लेख
24-Nov-2025
...


नवम्बर 2025 में दक्षिण अफ्रीका के जोहानिसबर्ग में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन इतिहास में एक मील का पत्थर है, क्योंकि यह पहली बार जी-20 का सम्मेलन अफ्रीकी महाद्वीप पर हो रहा है। यह सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं है, बल्कि एक रणनीतिक दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है । अफ्रीका और विकासशील देशों की चुनौतियों को वैश्विक आर्थिक मंच पर प्राथमिकता देना। जी-20 की अध्यक्षता (2025) दक्षिण अफ्रीका को प्राप्त है, और इस वर्ष की थीम है ।एकजुटता, समानता, स्थिरता। यह बदलाव इस बात का प्रतीक है कि ग्लोबल साउथ विशेष रूप से अफ्रीका अब सिर्फ जी-20 का हिस्सा नहीं है, बल्कि उसकी गवर्नेंस संरचनाओं को आकार देने वाला शक्ति केंद्र बन रहा है। अफ्रीकी यूनियन ने भी इस भूमिका का स्वागत किया है। दक्षिण अफ्रीका ने जी-20 प्राथमिकताओं में सामाजिक न्याय और विकास को बहुत ऊपर रखा है। उनका कहना है कि आर्थिक वृद्धि अकेले काफी नहीं है । उसे इंक्लूज़िव वृद्धि, रोज़गार, और गरीबी उन्मूलन के साथ जोडऩा होगा। विशेष रूप से, जी-20 ने पहली बार मीटिंग आयोजित की है, जिसका फोकस बेरोज़गारी, युवा रोजगार, लैंगिक असमानताएँ और डिजिटलाइजेशन है। लेबर और रोजगार मंत्रियों की घोषणा में गुणवत्ता वाले रोज़गार डिग्निटी के साथ काम और सोशल सुरक्षा जैसे मुद्दे प्रमुख रहे हैं। यह समझना महत्वपूर्ण है कि जी-20 की यह सोच सिर्फ आर्थिक समस्या हल करने तक सीमित नहीं है, बल्कि सामाजिक संरचनाओं को बदलने की है। ताकि विकास सिर्फ अमीरों तक सीमित न रहे, बल्कि समाज के कमजोर हिस्सों तक पहुंचे। अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संरचनाओं का सुधार फोकस और IMF, विश्व बैंक और अन्य संस्थाएं पर विश्लेषण भी अवश्य होना है।दक्षिण अफ्रीका ने जी-20 के मंच का उपयोग अंतरराष्ट्रीय वित्तीय वास्तुकला में सुधार की मांग करने के लिए किया है। विशेष रूप से, वह उन देशों की आवाज़ उठाना चाहता है जो उच्च ऋण बोझ के अधीन हैं । बहुत सारे विकासशील देशों को अपने का भारी भार झेलना पड़ रहा है। उनकी रणनीति यह है कि न्यायपूर्ण और प्रत्यास्थ वित्तीय तंत्र बनाया जाए, जहां ज़्यादा लचीले ऋण पुनर्गठन, क़र्ज़ राहत और बेहतर विकास वित्तपोषण हो सके। इसके अलावा, जी-20 विकास कार्य समूह में सामाजिक सुरक्षा फ़्लोर की अवधारणा को आगे बढ़ाया जा रहा है, ताकि गरीबी और असमानता को कम किया जा सके। इस तरह, दक्षिण अफ्रीका यह संदेश देना चाहता है कि विकासशील और अत्यधिक कर्ज़ग्रस्त देशों को वित्तीय प्रणाली में बेहतर और अधिक समान हिस्सेदारी मिलनी चाहिए न कि सिर्फ़ बड़े आर्थिक शक्तियों की सेवा करना।जलवायु परिवर्तन दक्षिण अफ्रीका की जी-20 प्राथमिकताओं में एक केंद्रीय भूमिका है। मेज़बानी देश के रूप में, इसने न्यायपूर्ण संक्रमण की वकालत की है । अर्थव्यवस्थाओं को ग्रीन उर्जा की ओर ले जाने में, लेकिन साथ ही यह सुनिश्चित करना कि गरीब और कमजोर समुदायों को इसके नकारात्मक प्रभावों से बचाया जाए। जी-20 सामाजिक शिखर सम्मेलन में समावेशी जलवायु न्याय एक थीम रही है, जहाँ यह विचार किया गया कि कैसे विकासशील देशों को क्लाइमेट-फिनेंसिंग प्राकृतिक आपदाओं और आपदा-प्रतिरोधक संरचनाओं में अधिक सहयोग मिल सके। इसके अलावा, ब्राज़ील के राष्ट्रपति लूला दा सिलवा ने जी-20 में फॉसिल फ्यूल (जैव ईंधन) के चरणबद्ध उन्मूलन की योजना पेश करने का संकेत दिया है। यह दर्शाता है कि जी-20 में पारिस्थितिकी-संक्रमण केवल पर्यावरणीय मुद्दों तक सीमित नहीं। यह आर्थिक और सामाजिक न्याय का भी मामला है।