2026 का विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए एक अहम मोड़ हो सकता है, खासकर उन राज्यों में जहाँ उसकी राजनीतिक पकड़ अभी मजबूत नहीं है।तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल और पुडुचेरी। जबकि असम में भाजपा पहले से सत्ता में है, वहां के चुनावों में भी यह पहचान और अवैध प्रवासन का मुद्दा मुख्य चुनावी हथियार बन सकता है। भाजपा के लिए इन राज्यों में घुसपैठ और तुष्टिकरण के मुद्दे राष्ट्रीय-सांस्कृतिक राजनीति के सहारे वोट हासिल करने की रणनीति का अहम हिस्सा हो सकते हैं। असम में अवैध प्रवासन का मुद्दा लंबे समय से संवेदनशील रहा है। असम की प्रदेश सरकार ने एक्ट 1950 को सक्रिय रूप से लागू करने की घोषणा की है, ताकि विदेशी लोगों की पहचान और उन्हें वापस भेजा जा सके। मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा है कि अब वे विदेशी पहचान किए गए लोगों को तुरंत वापस भेजने की प्रक्रिया को तेज करेंगे, और इसके लिए विदेशी ट्रिब्यूनल पर निर्भरता कम करेंगे। इसके अलावा, असम सरकार ने ऐडहार कार्ड जारी करने की प्रक्रिया को कड़ा कर दिया है ताकि अवैध प्रवासियों को पहचानना आसान हो सके। उदाहरण के लिए, वयस्कों के लिए जिला स्तर के अधिकारियों को ही नए आधार बनाने की अनुमति देने का प्रस्ताव है। सुप्रीम कोर्ट ने सेक्शन 6A के संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है, जिसे भाजपा ने मजबूती से स्वीकार किया है और अवैध प्रवासन को रोकने की नीति को एक ऐतिहासिक निर्णय बताया है। भाजपा ने यह भी आरोप लगाया है कि विपक्षी दल इस प्रवासन नीति को गलत तरीके से पेश करके लोगों में डर फैला रहे हैं। भाजपा की चुनावी रणनीति विशिष्ट और सबसे अलग रही है। घुसपैठ भाजपा असम में घुसपैठ के मुद्दे को अपनी मुख्य चुनावी लड़ाई बनाएगी। यह तर्क देगा कि अवैध प्रवासियों का हमला असम की पहचान, संसाधन और सामाजिक संरचना को खतरे में डाल रहा है। यह संदेश स्थानीय मतदाताओं विशेष रूप से असम के मूल निवासियों में सुरक्षा और अस्तित्व की चिंता को भुनाने में कारगर होगा। तुष्टिकरण और सांस्कृतिक पहचान का भी आधार लिया जा सकता है। भाजपा यह दिखाने की कोशिश करेगी कि कुछ विपक्षी दल अवैध प्रवासियों को वोट बैंक के रूप में प्रयोग कर रहे हैं, और इससे असम की सांस्कृतिक और भाषायी पहचान कमजोर हो रही है। यह तुष्टिकरण की राजनीति का आरोप लगाकर स्थानीय भावनाओं को गहरा कर सकता है।नागरिकता और गवर्नेंस भी अहम होगा। भाजपा यह दावा कर सकती है कि वह शासन में सिर्फ रूपक राजनीति नहीं करती, बल्कि कार्रवाई भी करती है । ट्रिब्यूनल को बायपास करना, त्वरित निर्वासन आदेश, और पहचान दस्तावेजों की कड़ी जाँच जैसे कदम यह दिखाते हैं कि पार्टी प्रवासन के मुद्दों को हल करने के लिए गंभीर है। वोट मैनेजमेंट और पहचान राजनीति के लिए महत्वपूर्ण घटक रहे है।भाजपा इसमे माहिर है।