लेख
18-Nov-2025
...


(19 नवम्बर विश्व शौचालय दिवस) विश्व शौचालय दिवस सिर्फ एक दिन का जश्न नहीं है, बल्कि यह हमें याद दिलाता है कि शौचालय तक पहुँच और स्वच्छता सिर्फ बुनियादी मानवाधिकार ही नहीं, बल्कि सामाजिक समानता, स्वास्थ्य सुरक्षा और गरिमा का मामला है। भारत में स्वच्छ भारत मिशन ने इस दिशा में अहम कदम उठाए हैं, लेकिन उसके बावजूद कई चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं, विशेष रूप से महिलाओं का मामला। महिलाओं की स्थिति और शौच के अभाव में चुनौतियाँ बड़ी मुश्किल राहे थी।भारत में पारंपरिक सामाजिक और आर्थिक असमानताओं के कारण, महिलाओं अक्सर खुले में शौच के लिए मजबूर होती थीं। यह सिर्फ स्वास्थ्य-खतरे का मामला नहीं था, बल्कि उनकी सुरक्षा, गरिमा और आत्मसम्मान से जुड़ा सवाल था।सुरक्षा और असमर्थता खुले में शौच करने का मतलब होता था दूर-दूर जाना, अक्सर अंधेरे में या असुरक्षित स्थानों पर। महिलाओं के लिए यह खतरा दोगुना था । उन्हें यौन उत्पीड़न, जान-बचाव की परेशानी और शारीरिक असुविधा का सामना करना पड़ता था। विशेष रूप से गर्भवती महिलाएं, बुज़ुर्ग महिलाएं और किशोर लड़कियों के लिए यह प्रक्रिया बेहद जोखिम भरी होती थी। स्वास्थ्य और स्वच्छताखुले में शौच के कारण कीचड़, कीड़े, बैक्टीरिया और मैल घुला पानी आसपास फैलता था, जिससे डायरिया, गंदे पानी से संक्रामक रोगों का जोखिम बढ़ता था। इस तरह की स्थितियाँ बच्चों और महिलाओं के स्वास्थ्य पर भारी असर डालती थीं। गरिमा और सामाजिक दबाव महिलाओं की सामाजिक प्रतिष्ठा और आत्मसम्मान के लिए इज्जतघर बहुत मायने रखते हैं। बिना शौचालय के, उन्हें न केवल शारीरिक असुविधा बल्कि सामाजिक शर्मिंदगी भी झेलनी पड़ती थी। कई जगहों पर महिलाएं इससे जुड़ी सामाजिक बंदिशों और शर्मिंदगी के कारण अपनी ज़रूरतों को छिपाती थीं या जोखिम भरा विकल्प चुनती थीं।सरकार की भूमिका और शौचालय निर्माण की प्रगति स्वच्छ भारत मिशन का दृष्टिकोण है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत की थी, जिसके दो हिस्से थे। ग्रामीण (एसबीएस-जी) और शहरी (एसबीएस-यू)। इसका प्रमुख लक्ष्य था ओपन डेफेक्शन फ्री (ओडीएफ) भारत बनाना।सरकार ने अपनी नीति में यह माना कि सिर्फ शौचालय बनाना ही पर्याप्त नहीं है उन्हें बनाना तो पहला कदम है, लेकिन उसके बाद उपयोग, रख-रखाव, व्यवहार परिवर्तन और अपशिष्ट प्रबंधन बेहद ज़रूरी हैं।निर्मित शौचालयों की संख्या करोड़ो में है।स्वच्छ भारत मिशन के आंकड़े बताते हैं कि सरकार ने बड़े पैमाने पर निर्माण किया है। सितंबर 2024 तक, ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 11.66 करोड़ घर-घर शौचालय बनाए जा चुके हैं। शहरी क्षेत्रों में, SBM-Urban के अंतर्गत 63.63 लाख (लगभग 6.36 करोड़) व्यक्तिगत घरेलू शौचालय बनाए गए हैं। इसके अलावा, शहरी हिस्से में लगभग 6.36 लाख (636,000) सार्वजनिक और सामुदायिक शौचालय भी बनाए गए हैं। ग्रामीण स्तर पर 2.41 लाख से अधिक सामुदायिक सैनिटरी (सार्वजनिक) परिसर तैयार किए गए हैं। लगभग 5.87 लाख गाँवों को ओडीएफ ,+ स्टेटस मिला है, जहाँ सिर्फ खुले में शौच खत्म करने के बाद ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन तक किया जा रहा है। इस तरह की उपलब्धियाँ इस मिशन की गंभीरता और व्यापकता को दर्शाती हैं। लोगों की सोच शौचालय के प्रति जन दृष्टिकोण और जनता की सोच इस मिशन के बारे में मिश्रित है। कुछ सकारात्मक दृष्टिकोण हैं, तो कुछ आलोचनाएँ भी।