राष्ट्रीय
22-Nov-2025
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नई दिल्ली,(ईएमएस)। कल यानी रविवार को रिटायर हो रहे सीजेआई बीआर गवई ने परपंरा से हटकर दिए गए एक फैसले को उजागर किया। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के विदाई समारोह में उन्होंने न्यायिक परंपरा से हटकर अपने फैसलों पर सार्वजनिक रूप से टिप्पणी की। सीजेआई ने अपना सबसे महत्वपूर्ण फैसला बुलडोजर न्याय के खिलाफ दिए गए फैसले को बताया। इसके बाद उन्होंने अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए नौकरी आरक्षण में उप-वर्गीकरण की अनुमति देने वाले फैसले को महत्वपूर्ण करार दिया। चूंकि उन्होंने अपने सभी फैसले पूरे कर लिए हैं और उनके पास अब कोई न्यायिक कार्य नहीं बचा है, इसलिए उन्होंने सार्वजनिक रूप से टिप्पणी करने में संकोच नहीं किया। सीजेआई गवई ने बुलडोजर जस्टिस के खिलाफ अपने फैसले को सबसे महत्वपूर्ण बताया और इसे कानून के शासन के मूल सिद्धांत के विरुद्ध बताया। उन्होंने कहा, बुलडोजर न्याय कानून के शासन के मूल सिद्धांत के खिलाफ है। किसी व्यक्ति पर अपराध का आरोप लगने या दोषी ठहराए जाने के कारण घर को कैसे गिराया जा सकता है? उसके परिवार और माता-पिता का क्या दोष है? आश्रय का अधिकार एक मौलिक अधिकार है। सीजेआई गवई ने कहा कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई-केंद्रित होने की पारंपरिक धारणा से खुद को दूर रखा और संस्था से संबंधित निर्णय लेने से पहले हमेशा अपने सभी सहकर्मियों से सलाह ली। उन्होंने अपने छोटे से कार्यकाल के दौरान उच्च न्यायालयों में 107 न्यायाधीशों की नियुक्ति का उल्लेख किया। उन्होंने कॉलेजियम की बैठकों में सौहार्दपूर्ण माहौल के लिए अपने सहयोगियों को धन्यवाद दिया। हालांकि, उन्होंने उल्लेख किया कि जस्टिस बीवी नागरत्ना ने जस्टिस विपुल एम पंचोली को एससी न्यायाधीश के रूप में अनुशंसित करने के कॉलेजियम के विकल्प का विरोध करते हुए एक लंबा पत्र लिखा था। सीजेआई गवई ने भारत में न्यायपालिका कानून के शासन की रक्षा कैसे करती है, इसे उजागर करने के लिए विदेशों में अपने भाषणों में भी इस फैसले का उल्लेख किया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में कहा था कि कार्यपालिका एक साथ जज, जूरी और जल्लाद की भूमिका नहीं निभा सकती। दूसरा सबसे महत्वपूर्ण फैसला एससी और एसटी को नौकरी आरक्षण का लाभ उठाने के लिए उप-वर्गीकरण की अनुमति देने वाला था। उन्होंने कहा कि यह कल्पना करना मुश्किल है कि एक मुख्य सचिव के बच्चों की तुलना एक कृषि मजदूर के बच्चों से कैसे की जा सकती है, जिनके पास शिक्षा या संसाधनों तक कोई पहुंच नहीं है। उन्होंने बाबासाहेब अम्बेडकर को उद्धृत करते हुए कहा कि समानता का अर्थ सभी के साथ समान व्यवहार करना नहीं है, क्योंकि इससे आगे की असमानता पैदा होगी। वीरेंद्र/ईएमएस/22नवंबर2025