भाजपा की रणनीति संभवत अलग दिखाई दे सकती है। पहचान-राजनीति और स्थानीय सांस्कृतिक सुरक्षा पर आधारित होगी। असम बचाओ जैसा नारा स्थानीय असमियों को यह विश्वास दिला सकता है कि भाजपा उनकी आवाज़ है, जो न सिर्फ़ सुरक्षा की गारंटी दे सकती है, बल्कि उनकी सांस्कृतिक और जनसांख्यिकीय पहचान को सुरक्षित रखेगी। निर्वासन की तेज़ प्रक्रिया, आधार सख्ती और ट्रिब्यूनल बायपास जैसीनीतियामानवाधिकारवादियों और विपक्ष द्वारा चुनौती को न्योता दे सकती हैं। इससे भाजपा पर बलपूर्वक निष्कासन का आरोप लग सकता है। संवैधानिक और न्यायिक समीक्षा बहुत आवश्यक है। सुप्रीम कोर्ट और अन्य न्यायालयों में इस नीति की समीक्षा जारी रह सकती है। खासकर यदि यह प्रक्रियाएँ संवैधानिक अधिकारों को प्रभावित करती हों। अगर भाजपा इस मुद्दे को बहुत कठोर रूप में पेश करती है, तो उसे मुस्लिम और अन्य प्रवासी-वंशीय समूहों में संघर्ष और असंतोष का सामना करना पड़ सकता है, जो मतदान में उसकी प्रतिस्पर्धा को कमजोर कर सकता है।सिर्फ पहचान राजनीति पर्याप्त नहीं हो सकती। स्थानीय मतदाता यह भी देखेंगे कि भाजपा विकास, रोजगार और सामाजिक कल्याण में क्या योगदान दे रही है। यदि भाजपा सिर्फ डर की राजनीति करती दिखे, तो उसका फायदा सीमित हो सकता है।भाजपा पश्चिम बंगाल में पहले से ही एक प्रमुख विपक्षी दल है, लेकिन तृणमूल कांग्रेस की पैठ बहुत मजबूत है। आर्थिक, सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान के मुद्दे बंगाल में परस्पर जुड़े हुए हैं, और प्रवासन का मुद्दा भी यहाँ जटिल है क्योंकि यह जुड़ा हुआ है बंगाली भाषा, धर्म और पहचान के इतिहास से।भाजपा का संभावित चुनावी संदेश तुष्टिकरण का आरोप हो सकता है।भाजपा पश्चिम बंगाल में यह दावा कर सकती है कि टीएमसी ने तुष्टिकरण की राजनीति कर मुस्लिम आबादी को विशेष लाभ दिया है। यह तर्क उन हिस्सों में काम कर सकता है जहाँ हिंदू मतदाता को यह डर हो सकता है कि उनकी सांस्कृतिक प्राथमिकता और संसाधन पीछे छूट रहे हैं।भाजपा यह कह सकती है कि पश्चिम बंगाल को एक पहचान संकट का सामना करना पड़ रहा है, और स्थानीय संस्कृति और संसाधनों की रक्षा करना जरूरी है।अमित शाह जैसे शीर्ष नेतृत्व ने पहले ही टीएमसी की भ्रष्टाचार की सूची का ज़िक्र किया है। चुनाव में भाजपा यह संदेश दे सकती है कि टीएमसी सिर्फ सांप्रदायिक वोट बैंक के लिए सत्ता में बनी हुई है, जबकि भाजपा बेहतर प्रशासन और पारदर्शिता लाएगी। भाजपा और NDA गठबंधन पश्चिम बंगाल में अपनी मौजूदगी बढ़ाने की कोशिश करेंगे, और केंद्र-राज्य विकास व संसाधन वितरण को एक बड़ा मुद्दा बना सकते हैं, यह दिखाते हुए कि भाजपा-गठबंधन ही राज्य में स्थिरता और विकास ला सकता है।टीएमसी का संगठन और बूथ स्तर पर नेटवर्क बेहद मजबूत है, और वह सांस्कृतिक-पहचान के मुद्दों पर भाजपा की चुनौती का सामना कर सकती है। अगर भाजपा का तुष्टिकरण मुद्दा बहुत जोर से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की तरफ जाता है, तो यह हिंसा, सामाजिक तनाव, और पश्चिम बंगाल के लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए हानिकारक हो सकता है। केवल पहचान-राजनीति वोटरों को नहीं बांधेगी।उन्हें यह विश्वास भी चाहिए कि भाजपा शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार और विकास में काम कर सकती है।