लोगो के सकारात्मक दृष्टिकोण है कि इसे मोदी सरकार की प्रमुख सफलता के रूप में देखते हैं ।उन्होंने दस वर्ष के अंदर लाखों-करोड़ों शौचालय बनवाए, जिससे पहले खुले में शौच करना सामान्य था और अब बहुत से गाँव और शहर ओडीएफ घोषित हुए हैं।महिलाओं और बच्चों की गरिमा में सुधार हुआ है। इज्जतघर का विचार सिर्फ भौतिक सुविधा नहीं, एक सामाजिक परिवर्तन भी है।स्वास्थ्य पर असर भी सकारात्मक दिखता है ।बच्चों में डायरिया जैसी बीमारियों में कमी, और स्वच्छता से जुड़ी जागरूकता बढ़ी है।.नकारात्मक और सतर्क दृष्टिकोण केवल लोगो का ही नही है। विपक्ष भी हमलावर है और देश का विकास उनको पच नही रहा है।कांग्रेस ने देश की आजादी के बाद लोगो को मुलभुत सुविधा देने के लिए कभी सकारात्मक रुख नही अपनाया।जनता को अपने हाल पर छोड़ दिया। कुछ विशेषज्ञ और समाजशास्त्री कहते हैं कि सिर्फ निर्माण ही काफी नहीं है। आईएमपीआरआई की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कई घरों में शौचालय बने होने के बावजूद, हर जगह उनका उपयोग नहीं हो रहा है। रख-रखाव की बड़ी समस्या है। कई शौचालयों में साफ-सफाई, पानी और अपशिष्ट प्रबंधन नहीं हो पाता।व्यवहार परिवर्तन का काम अधूरा है। कुछ जगहों पर लोग फिर भी खुले में जाना पसंद करते हैं, या उपयोग न करने की आदत बन गई है क्योंकि उनकी निर्माण की गुणवत्ता अच्छी नहीं थी या सुविधाएँ सीमित थीं। मोदी सरकार को लोग कैसे देखते हैं ।मोदी सरकार को स्वच्छता को हिंदुस्तान की प्राथमिकता बनाने के लिए बहुत सम्मान मिला है। यह मिशन न सिर्फ इंफ्रास्ट्रक्चर योजना है, बल्कि एक जन आंदोलन के रूप में पेश किया गया है।सरकार के बजट और संसाधन आवंटन को एक गंभीर सरकारी प्रतिबद्धता माना गया है । कई लोगों के नज़र में यह दिखाता है कि मोदी सरकार ने सिर्फ घोषणाएँ नहीं की, बल्कि बड़े पैमाने पर कार्रवाई की।अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस मिशन को पहचान मिली है, जिससे भारत की स्वच्छता छवि में सुधार हुआ है। कुछ आलोचक कहते हैं कि सरकार ने शुरुआत में पर्याप्त बजट नहीं दिया था, या आवंटन और रिलीज़ के बीच देरी रही। भ्रष्टाचार और बिचौलियों की भूमिका पर सवाल उठाए गए हैं। निर्माण ठेकेदार, दलाल, स्थानीय मिस्त्रीगण और सरकारी एजेंसियाँ लाभ में शामिल हो सकती हैं।उपयोग और रख-रखाव के बाद की विस्तार योजनाओं (जैसे ओडीएफ प्लस) में जनता और स्थानीय समुदाय की भागीदारी कुछ जगहों पर सुस्त है।भ्रष्टाचार, बिचौलिये और कमी समस्या के पहलूआज भी विधमान है।भ्रष्टाचार इस मिशन की चुनौतियों में एक बड़ी बाधा रही है। बिचौलियों और दलालों की भूमिका में ग्रामीणों के मजबूरी का फायदा उठाया गया है।