कृषि, खाद्य सुरक्षा और पोषणआदि पर दुनिया का ध्यान रहेगा।दक्षिण अफ्रीका की जी-20 प्राथमिकताओं में खाद्य सुरक्षा भी महत्वपूर्ण है। उप अध्यक्षों और मंत्रियों की तैयारियों में यह बात सामने आई है कि कृषि प्रणाली में लचीलापन बढ़ाया जाना चाहिए ताकि जलवायु व्यवस्था, आपूर्ति श्रृंखला व्यवधान, और खाद्य असुरक्षा जैसी चुनौतियों का सामना किया जा सके। जी 20 के व्यापार और निवेश समूह ने भी सुझाव दिए हैं कि कृषि को टिकाऊ और सहयोगात्मक रूप से पुनर्गठित किया जाए, ताकि छोटे किसानों, विशेष रूप से विकासशील देशों में, लाभ मिल सके। यह कदम पोषण सुधार से जुड़ा है क्योंकि उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि उत्पादन तक पहुंच कमजोर वर्गों के हाथों में हो खासकर गरीबी और असमानता के संदर्भ में। यूएन 2030 एजेंडा और सतत विकास लक्ष्यों को ध्यान में रखकरदक्षिण अफ्रीका की जी-20 अध्यक्षता का एक बड़ा उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र 2030 एजेंडा की प्रगति को गति देना है। जी-20 के समावेशी मंच जैसे SDGs की चर्चा उच्च स्तर पर हो रही है। जी-20 में यह उल्लेख है कि गरीबी ,असमानता और स्थिर आर्थिक विकास जैसी चुनौतियों को हल करने के लिए सीधे जी-20 मंच का उपयोग किया जा सकता है। दक्षिण अफ्रीका यह रेखांकित कर रहा है कि जी-20 को गिरावटों को बंद करने के लिए सिर्फ आर्थिक नीतियों पर भरोसा नहीं करना चाहिए, बल्कि सोशल सुरक्षा, वित्तीय सुधार और गवर्नेंस सुधार को भी प्राथमिकता देनी चाहिए ताकि 2030 तक SDG लक्ष्यों में अस्थिरता न हो। वैश्विक असमानता पर पूरा फोकस है। अमीर और गरीब देशों के बीचअसमानता के चक्र को तोड़ना पर बल दिया जाएगा।दक्षिण अफ्रीका ने जी-20 में वैश्विक असमानता को एक शीर्ष मुद्दा बनाया है। उसने एक विशेषज्ञ समूह शुरू किया है, जिसकी अध्यक्षता नोबेल विजेता अर्थशास्त्री जोसेफ स्टिग्लिट्ज़ कर रहे हैं, ताकि वैश्विक धन असमानता का विश्लेषण किया जाए और नीति-निमायकों के लिए सुझा समाधान पेश किया जाए। यह असामान्यता सिर्फ देशों के बीच की नहीं है, बल्कि देशों के भीतर भी है ।अमीरों और गरीबों, सामाजिक-आर्थिक वर्गों के बीच। इस असमानता को दूर करना जी-20 के नए एजेंडे का बहुत बड़ा हिस्सा है, क्योंकि असमानता को सिर्फ नैतिक समस्या नहीं, बल्कि विकास और स्थिरता के लिए बाधा माना गया है। *महिलाओं और युवा जी-20 का सामाजिक आयाम,* युवाओं और विशेष रूप से महिलाओं के रोजगार को केंद्र में रखा है। युवा बेरोज़गारी: जी-20 मंत्रियों ने युवाओं के लिए तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण ,कौशल विकास, उद्यमशीलता को बढ़ावा देने, और स्वरोज़गार को आसान बनाने पर जोर दिया है। लैंगिक समानता: घोषणा में महिलाओं की कानूनी और आर्थिक भागीदारी बढ़ाने, वेतन असमानता घटाने, और देखभाल अर्थव्यवस्था में उनकी भूमिका को अधिक सुदृढ़ करने की बात कही गई