(गुरु तेग बहादुर बलिदान दिवस 24 नवंबर) गुरु तेग बहादुर दस गुरुओं में से नौवें थे जिन्होंने सिख धर्म की स्थापना की और 1665 से 1675 में अपने सिर कलम किए शहीद होने तक सिखों के गुरु रहे। बहादुर की ज़िंदगी और सोच इस बात में है कि कैसे गुरु नानक के एक ओंकार (ईश्वर की एकता) के संदेश को आगे बढ़ाते हुए, गुरु तेग बहादुर ने इंसानियत को सभी डर (निरभौ) से आज़ाद होने और सभी दुश्मनी (निरवैर) से अछूते रहने की प्रेरणा दी। उन्होंने अपने पिता (गुरु हरगोबिंद, छठे गुरु) और अपने बेटे (गुरु गोबिंद सिंह, दसवें गुरु) के बीच एक नैतिक और ऐतिहासिक कड़ी का काम किया। अपने पिता की निडर और बेबाक भावना को अपनाते हुए, उन्होंने गुरु गोबिंद को विरासत सौंपी, और सिखों को एक नई एकता और पहचान देने के लिए एक मज़बूत नींव दी। गुरु तेग बहादुर के सबसे बड़े बलिदान ने खालसा बनाने का रास्ता तैयार किया और इस तरह गुरु गोबिंद सिंह ने, गुरु नानक के मिशन पर काम करते हुए और अपने पिता के दिखाए रास्ते पर चलते हुए, गुरु नानक के सिखों को ऐसे संत सैनिकों में बदल दिया जो कट्टरता और असहिष्णुता के खिलाफ अपनी अंतरात्मा की आवाज़ की रक्षा कर सकते थे, जो उस समय के मुग़ल शासक की क्रूरता के को ख़त्म करने और मानवता की रक्षा हेतु एक ज़रूरी अभियान बन गई थी। उनका जन्म अमृतसर, पंजाब में हुआ था।सिखों के 9 वें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर एक महान योद्धा, आध्यात्मिक व्यक्तित्व और मातृभूमि के प्रेमी नौवें सिक्ख गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी के सर्वाेच्च बलिदान की मानवता सदैव ऋणी रहेगी। उन्होंने धर्म, मातृभूमि और जनता के अधिकारों की रक्षा के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर दिया। इसीलिए उन्हें ‘‘हिंद की चादर‘‘ के सर्वोच्च सम्मान से नवाजा गया। उनको भगवान श्री राम के प्रति एक अनन्य प्रेम था. अद्वितीय तरीके से श्री गुरु तेग बहादुर जी ने हमें निडर होकर एक स्वतंत्र जीवन जीने की शिक्षा दी। मुगल सम्राट औरंगजेब द्वारा गुरू जी और उनके परिवार को भारी यातनाएं देने पर भी उन्होंने आत्मसमर्पण नहीं किया, बल्कि उन्हें एक दिव्य शांति के साथ सहन किया। त्याग मल से तेग बहादुर में उनका परिवर्तन मानव इतिहास में परम धार्मिक दृढ़ता, नैतिकता और बहादुरी की अद्भुत कहानी है। गुरू जी ने अपने जीवन का बलिदान दिया लेकिन सत्य और धार्मिकता के मार्ग को नहीं छोड़ा। उनकी दिव्य शक्ति ऐसी थी कि जब उनके शिष्यों को उनके सामने क्रूरता से मारा जा रहा था तो वे गहरे ध्यान में थे। श्री गुरु तेग बहादुर जी ने कहा था कि धर्म एक कर्तव्य है, और एक आदर्श जीवन जीने का तरीका है। गुरू जी की शहादत मनुष्य को कर्तव्य परायणता, स्वतंत्रता व देश के प्रति प्रतिबद्धता का पाठ पढ़ाती है। आज की युवा पीढ़ी को श्री गुरु तेग बहादुर जी के जीवन, चरित्र और बलिदान से प्रेरणा पाकर मानवीय और नैतिक मूल्यों को जीवन में आगे बढ़ने की जरूरत है ताकि भारत फिर से विश्व गुरु बने। श्री गुरु तेग बहादुर जी ने अत्याचार और अन्याय के आगे झुकने से इन्कार कर दिया था। उन्होंने बेहद कठिनाईयों के बावजुद आदर्श और सिद्धांत का मार्ग चुना। कश्मीरी पंडितों का एक प्रतिनिधिमंडल ‘चक नानकी‘ स्थान पर उनसे मिलने पहूॅंचा जो आज पवित्रनगरी ‘‘श्री आनंदपुर साहिब‘‘ के नाम स प्रसिद्ध है। उन्होंने धैर्यपूर्वक कश्मीरी पंडितों की बात सुनने के बाद कहा कि वे औरंगजेब या उनके आदमियों को यह बता दें कि वे अपना धर्म तभी बदल सकते हैं जब उनके गुरु ऐसा करेंगे। इसके बाद औरंगजेब के अत्याचारीकृत्य इतने भयानक हुए कि आज भी उन्हें याद करने से डर लगता है। श्री गुरु तेग बहादुर जी को उनके तीनों भक्तों – भाई सती दास, भाई मति दास और भाई दयाला के साथ बंदी बना लिया गया। जब उन्होंने इस्लाम स्वीकार करने से