मतदाता सूची और एसआईआर का ममता विरोध कर रही है। पश्चिम बंगाल में चुनाव से पहले वोटर सूची की विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया विवाद का विषय बन सकती है। यदि यह प्रक्रिया पक्षपातपूर्ण या असमान देखी जाए, तो भाजपा को प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ सकता है। तमिलनाडु में राज्य राजनीति पर निवासी पहचान और द्रविड़ सत्ता संरचना का महत्वपूर्ण प्रभाव है।भाजपा की स्थिति तमिलनाडु में पारंपरिक रूप से कमजोर रही है, लेकिन उसने AIADMK जैसे स्थानीय दलों के साथ गठबंधन किया है। केंद्रीय नेतृत्व ने पहले ही 2026 में NDA-गठबंधन द्वारा तमिलनाडु में सरकार बनाने का दावा किया है। अमित शाह ने भ्रष्टाचार ख़ासकर रेत खनन घोटाला और द्रविड़ सरकार की विफलताओं पर निशाना साधा है। भाजपा तमिलनाडु में द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) को भ्रष्टाचार का प्रतीक बना सकती है। अमित शाह ने द्रविड़ सरकार पर खनन घोटाले और अनियमितताओं का आरोप लगाया है। भाजपा यह तर्क दे सकती है कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार तमिलनाडु में विकास को रोक रही नहीं है, बल्कि समर्थन कर रही है, और अगर NDA गठबंधन सत्ता में आए, तो अधिक निवेश और काम आएगा। शाह ने कहा है कि पिछले दशकों में केंद्र ने तमिलनाडु को बहुत बड़ी राशि जारी की है। संस्कृति और पहचान खास मुद्दा है। हालांकि घुसपैठ का मुद्दा तमिलनाडु में उतना प्रमुख नहीं हो सकता जितना उत्तर-पूर्वी राज्यों में, लेकिन भाजपा स्थानीय पहचान, धार्मिक और सांस्कृतिक सुरक्षा को हाइलाइट कर सकती है, खासकर अपने हिंदू-राष्ट्रवादी एजेंडे के हिस्से के रूप में। NDA गठबंधन (भाजपा + AIADMK) भाजपा की चुनावी हैसियत को मजबूत कर सकता है, और यह गठबंधन तमिलनाडु में स्थिरता और परिवर्तन का संदेश दे सकता है। आवेदन और गठबंधन दोनों के जरिये, भाजपा स्थानीय शक्ति केंद्रों के साथ मिलकर अपनी पैठ बढ़ा सकती है। स्थानीय राजनीति की जटिलता बड़ी अहम है। तमिलनाडु की राजनीति बहुत व्यक्तिगत और क्षेत्रीय है। द्रविड़ दलों (DMK, AIADMK) की जड़ें गहरी हैं और पहचान-राजनीति में भाजपा को स्थानीय मुद्दों भाषा, भूमि, संस्कृति पर चतुर रणनीति अपनानी होगी। एआईएडीएमकेके साथ गठबंधन की कीमत हो सकती है। यदि एआईएडीएमकेअपने स्थानीय वोट बैंक को बेहतर तरीके से आकर्षित कर ले, तो भाजपा की हिस्सेदारी सीमित रह सकती है। केवल भ्रष्टाचार और पहचान के मुद्दे ही मतदाताओं को नहीं जोड़ सकते।उन्हें रोज़मर्रा की समस्याओं , बेरोज़गारी, शिक्षा, में वास्तविक समाधान चाहिए। तमिलनाडु में भाषाई और सांस्कृतिक पहचान बहुत मजबूत है।भाजपा को अपना संदेश स्थानीय भाषा, सांस्कृतिक प्रतीकों और भावनाओं के अनुरूप तैयार करना होगा ताकि वह दूरस्थ केंद्र जैसी छवि से बच सके।केरल में भाजपा की स्थिति अभी बहुत सीमित है। केरल में लेफ्ट लेग और कांग्रेस-मुस्लिम गठबंधन की पकड़ मजबूत रही है।सांप्रदायिक राजनीति के बजाय, लोग अक्सर विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों पर वोट करते हैं।