है। महिला-संगठनों का योगदान में महिलाओं, युवा, लेबर, नागरिक समाज और अन्य समूहों को शामिल कर बहुमूल्य विचारों को निर्णयों में जोड़ने का प्रयास किया गया है। इसके अलावा, जी-20 की सामाजिक बैठकों में समावेशी लोकतंत्र मीडिया आज़ादी और सतत वित्तीय प्रणाली जैसे मुद्दों पर चर्चा की गई है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि जी-20 सिर्फ आर्थिक मंच नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय एवं सुधार का एक महत्वपूर्ण यंत्र बनना चाहता है। *विरोध, असहभागिता और भू-राजनीति की चुनौती* हालाँकि जी-20 का यह सम्मेलन ऐतिहासिक है, लेकिन यह पूरी तरह से बाधा-मुक्त नहीं है। डोनाल्ड ट्रम्प के नेतृत्व में अमेरिका ने इस सम्मेलन का बहिष्कार करने की घोषणा की है। ट्रम्प ने दक्षिण अफ्रीका पर नस्लीय मानवाधिकार-उल्लंघन का आरोप लगाया, और कहा कि कोई अमेरिकी अधिकारी सम्मिलित नहीं होगा। यह बहिष्कार जी-20 की एकता और सहमति प्रक्रिया पर दबाव डालता है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि इसका मतलब है कि जी-20 की प्रस्तावित घोषणाएं कमजोर पड़ सकती हैं क्योंकि अमेरिका आर्थिक और राजनीतिक रूप से एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी पर्दे के पीछे बातचीत में हिस्सा नहीं ले रहा। इस पार्श्वभूमि में, दक्षिण अफ्रीका को यह चुनौती है कि कैसे वह अपनी एजेंडा को आगे बढ़ाये, जबकि असहमति और गहरी भू-राजनीतिक दरारों को प्रबंधित करे। *महिलाओं के अधिकारों और अत्याचारों पर ध्यान* दक्षिण अफ्रीका में महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार पर विरोध प्रदर्शन हुए हैं और अन्य देशों जैसे अर्जेंटीना, मेक्सिको, नाइजीरिया के राष्ट्रप्रमुखों ने भी इस मुद्दे को उठाया है। हालांकि, वर्तमान समाचार स्रोतों में जी-20 स्तर पर ऐसा कोई प्रमुख सामूहिक बयान या प्रतिज्ञा, जो विशेष रूप से दक्षिण अफ्रीका में महिला-उन्मुख हिंसा या अत्याचारों पर केंद्रित हो, अभी प्रमुखता से सामने नहीं आया है। फिर भी, जी-20 की संरचना ऐसी है कि महिलाओं और लैंगिक असमानता के मुद्दों को बातचीत में शामिल किया जाता है। इसके अलावा, जी-20 में लैंगिक वेतन असमानता, महिलाओं की भागीदारी, देखभाल अर्थव्यवस्था आदि पर फोकस किया है। महिला अत्याचार के मुद्दे को देखें, तो यह संभावना है कि यह जी-20 मंच पर नागरिक समाज महिला समूह और अन्य समावेशी समूहों की आवाज़ के माध्यम से दबाव बनाए रखने में काम आए ।लेकिन इसे पूरी तरह राजनीतिक और कानूनी हस्तक्षेप के लिए जोड़ना जी-20 के दायित्वों में सीमित हो सकता है, क्योंकि जी-20 एक आर्थिक-राजनीतिक मंच है, निरपेक्ष मानवाधिकार न्यायालय नहीं। *भारत, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका की भूमिका* भारत, ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका इसमें शामिल होंगे। यह बिल्कुल सही दिशा है। भारत पहले ही जी-20 अध्यक्षता का हिस्सा रहा है (2023), और भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने जी-20 में विश्व परिवारकी अवधारणा को प्रमुखता दी थी, जो एक समावेशी, एकजुट और न्यायपूर्ण विश्व की कल्पना को दर्शाती है। ब्राज़ील, जो पिछले जी-20 चक्र का हिस्सा था, भी सामाजिक और पर्यावरणीय न्याय के मुद्दों को