क्या कलमा पढ़ने से ही इंकार कर दिया तो तीनों को उनके गुरु के सामने मार दिया गया। औरंगजेब ने इतिहास में इतना क्रूरता से उन सभी राम के भक्तो को इतनी बेहराहमी से मारा की वो तो शहीद हो गए और वाहेगुरु जी प्रकाश में समाहित हो गए लेकिन उनको इस ओर प्रेरित करने हेतु उनके पुत्र श्री गुरु गोविंद सिंह जी जो मात्र 8 साल के थे उन्होंने प्रेरित किया किया तो उन्होंने कश्मीरी पंडितो की रक्षा हेतु और भगवान राम ही हिन्दू धर्म इससे श्री गुरु तेग बहादुर जी अचंभित हुए और उन्होंने वर्ष 1675 में शहादत को गले लगा लिया। जब उनका सिर कलम किया गया तो वे स्वयं ध्यानरत थे। आज दिल्ली के चांदनी चौक में गुरुद्वारा शीश गंज साहिब त्याग और बलिदान की गाथा का प्रतीक है, जिसका मानव इतिहास में कोई मुकाबला नहीं है। भाई जैता जी श्री गुरु तेग बहादुर जी के पवित्र शीश को श्री आनंदपुर साहिब ले गए, जो दुनिया में सिक्खों के पवित्र स्थानों में से एक है। उनके बलिदानों ने न केवल ‘‘भगवान राम ‘‘ के सिद्धांत पर आधारित एक धर्म की रक्षा और भारतीय सभ्यता और संस्कृति को विलुप्त होने से बचाया, बल्कि एक दृढ़ और समावेशी राष्ट्र बनाने के रूप में भी काम किया। सिक्ख धर्म की नींव की स्थापना मानव इतिहास में एक सामान्य बात नहीं थी, बल्कि यह इस्लाम के खिलाफ हिंदू धर्म की ढाल बन गई सभी वाहेगुरु जी के नाम पर मर मिटने वाले सच्चे राम भक्त थे । यह आज एक महान परंपरा व विरासत है, जिसे नौवें सिक्ख गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी ने अपने धर्म की रक्षा के लिए लोगों को शक्ति व मजबूती प्रदान की बल्कि सिक्ख धर्म की महानता को शिखर तक पहूॅचाया। श्री गुरु तेग बहादुर जी जानते थे कि उनके भक्तों ने बिना किसी पछतावे के धर्म के लिए कीमत चुकाई है। उन्होंने सभी प्रलोभनों को अस्वीकार कर कठिनाइयों का सामना किया, लेकिन उन्होंने आंसू की एक बूंद भी नहीं बहाई। श्री गुरु तेग बहादुर जी का जीवन धर्म और मानवता के लिए एक सच्ची शहादत है। श्री गुरु तेग बहादुर जी ने औरंगजेब की क्रूरता के आगे हार नहीं मानी। उन्होंने हर सवाल के जवाब में कहा कि – ‘‘मैं सिक्ख हूं और सिक्ख रहूंगा‘‘! आज श्री गुरु तेग बहादुर जी की शिक्षाओं और बलिदान से हमें सबक लेने की जरूरत है । उनका बलिदान, सत्य अहिंसा में विश्वास, और सबके प्रति एक परोपकारी दृष्टिकोण के लिए प्रेरणादायी है। उन्होंने अंधविश्वास, जाति आधारित भेदभाव और छुआछूत के खिलाफ लड़ाई लड़ी ताकि हर इंसान अपनी पसंद का आदर्श जीवन जी सके। एक सच्चा धर्म हमें समाज और लोगों की सर्वाेत्तम तरीके से सेवा करना सिखाता है। श्री गुरु तेग बहादुर जी कमजोर और वंचितों की बेहतरी के लिए लड़े। उनके सपुत्र गुरु गोबिंद सिंह ने न केवल अपने पिता के सिद्धांतों और मूल्यों को बरकरार रखा, बल्कि खालसा बनाकर उन्हें आगे बढ़ाया, जो धार्मिकता और न्याय के लिए लड़ाई का एक शानदार प्रतीक है। हमें श्री गुरु तेग बहादुर जी की महान शिक्षाओं को सदैव याद रखना चाहिए। हमें सुख, दुख, सम्मान और अपमान में स्थिर और सन्तुलित जीवन व्यतीत करना चाहिए। उनकी शिक्षाएँ हमें उद्देश्यपूर्ण जीवन और समानता, सद्भाव नैतिक मूल्यों का पालन करने व सामाजिक जीवन में सुरूचिता बनाए बनाए रखने के मार्ग पर चलना सिखाती हैं। श्री गुरु तेग बहादुर जी के महान शब्द मानवता के लिए ऊर्जा और ज्ञान का एक चिरस्थायी स्रोत हैं। उनके शब्दों के मधुर पाठ का श्रद्धालुओं पर विद्युतीय प्रभाव पड़ता था। उन्होंने सबसे शांतिपूर्ण और मानवीय तरीके से निरंकुश और कट्टर शासक के खिलाफ लड़ाई लड़ी। उनकी शिक्षाएं आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी। श्री गुरु तेग बहादुर का जीवन हमें बिना विचलित हुए हर स्थिति का सामना करने और पूरी तरह से शांति और दृढ़ता के साथ जीना सिखाता है। ईएमएस/ 23 नवम्बर 2025