वोटर सूची (SIR) प्रक्रिया भी केरल में 2026 से पहले चर्चा का विषय हो सकती है। भाजपा केरल में यह दावा कर सकती है कि कुछ पार्टियाँ धार्मिक (मुस्लिम) तुष्टिकरण कर रही हैं, और इससे स्थानीय हिंदू और अन्य समुदायों की सुरक्षा या पहचान कमजोर हो रही है। इससे सांप्रदायिक पहचान का भाव जगाया जा सकता है। वोटर सूची और मतदाता पहचान का मुद्दा उठाया जा सकता है।भाजपा वोटर सूची (SIR) प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित कर सकती है, यह तर्क देते हुए कि यह केवल सूची की साफ-सफाई के लिए है, न कि किसी विशेष धर्म या समूह को बाहर करने की मंशा से। भाजपा यह दिखा सकती है कि उसकी राष्ट्रीय और केंद्र सरकार में अनुभव है, और वह बेहतर प्रशासन, केंद्रीय अनुदान और विकास परियोजनाओं को केरल में ला सकती है।स्थानीय विकास एजेंडा पर भी फोकस होगा। भाजपा को यह महत्व देना होगा कि वह केवल पहचान-राजनीति पर निर्भर न हो, बल्कि केरल के मतदाताओं को रोज़मर्रा की उभरती समस्याओं जैसे बेरोजगारी, जनसंख्या वृद्धि, युवा पलायन के लिए व्यावहारिक समाधान दे। केरल में कांग्रेस और लेफ्ट का मजबूत नेटवर्क है। उनकी विचारधारा और राजनैतिक संस्कृति भाजपा की हिंदू-राष्ट्रवादी पहचान के साथ कम अनुकूल हो सकती है। धार्मिक और जातिगत विभाजन की सीमाएँ पर ध्यान केंद्रित करना होगा।इस वर्ष से चुनावी तैयारी में लग जाना होगा। केवल तुष्टिकरणका मुद्दा केरल में उतना प्रभाव नहीं कर सकता क्योंकि मतदाता बहुत हद तक विचारधारित और प्रगतिशील हैं। भाजपा को स्थानीय भाषा मलयालममें सशक्त और संवेदनशील संदेश देना होगा, जो केवल राष्ट्रीय पहचान की राजनीति से आगे जाए और विकास-केन्द्रित एजेंडा पेश करे। अगर भाजपा सिर्फ पहचान-राजनीति पर निर्भर करती है और स्थानीय विकास या कल्याण को नजरअंदाज करती है, तो मतदाता इसे असंगत और नकारात्मक करार दे सकते हैं।पुडुचेरी केंद्र शासित प्रदेश है।पुडुचेरी में 2026 में विधानसभा चुनाव होंगे । इस केंद्र शासित इलाके में भाजपा का संभावित रणनीतिक लाभ हो सकता है क्योंकि यहाँ केंद्र सरकार का प्रभाव अधिक होता है, और स्थानीय प्रशासकीय मुद्दों में भाजपा अपनी राष्ट्रीय शक्ति का दावा कर सकती है।भाजपा सुरक्षा और पहचान मुद्दों के साथ-साथ विकास, पर्यटन, केंद्रीय निवेश और आधारभूत संरचना को भी चुनावी एजेंडा में रख सकती है। पुडुचेरी के मतदाता अपेक्षाकृत छोटे और केंद्र-नियंत्रित प्रशासन के दृष्टिकोण से भाजपा की स्थिरता व दक्षताकी नीति को समर्थन दे सकते हैं।महत्वपूर्ण धार्मिक या प्रवासन-सम्बन्धित सांप्रदायिक विभाजन के बजाय, स्थानीय विकास, भाषा और बजट वितरण भाजपा के लिए अधिक निर्णायक हो सकते हैं। भाजपा की चुनावी ताकत और रणनीति घुसपैठ और तुष्टिकरण मुद्दा हावी होगा । भाजपा इन राज्यों में अपनी चुनावी रणनीति का एक बड़ा हिस्सा पहचान राजनीति पर केंद्रित कर सकती है। घुसपैठऔर तुष्टिकरण दो मुद्दे ऐसे हैं जो सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान की चिंता को उभारते हैं। ये मुद्दे मतदाताओं में डर, सुरक्षा की भावना और सामूहिक पहचान के संरक्षण की भावना को जगाने में प्रभावी हो सकते हैं। विशेष रूप से असम में, अवैध प्रवासियों के मुद्दे स्थानीय आबादी असमियों की पहचान, संसाधन, भूमि अधिकार के लिए बहुत संवेदनशील हैं। भाजपा इस मुद्दे को जनता के असंतोष के स्रोत के रूप में उपयोग कर सकती है और यह संदेश दे सकती है कि वह उनकी पहचान और संसाधन की रक्षा करेगी।