आगे बढ़ा रहा है, जैसे कि जीवाश्म ईंधन चरणबद्ध उन्मूलन का हिस्सा है। दक्षिण अफ्रीका, गहराई से जुड़ा हुआ ग्लोबल साउथ और विकासशील देशों के हितों का प्रतिनिधित्व कर रहा है। उसकी जी-20 अध्यक्षता दिखाती है कि यह मंच केवल पश्चिमी और विकसित शक्तियों का मोर्चा नहीं है, बल्कि वैश्विक बहुलता और न्याय का स्थान बन सकता है। ग्लोबल साउथ का सशक्त मंच अफ्रीका को पहली बार जी-20 मेज़बानी मिलना यह दर्शाता है कि विकासशील देशों की चुनौतियाँ अब जी-20 एजेंडा में प्रमुख रूप से शामिल हैं। गरीबी, असमानता और वित्तीय सुधार जी-20 एक बड़ी शक्ति के रूप में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संरचनाओं को बदलने की दिशा में कदम उठा सकता है। सामाजिक न्याय और पर्यावरण न्याय का समन्वय जलवायु परिवर्तन, रोजगार, लैंगिक समानता जैसे मुद्दों को एकीकृत रूप में संबोधित किया जाना है। लोकनीति और अन्य भागीदारी समूहों के माध्यम से नागरिक समाज, युवा, महिलाएँ, कार्यकर्ता आदि की आवाज़ निर्णय-निर्माण में शामिल हो रही है। 2030 एजेंडा के लिए गति जी-20 को SDGs को साकार करने की दिशा में पुल के रूप में उपयोग किया जा सकता है। राजनीतिक विभाजन अमेरिका का बहिष्कार बहुत बड़ी बाधा हो सकता है, क्योंकि जी-20 की सहमति उसके बिना कमजोर पड़ सकती है। राजनीतिक इच्छाशक्ति बनाम कार्रवाई आदि में घोषणाएँ और प्रतिज्ञाएँ करना आसान है, लेकिन उन्हें जीता-जागता रूप देने के लिए ठोस नीति और वित्तपोषण चाहिए। गैर-राज्य अभिनेताओं की हिस्सेदारी जी-20 को यह सुनिश्चित करना होगा कि सामाजिक मंचों पर सामने आई चिंताएं केवल बयानबाज़ी न बनें, बल्कि वास्तविक नीति प्रतिबद्धताओं में बदलें। महिलाओं के अधिकारों पर प्रत्यक्ष कार्रवाई हो।यदि जी-20 सिर्फ आर्थिक दृष्टिकोण से महिला मुद्दों को देखे, तो यह सामाजिक और कानूनी वास्तविकताओंउच्च हिंसा, असमानता को पूरी तरह नहीं पकड़ पाएगा। निरंतरता और प्रभाव एक शिखर सम्मेलन ही पर्याप्त नहीं है। सुधारों को बनाए रखने और लागू करने के लिए बाद में भी मजबूत नीतिगत कदम चाहिए होंगे। जोहानिसबर्ग में आयोजित यह जी-20 सम्मेलन न सिर्फ एक प्रतीकात्मक वाक्य है, बल्कि रणनीतिक मोड़ भी है । एक ऐसा मोड़ जहाँ अफ्रीका, विकासशील देश और ग्लोबल साउथ सक्रिय रूप से वैश्विक आर्थिक और सामाजिक एजेंडा को आकार देने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। दक्षिण अफ्रीका, अपनी जी-20 अध्यक्षता के माध्यम से, एकजुटता, समानता और स्थिरता की अवधारणाओं को सिर्फ नारा नहीं, बल्कि नीति प्लेटफार्म बनाना चाहता है। इस चर्चा में गरीबी, बेरोज़गारी, असमानता, क्लाइमेट जस्टिस, वित्तीय सुधार और महिला एवं युवा अधिकार जैसे मुद्दे प्रमुख हैं। हालांकि, चुनौतियाँ बड़ी हैं । गहरे भू-राजनीतिक मतभेद, आर्थिक शक्ति संतुलन, कार्रवाई में निरंतरता, और सामाजिक न्याय की वास्तविक ओरिएंटेशन की आवश्यकता है।लेकिन अगर यह सम्मेलन सफल होता है, तो यह जी-20 को केवल एक आर्थिक मंच के बजाय न्यायपूर्ण वैश्विक शासन मंच के रूप में पुनर्परिभाषित कर सकता है। (L103 जलवन्त टाऊनशिप पूणा बॉम्बे मार्केट रोड़ नियर नन्दालय हवेली सूरत मो 99749 40324 वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार ,स्तम्भकार) ईएमएस / 24 नवम्बर 25