग पिछले 10 साल में बैठ चुके हैं। ऐसी स्थिति में 2047 तक का जो लक्ष्य भाजपा ने निर्धारित किया है कि वह केंद्र और राज्यों की सत्ता में बने रहेंगे, वह पूर्ण होने से कोई रोक नहीं सकेगा। केंद्रीय चुनाव आयोग पूर्णत: सरकार के नियंत्रण में है। न्यायपालिका भी उसके काम में कोई हस्तक्षेप नहीं कर पा रही है। राजनीतिक दलों और राजनेताओं के प्रति कोई जवाब देही चुनाव आयोग की नहीं है। मतदाताओं के अधिकार भी लाखों की संख्या में चुनाव आयोग एसआईआर के माध्यम से राज्यों में खत्म करके मनचाहे चुनाव परिणाम, डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से दे रहा है। उसका मुकाबला करना बिखरे हुए विपक्ष और क्षेत्रीय दलों के बस की बात अब नहीं रही, यही कहा जा सकता है। ईएमएस / 18 नवम्बर 25