मैं एक मुसलमान हूँ। मैं डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट (लोकतान्त्रिक समाजवादी) हूँ। और सबसे बुरी बात यह है कि मैं इनमें से किसी के लिए भी शर्मिंदा नहीं हूँ (चुनाव जीतने के बाद जोहरान ममदानी के भाषण से)। जोहरान ममदानी का अमरीका के प्रमुख शहरों में से एक और सही मायनों में ग्लोबल सिटी न्यूयार्क का मेयर चुना जाना कई अर्थों में बहुत अहम है। यह आम लोगों के सरोकारों की धनिकों के सरोकारों पर जीत है। यह एक तेजतर्रार और वैचारिक दृष्टि से दृढ युवा की वर्चस्वशाली निहित स्वार्थों पर जीत है। यह जीत बताती है कि अब भी हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि मानवीय मूल्य, संकीर्ण स्वार्थों पर भारी पड़ सकते हैं। यह उन ताकतों की जीत है जो एक ऐसी दुनिया बनाना चाहते हैं जिसमें सब बराबर हों। इस जीत का हम कई कोणों से विश्लेषण कर सकते हैं। जब ममदानी ने अपना चुनाव अभियान शुरू किया था तब वे दौड़ में ही नहीं नज़र आ रहे थे। मगर अंततः उन्होंने शानदार जीत हासिल की। एक प्रश्न जिस पर विचार किए जाने की ज़रुरत है वह यह है कि उन्हें जीत के तुरंत बाद अपने भाषण में यह क्यों कहना पड़ा कि वे मुसलमान और डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट हैं। इन दोनों पहचानों का पिछले कुछ दशकों में ज़बरदस्त दानवीकरण हुआ है। समाजवाद को साम्यवाद का चचेरा भाई बताया जा रहा है। साम्यवाद का फोकस आम लोगों के कल्याण पर होता है और इस विचारधारा को दक्षिणपंथी - विशेषकर अमरीका में – नीची निगाहों से देखते हैं। साम्यवाद को एक डरावना दानव बताने की प्रवृत्ति शीतयुद्ध के दौरान अपने चरम पर थी। यह वह काल भी था जब बहुत से देश साम्राज्यवाद की गुलामी से मुक्त हो रहे थे और स्वतंत्र देश के रूप में दुनिया के नक़्शे पर उभर रहे थे। रूस (तत्समय सोवियत संघ) एक वैश्विक महाशक्ति के रूप में उभर रहा था। अमरीका पहले से ही एक बड़ी ताकत था। वह एक तरह से पुराने औपनिवेशिक राष्ट्रों का उत्तराधिकारी था। अमरीका चाहता था कि नव-स्वतंत्र देशों पर उसका दबदबा हो। सोवियत संघ इन राष्ट्रों की उनकी जडें ज़माने में मदद कर रहा था। इस सिलसिले में भारत और पाकिस्तान का उदाहरण दिया जा सकता है। जहाँ सोवियत संघ ने भारत को भारी उद्योग और आधारभूत संरचना स्थापित करने में मदद की पेशकश की वहीं अमरीका, भारत को अपने यहाँ तैयार माल बेचने को आतुर था। भारत ने आधारभूत उद्योग स्थापित करने की राह चुनी जबकि पाकिस्तान, अमरीका से तैयार माल खरीदने लगा। आज भारत और पाकिस्तान की स्थिति में जो अंतर है उससे साफ़ है कि भारत ने सही राह चुनी थी। इसके साथ ही अमरीका के प्रचार तंत्र ने साम्यवाद के खिलाफ अभियान छेड़ दिया। उसने कम्युनिस्ट देशों के खिलाफ सैन्य और ख़ुफ़िया कार्यवाहियां भी शुरू कर दीं। वियतनाम के खिलाफ युद्ध अमरीका के साम्यवाद-विरोधी कुत्सित अभियान का एक भयावह उदाहरण था। पूरी दुनिया में साम्यवाद को बदनाम किया गया। अमरीकी मीडिया ने भी इस अभियान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। नोएम चोमोस्की ने सहमति के निर्माण का सिद्धांत प्रतिपादित किया जिसके अनुसार अमरीकी सरकार की नीतियों के अनुरूप मीडिया ने साम्यवाद को एक शैतानी ताकत बताना शुरू कर दिया। मैकार्थीवाद – जो अमरीकी प्रशासन से साम्यवादियों को बाहर करने का अभियान था – की जडें भी साम्यवाद के प्रति शत्रुता के भाव में थी। सीनेटर जोसफ मैकार्थी ने प्रशासन और अन्य क्षेत्रों से साम्यवादियों को बाहर करने के लिए जांच-पड़ताल का एक बड़ा अभियान चलाया। इसके दौरान लोगों के संवैधानिक अधिकारों को कुचला गया। भारत के दक्षिणपंथियों की भी यही सोच थी और उन्होंने वियतनाम जैसे देशों के खिलाफ अमरीका की नीतियों का समर्थन किया। यह तो अच्छा