यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की का एक बयान आया, जिसमें उन्होंने कहा, हम अपनी जमीन और जमीर दोनों ही खोने की कगार पर खड़े हो गए हैं। रूस के साथ युद्ध के चार साल पूर्ण हो गए हैं। रूस और यूक्रेन को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। इस लड़ाई में नाटो देश जो चाहते थे वह भी अपने मकसद मे कामयाब नहीं हो पाए। यूक्रेन के हाथ भी कुछ नहीं लगा। नाटो देशों और अमेरिका ने यूक्रेन को रूस के खिलाफ खड़ा करके यूक्रेन को एक तरह से बर्बाद कर दिया है। इस लड़ाई में अमेरिका और नाटो देशों ने यूक्रेन को जिस तरह का वादा किया था वैसा साथ नहीं दिया। अब नाटो देश और अमेरिका ने जो हथियार दिए हैं उसके भी पैसे मांग रहे हैं। अमेरिका ने तो उसके बदले यूक्रेन का एक हिस्सा ही मांग लिया था। अमेरिका और नाटो देशों के भरोसे पर यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने रूस के साथ युद्ध छेड़ दिया था। यूक्रेन, सोवियत रूस का एक हिस्सा था। जब सोवियत रूस का विघटन हुआ तब यूक्रेन ने अपने आप को सोवियत रूस से अलग कर स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया था। यूक्रेन की आबादी अपने आप को रूस के ज्यादा निकट पाती है। यूक्रेन और रूस की संस्कृति एक दूसरे से जुड़ी हुई है। दोनों ही देशों के लोगों के एक दूसरे के साथ रिश्ते भी हैं। नाटो देशों ने यूक्रेन को जो लालच दिया था उस लालच में यूक्रेन ने जो भविष्य देखा था, उस लिहाज से नाटो देशों और अमेरिका ने एक तरह से यूक्रेन के साथ धोखा किया। उन्होंने यूक्रेन के साथ विश्वासघात किया है। पिछले 4 वर्षों में यूक्रेन की आम जनता का युद्ध के कारण जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया। नागरिकों को भारी परेशानी झेलनी पड़ी। हजारों लोगों की मौत हो गई। यूक्रेन ने कई दशकों में जो विकास किया था, इस लड़ाई में वह भी बर्बाद हो गया। नाटो देशों के संगठन और संयुक्त राष्ट्र संघ ने यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध बंद कराने के लिए कोई सार्थक प्रयास नहीं किए। अब इस युद्ध में यूक्रेन का सब कुछ बर्बाद हो गया है। अमेरिका जैसे देश भी अपने हितों को साधने में यूक्रेन को दबाने का काम कर रहे हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 28 शर्तों के साथ एक प्लान तैयार करके जेलेंस्की को दिया है। डोनाल्ड ट्रंप का कहना है कि यदि उसने इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया तो ऐसी स्थिति में अमेरिका भविष्य में उसकी कोई मदद नहीं करेगा। यूक्रेन के लिए यह स्थिति आसमान से गिरने और खजूर में अटकने जैसी हो गई है। ट्रंप के शांति प्रस्ताव में यूक्रेन को अपना 20 फ़ीसदी हिस्सा रूस को देना होगा। इसमें पूर्वी यूक्रेन के डोनबास का इलाका भी शामिल है। यूक्रेन मात्र 6 लाख सैनिकों वाली सेना को रख पाएगा। नाटो देशों के संगठन में यूक्रेन की एंट्री नहीं होगी। नाटो सेनायें यूक्रेन में नहीं रहेंगी। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टारमर कह रहे हैं, वह यूक्रेन के साथ हैं। यूरोप में शांति स्थापना के लिए यूक्रेन के पक्ष को मजबूती से रखना होगा। यूक्रेन को सुरक्षा कवच देने की बात कर रहे हैं। युद्ध लड़ने के लिए जो आर्थिक और सामरिक सहायता चाहिए थी वह तो दी नहीं, अभी भी भरोसे पर रख रहे हैं। वहीं ट्रंप ने जो प्रस्ताव जेलेंस्की को दिया है, उस प्रस्ताव में यूक्रेन के हाथ कुछ नहीं लग रहा है। यूक्रेन को शांति स्थापित करने के लिए अपना बहुत बड़ा हिस्सा रूस को देना होगा। यदि यूक्रेन ने शांति प्रस्ताव नहीं माना, तो अमेरिका ने यूक्रेन का साथ छोड़ने की धमकी दी है। ऐसी स्थिति में यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की अब खुद मानकर चल रहे हैं, वह नाटो देशों और अमेरिका के फैलाये गए जाल में बुरी तरह से फंस गए हैं। ट्रंप द्वारा जो शांति प्रस्ताव दिया गया है उसे ना उगलते बन रहा है, ना निगलते बन रहा है। यूक्रेन इस शांति प्रस्ताव के तहत ना अपनी जमीन बचा पा रहा है, ना ही अपने जमीर को ही बचा पा रहा है। रुस ने यूक्रेन को तो नाटो से दूर रहने को ही कहा था। यूक्रेन ने रूस के साथ युद्ध करके अपना वह सब कुछ खो दिया है। जो उसका वैभव था। रूस को भी बड़ी आर्थिक, सामरिक और बड़ी संख्या में जनहानि हुई है। यूक्रेन ने अमेरिका और नाटो देशों के भरोसे पर विश्वास करके सबसे बड़ी गलती की। यूक्रेन ने तेजी के साथ अपने विकास, आर्थिक एवं सामरिक हितों को खो दिया है। चार वर्ष बाद अब यूक्रेन को अपनी गलती का एहसास हो रहा है। यूक्रेन को अब लग रहा है- ना खुदा ही मिला, ना बिसाले सनम। यूक्रेन की यह हालत को देखकर दुनिया के अन्य देशों के शासकों को सबक लेना चाहिए। बड़ी-बड़ी महाशक्तियां अपने स्वार्थ के लिए किस तरह से छोटे देशों को अपना मोहरा बनाती हैं। अमेरिका और नाटो देशों ने रूस को कमजोर करने के लिए यूक्रेन को उकसाया। यूक्रेन को बीच रास्ते में छोड़कर अलग हो गए। रूस और यूक्रेन का युद्ध छोटे देशों के लिए एक सबक है। अमेरिका ने एक समय इसी तरह से ईरान का उपयोग, इराक के साथ लड़ाई लड़ने के लिए किया था। आज ईरान और अमेरिका के कैसे रिश्ते हैं, यह सारी दुनिया देख रही है। इराक का क्या हुआ। यह सभी के सामने है। इस तरह की घटनाओं से सबक लेने की जरूरत है। ईएमएस / 23 नवम्बर 25