भाजपा यह तर्क दे सकती है कि वह सिर्फ राष्ट्रीय नेता नहीं है, बल्कि वह केंद्र और राज्य के बीच संसाधन समन्वय और शासन दक्षता लाने में सक्षम है। यह विकास-और-गवर्नेंस एजेंडा को पहचान-राजनीति के साथ जोड़ने का तरीका हो सकता है। चुनाव संचालन और संगठन की।मजबूती जरूरी है।भाजपा ने पहले से इन राज्यों में संगठन मजबूत करना शुरू कर दिया है।जैसे चुनाव प्रभारी नियुक्त करना , जिससे वह बूथ स्तर पर पहचान-राजनीति को प्रभावी रूप से मैनेज कर सके। पहचान-राजनीति जितनी शक्तिशाली है, उतनी ही खतरनाक भी हो सकती है। अगर बीजेपी इसे अत्यधिक सांप्रदायिक रूप में पेश करती है, तो यह सामाजिक तनाव, हिंसा और दंगों का कारण बन सकता है। हर राज्य में “घुसपैठ” और “तुष्टिकरण” का मुद्दा समान रूप से असरदार नहीं है। उदाहरण के लिए, तमिलनाडु और केरल में यह मुद्दा उतना गंभीर मतदाता चिंता नहीं हो सकता जितना असम में है। इसलिए भाजपा को स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप रणनीति तैयार करनी होगी। विकास मुद्दों की अनदेखी नही चल सकती है।यदि भाजपा सिर्फ़ पहचान-राजनीति पर जोर दे और विकास और कल्याण की मांगों को अनदेखा करे, तो वह उन मतदाताओं को खो सकती है जो रोज़मर्रा के जीवन सुधार चाहते हैं। निर्वासन, पहचान सत्यापन और आधार सख्ती जैसी नीतियाँ कानूनी चुनौतियों और मानवाधिकार संगठन की आलोचना की दायरा में हो सकती हैं। 2026 के विधानसभा चुनावों में भाजपा कई राज्यों में “घुसपैठ” और “तुष्टिकरण” मुद्दों को अपने चुनावी प्रचार का केंद्र बना सकती है। विशेष रूप से असम में यह रणनीति बहुत मजबूत आधार पर काम कर सकती है क्योंकि वहां अवैध प्रवासन और पहचान की चिंता गहरी है। पश्चिम बंगाल में भाजपा तुष्टिकरण और पहचान-राजनीति का उपयोग कर टीएमसी को चुनौती दे सकती है। तमिलनाडु में, हालांकि प्रवासन मुद्दा उतना प्रमुख नहीं हो सकता, भाजपा भ्रष्टाचार, गवर्नेंस और स्थानीय पहचान संस्कृति पर जोर देकर चुनावी मैदान में उतरेगी। केरल और पुडुचेरी में भाजपा को अधिक सावधानीपूर्वक रणनीति अपनानी होगी, क्योंकि वहाँ विकास-और-गवर्नेंस मुद्दे पहचान राजनीति जितने असरदार होंगे। लेकिन इस रणनीति में भाजपा को बड़ी चुनौतियों का सामना करना होगा।सामाजिक ध्रुवीकरण का जोखिम, कानूनी विवाद, मानवाधिकार का विरोध, और मतदाताओं की जमीनी उम्मीदों को संतुष्ट करने का दबाव। यदि भाजपा इन मुद्दों को सूझ-बूझ के साथ और स्थानीय संदर्भों के अनुरूप पेश करती है, तो यह उसकी ताकत बन सकती है। अन्यथा, यह उसकी राजनीति के लिए एक खतरनाक खेल भी साबित हो सकती है। (L 103 जलवंत टाऊनशिप पूणा बॉम्बे मार्केट रोड नियर नन्दालय हवेली सूरत मो 99749 40324 वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार-स्तम्भकार) ईएमएस / 21 नवम्बर 25