हुआ कि अमरीकी सेनाओं को वियतनाम में मुंह की खानी पडी। आरएसएस-भारतीय जनसंघ भी साम्यवाद के विरुद्ध अमरीकी अभियान के समर्थक थे। राहुल सागर लिखते हैं कि हिन्दू महासभा और जनसंघ जैसी हिन्दू राष्ट्रवादी पार्टियों ने शीत युद्ध के दौरान अमरीका के नेतृत्व में चले साम्यवाद-विरोधी अभियान का इसलिए समर्थन किया क्योंकि वे साम्यवाद के प्रति वैमनस्यता का भाव रखते थे। वे लिखते हैं कि ये दल और संगठन वैचारिक कारणों से पश्चिमी देशों से मित्रता के हामी थे। मगर वे पश्चिम के भौतिकवाद और अमरीका की भारत को नियंत्रण में रखने की कोशिशों से डरते भी थे। भाजपा का पूर्व अवतार जनसंघ, भारत की गुटनिरपेक्ष नीतियों के खिलाफ था और चाहता था कि भारत पश्चिम के पक्ष में झुक जाए। आरएसएस के एम।एस। गोलवलकर ने अपनी पुस्तक बंच ऑफ़ थॉट्स में हिन्दू राष्ट्र के तीन दुश्मन चिन्हित किए हैं: मुसलमान, ईसाई और साम्यवादी। इस सबने साम्यवाद और समाजवाद के खिलाफ वातावरण बना दिया। इस्लाम और मुसलमानों के प्रति फोबिया (अतार्किक नफरत और भय), 9/11 के बाद शुरू हुआ। जोहरान के पिता प्रोफेसर महमूद ममदानी ने एक शानदार किताब लिखी है। उसका शीर्षक है गुड मुस्लिम, बैड मुस्लिम। इस पुस्तक में यह बताया गया है कि अलकायदा और उसके जैसे अन्य संगठनों के उदय की जड़ में थी अमरीका की दुनिया के तेल के संसाधनों पर कब्ज़ा करने की नीति। अमरीका ने इन आतंकी समूहों को आठ हज़ार मिलियन डॉलर और सात हज़ार टन असलाह उपलब्ध करवाए थे। अमरीकी मीडिया ने जिस तरह इस्लाम को आतंकवाद से जोड़ा, वह मानवता के खिलाफ अपराध से कम न था। आतंकवाद को एक मजहब से जोड़ना भयावह और दुखद था। इसने सभी मुसलमानों को आतंकवादी करार दे दिया। भारत में पहले से ही अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति के चलते मुसलमानों के प्रति पूर्वाग्रह व्याप्त थे। अंग्रेजों ने इतिहास को धर्म के चश्मे से देखा और उसी आधार पर इतिहास लिखा। शासक केवल सत्ता और धन चाहते हैं। मगर अंग्रेजों ने हमें यह बताया कि शासकों का धर्म उनकी नीतियों का निर्धारक था। इस तरह के इतिहास लेखन का नतीजा यह हुआ कि मुसलमान शासक दानव बन गए और आज के मुसलमानों को उनके किए-धरे के लिए ज़िम्मेदार बता दिया गया। नतीजा था सांप्रदायिक हिंसा। इसके अलावा, मुसलमान अपने मोहल्लों में सिमटने लगे और उन्हें समाज के हाशिये पर धकेल दिया गया। जोहरान ममदानी की जीत से जाहिर है कि साम्यवादियों और समाजवादियों और मुसलमानों का दानवीकरण, दुनिया के लिए अभिशाप है। अमरीका ने इसमें प्रमुख भूमिका अदा की है। अलग-अलग देशों की स्थानीय परिस्थितियों के चलते भी इसमें इजाफा हुआ है। ये दोनों समाज की सामूहिक समझ का हिस्सा बन गए हैं। भारत में भी समाजवाद और इस्लाम निशाने पर हैं। अमरीका में ममदानी को कम्युनिस्ट और जिहादी बताया जा रहा है और यह कहा जा रहा है कि उनके कारण 9/11 दोहराया जायेगा। यह एक ज़हर है जिसे वे निहित स्वार्थी तत्व फैला रहे हैं जिनके सरोकार केवल अपनी संपत्ति और अपने ऐशोआराम तक सीमित हैं। ममदानी ऐसी नीतियां अपनाने के पक्ष में हैं जिनसे समाज के सभी तबके लाभान्वित होंगे। उनके विरोधी न्यूयॉर्क के अरबपतियों से कह रहे हैं कि वे अमरीका के दूसरे हिस्सों में बस जाएँ। ममदानी का स्पष्ट मत है कि समाजवाद और समाज कल्याण का धर्म से कोई लेनादेना नहीं हैं और राज्य को ऐसी नीतियां बनाना चाहिए जिनसे समाज के सभी वंचित वर्ग लाभान्वित हों, फिर चाहे उनका धर्म कोई भी हो। (अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया। लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सेंटर फॉर स्टडी ऑफ़ सोसाइटी एंड सेकुलरिज्म के अध्यक्ष हैं) (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है) ईएमएस / 19 नवम्बर 25