कुछ रिपोर्टों में कहा गया है कि शौचालय निर्माण में स्थानीय दलाल और मिडिलमैन शामिल होते हैं। वे लाभ कमाने के लिए निम्न-मानक निर्माण सामग्री उपयोग करते हैं। ठेकेदारों और मिस्त्रीगण कभी-कभी गुणवत्ता नियंत्रण की अनदेखी करते हैं, जिससे टॉयलेट की दीवारें, टैंक या सीटें खराब बनती हैं।दावा किया गया है कि लाभार्थियों को मिलने वाली राशि (वित्तीय सहायता) पूरी तरह गायब नहीं होती, बल्कि कुछ हिस्सा दलालों या ठेकेदारों के पास चला जाता है।जिसमे पंचायत के कार्मिक से लेकर उच्च अधिकारी और सरपंच शामिल रहते थे। यह वित्तीय हस्तक्षेप लोगों तक सीधा नहीं पहुँचने का कारण बनता है।इस वजह से, कुछ परिवारों के हाथ में आठ- दस हजार जैसा हिस्सा आता है, जबकि शौचालय निर्माण में खर्च उससे कहीं अधिक हो सकता है। यह लाभ विभाजन और पारदर्शिता की कमी को दर्शाता है।दोष सिर्फ केंद्र सरकार को देना उचित नहीं है। राज्य सरकारें, पंचायत स्तर के अधिकारी, स्थानीय ठेकेदार और मिस्त्रीगण भी जिम्मेदार हैं। निगरानी तंत्र में कमज़ोरी रही है । तीसरे पक्ष की जांच, सतत निगरानी और जवाबदेही प्रणाली मजबूत नहीं रही है। लाभार्थियों की भागीदारी सीमित रही है।सामाजिक जांच और समुदाय-नेतृत्व को और बढ़ाना चाहिए।विपक्षी दल और आलोचक इस मिशन को पूरी तरह नकार नहीं करते, लेकिन उनकी चिंताएँ स्पष्ट हैं। विपक्ष का मानना है कि बहुत से शौचालय निर्माण संख्या का खेल बन गए हैं।सिर्फ संख्या दिखाने के लिए निर्माण किया गया, लेकिन गुणवत्ता पर ध्यान कम गया। कुछ जगहों पर दो सीट वाला एक ही टॉयलेट जैसा विचित्र निर्माण मुद्दे सामने आए हैं। उदाहरण के लिए, छत्तीसगढ़ में ऐसा मामला सामने आया है। पर्याप्त राशि नहीं जारी की गई विपक्ष यह तर्क देता है कि केंद्र ने शुरू में पर्याप्त बजट आवंटन नहीं किया या राज्य और पंचायती स्तर पर फंड रिलीज़ में देरी की। ये देरी यानी कम राशि योजना को समय पर और प्रभावी रूप से लागू करने में बाधा बनती हैं। रख-रखाव और व्यवहार परिवर्तन पर ध्यान न देना।कई विपक्षी नेताओं की राय है कि मोदी सरकार सिर्फ निर्माण को महत्व देती है, लेकिन निर्माण के बाद उपयोग, सफाई, मरम्मत और समुदाय की भागीदारी जैसे महत्वपूर्ण स्तंभों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे रही। वे कहते हैं कि स्वच्छता योजना का असली परिणाम तभी दिखेगा जब शौचालय नियमित रूप से उपयोग किए जाएँ और उनके रख-रखाव का सही प्रबंधन हो। भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की कमीदेखी गई। विपक्ष उन मामलों को उजागर करता है जहाँ निर्माण दर में अनियमितताएँ और लाभार्थियों तक सीधे पैसों के न पहुँचने के आरोप हैं। वे चेतावनी देते हैं कि अगर निगरानी मजबूत नहीं हुई, तो स्वच्छता मिशन लंबे समय में टिकाऊ नहीं रह सकेगा। आगे का विजन और समाधान भी सरकार का सकारात्मक है। भविष्य में स्वच्छता और शौचालयों के क्षेत्र में सुधार के लिए कुछ प्रमुख सुझाव निम्नलिखित हैं सरकार को ओडीएफ प्लस और व्यवहार परिवर्तन लाना चाहिए। भारत को सिर्फ ओपन डेफेक्शन फ्री लक्ष्य से आगे बढ़कर ओडीएफ प्लस की ओर जाना होगा, जहाँ न सिर्फ खुले में शौच खत्म हो, बल्कि ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन भी सुनिश्चित हो। व्यवहार परिवर्तन के लिए सामाजिक जागरूकता अभियानों को मजबूत किया जाना चाहिए।पंचायत स्तर पर महिलाएँ और युवा नागर समिति नेतृत्व लें। रख-रखाव और प्रणालीगत निगरानीजरूरी है। बनाए गए शौचालयों की नियमित निगरानी सुनिश्चित करने के लिए स्वच्छता कॉल सेंटर, ऐप-आधारित शिकायत प्रणाली और स्थानीय स्वच्छता समितियाँ होनी चाहिए। वित्तीय सहायता सिर्फ निर्माण तक सीमित न हो ।मरम्मत, सफाई और अपशिष्ट प्रबंधन के लिए भी बजट निर्धारित करना चाहिए। निर्माण में शामिल ठेकेदारों और मिस्त्रियों के लिए स्पष्ट तकनीकी मानक और गुणवत्ता नियंत्रण नियम लागू किए जाने चाहिए। लाभार्थियों की भागीदारी बढ़ाने के लिए सामाजिक ऑडिट पंचायत-स्तर की समीक्षा समितियाँ और तीसरी पक्ष की निगरानी आवश्यक है। भ्रष्टाचार और बिचौलियों को नियंत्रित करने के लिए शिकायत निवारण तंत्र तेज़ और प्रभावी होना चाहिए। पिंक टॉयलेट महिलाओं के लिए विशेष शौचालय की संख्या बढ़ानी चाहिए, खासकर शहरी झुग्गी-झोपड़ी क्षेत्रों और सार्वजनिक स्थानों में, ताकि महिलाओं को निजी, सुरक्षित और स्वच्छ सुविधा मिले। हर शौचालय योजना में महिला प्रतिनिधि को निर्माण और रख-रखाव समितियों में शामिल किया जाना चाहिए, जिससे उनकी ज़रूरतें और अनुभव सीधे नीति निर्माण में आएँ। स्कूलों, स्वास्थ्य केंद्रों और सार्वजनिक स्थानों पर लड़कियों और महिलाओं के लिए स्वच्छता शिक्षा और सुरक्षित शौचालय सुविधा अनिवार्य होनी चाहिए। स्क्रूटनी पैनल और लोक शिकायत तंत्र को मजबूत बनाना चाहिए ताकि लाभार्थियों की शिकायतों का निपटारा हो सके। पंचायत स्तर पर “स्वच्छता जगृति दल” बनाए जाएँ, जो स्थानीय लोगों की निगरानी करें और भ्रष्ट ठेकेदारों के खिलाफ लोक अभियानों का नेतृत्व करें। डिजिटल ट्रेसबिलिटी जैसे जीपीएस-टैगिंग, फोटो सबमिशन को अनिवार्य किया जाना चाहिए, ताकि निर्माण की वास्तविकता और गुणवत्ता की पुष्टि हो सके। विश्व शौचालय दिवस पर हमें यह समझना चाहिए कि शौचालय बनाना सिर्फ एक बुनियादी सुविधा न होकर, महिलाओं की गरिमा, सुरक्षा और समानता की लड़ाई है। मोदी सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन के माध्यम से अभूतपूर्व प्रगति की है करोड़ों शौचालय बनाए, लाखों गाँव ओडीएफ घोषित किए गए, और सार्वजनिक बहस को आगे बढ़ाया गया। लेकिन चुनौतियाँ अभी खत्म नहीं हुई हैं। भ्रष्टाचार, बिचौलियों की जड़ें, गुणवत्ता की गिरावट, उपयोग और रख-रखाव की अनदेखी, और विशेष रूप से महिलाओं की ज़रूरतों पर पर्याप्त ध्यान न देना कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें नज़दीक से संबोधित करना होगा। लोक, विपक्ष, सरकार और स्थानीय समुदायों के बीच मिलकर काम करने की ज़रूरत है ताकि प्रत्येक व्यक्ति विशेष रूप से महिलाएँ केवल शौचालय का अस्तित्व न पाएं, बल्कि सुरक्षित, स्वच्छ, उपयोगी और सम्मानजनक शौचालय का अनुभव कर सकें। इस रूपांतरण को स्थायी और टिकाऊ बनाने के लिए ओडीएफ प्लस के विजन, पारदर्शिता, जवाबदेही और सहभागिता को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।देश मे शौचालय निर्माण सरकार की बहुत बड़ी उपलब्धि गिनी जा रही है। ईएमएस/19 नवम्बर 2052