(27 नवम्बर तारण जयंती विशेष) अध्यात्म जगत की गहराइयों को संस्पर्शित करने वाली सोलहवीं शताब्दी में जैन जगत को आलोकित करने वाले ज्ञान सूर्य का उदय हुआ। जिनका नाम था आचार्य भगवन तारण स्वामी। जो आगे चलकर 151 मण्डलों के आचार्य होने के कारण मण्डलाचार्य पद से सुशोभित हुये। अत: उनका पूरा नाम पड़ा कर श्रीमद जिन तारण तरण मण्डलाचार्य जी महाराज। संवत् 1505 सन् 1448 को बुन्देलखण्ड की धरा निश्चित ही धन्य हो गई जब पुरातात्विक नगरी पुष्पावती बिलहरी, जिला कटनी (म.प्र.) में पिता श्रीमान दीवान गढाशाह एवं माता बीर श्री देवी जी के घर तारण स्वामी जी का जन्म हुआ। आप जन्म से ही तीक्ष्ण बुध्दि के साथ प्रज्ञावान होने के कारण माता पिता एवं गुरूजनों द्वारा दी गई शिक्षा को सहज ही ग्रहण कर प्रतिभा सम्पन्न हो गये। आपको 11 वर्ष की अल्प आयु में ही सम्यक दर्शन की आत्मानुभूति हो गई और आप स्वभाव साधना में मग्न रहने लगे। 21 वर्ष के होते होते उन्होंने बाल ब्रम्हचर्य व्रत धारण कर लिया। तारण स्वामी ने अपनी साधना में अनंत सुख अनंत शांति का जो अनुभव किया उसे जन जन तक पहुंचाने के लिए उन्होंने सूखा निसई जी (पथरिया) जिला दमोह में धर्म प्रभावना का केन्द्र बनाया। जहां से अनेकानेक जीवों में श्रमण संस्कृति के संस्कारों को धारण कर संसार के दुःखों के छूटने का मार्ग बनाया। आपने लोगों को संसार, शरीर, भोगों से होने वाले दुःखों का बोध कराया एवं आत्मा के अनंत सुख को प्राप्त करने की कला सिखाई। मोक्ष निर्वाण को प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त किया। जिससे एक नये समाज का जन्म हुआ, लोगों को नया पंथ मिला। जिसे आज तारण पंथ के नाम से जाना जाता है। तारण समाज के अनुयायी ग्रंथों के अध्ययन द्वारा ज्ञान प्राप्त कर आत्मा का अनुभव करने की कोशिश करते हैं। एक नये पंथ की स्थापना ! वह भी ऐसा पंथ जो धार्मिक रूढिवादिता को तोडता हो, धर्म के नाम पर हो रहे आंडम्बर को नकारते हुए ज्ञानमार्गी और स्वआत्म चितंन को प्रदिपादित करता हो, उस समय के धार्मिक कट्टरता के प्रति एक क्रांति थी। लिहाजा जो क्रांति को कुचलने के प्रयास होते आये हैं, जो उपसर्ग तीर्थंकरों के प्रति हुए वो सभी उपसर्ग तारण स्वामी के प्रति भी हुए, पर अपनी साधना तप से से स्वसिध्द तारण स्वामी पर इन उपसर्गो का तनिक असर नही हुआ। जब उन्हें क्षलपूर्वक बेतवा नदी में तीन बार डुबोकर समाप्त करने के प्रयास हुए तो उन तीनों स्थानों पर स्वमेव टापू उभर आये। आचार्य भगवन तारण स्वामी जी ने पांच भागों में चौदह ग्रंथों की रचना की। जो लगभग दस हजार श्लोक प्रमान हैं। जिनमें श्रावक की 18 क्रियाओं से लेकर साधु के 28 मूल गुणों तक का वर्णन किया है। जो जन-जन को आचार विचार की शुद्धि से लेकर मोक्षमार्गी साधु के लिए जीवनोपयोगी है। जिसमें षट् कमल (गुप्त कमल, नाभि कमल, हृदय कमल, कंण्ठ कमल, मुख कमल और विंद कमल) की साधना का विधान बताया है जो उन्होंने स्वयं सिध्द किये, जिससे उन्हें आंशिक अवधि ज्ञान का जागरण हुआ, जिसके बल से आपको भगवान महावीर स्वामी के समवशरण का प्रत्यक्ष भान हुआ। जिसका स्पष्ट वर्णन 14 ग्रंथों में मिलता है। जैसे राजा श्रेणिक द्वारा पूछे गये प्रश्नों का संकलन आदि। आचार्य रजनीश (ओशो) द्वारा लिखे गये एक लेख के अनुसार ‘’मेरा जन्म एक ऐसे गुरू की आमनाओं में हुआ है जो मेरे से थोड़े ज्यादा पागल थे।‘’ ओशो आगे कहते हैं यदि मैं इनकी आमनाओं में पैदा न हुआ होता तो ध्यान की इतनी गहराई को प्राप्त नहीं हुआ होता। इसके बाद उन्होंने सिध्द स्वभाव और शून्य स्वभाव ग्रंथों का वर्णन किया है। आचार्य तारण स्वामी जी ने सिद्ध स्वभाव और शून्यस्वभाव ग्रंथ में शांत, शून्य और शून्यातीत निर्विकल्प अवस्था का वर्णन किया है जो ध्यान साधना के लिए अति महत्वपूर्ण है। तारण स्वामी महान क्रांतिकारी संत थे, जिन्होंने जाति-मत-संप्रदाय से परे, मानव मात्र को आत्मा से परमात्मा बनने मार्ग बताया जिन्होंने ‘’तू स्वमं भगवान है का नारा दिया जैसे बीज में वृक्ष छुपा होता है, चकमक में आग छुपी होती है वैसे ही आत्मा में परमात्मा छुपा है, बस उसे उचित साधना द्वारा प्रगट करने की जरूरत है। इसी साधना का अनुसरण करते हुये उन्होंने अपनी तपोभूमि सेमरखेड़ी, सिरोंज जिला विदिशा में घोर तपस्था की और निसई जी मल्हारगढ जिला- गुना में संवत् 1572 में आत्मलीनता पूर्वक शुक्रवार की रात्रि ज्येष्ठ वदी छट को इस नश्वर देह का त्याग कर सर्वाधसिध्दि में गमन किया। दिनांक 27 नवम्बर दिन गुरुवार को सम्पूर्ण भारत वर्ष में तारण पंथ के अनुयायियों द्वारा तारण जयंती अत्यन्त हर्षोल्लास पूर्वक मनाई जा रही है। गुरू भगवन तारण तरण मण्डलाचार्य जी महाराज को जन्म महोत्सव पर लगभग 7 दिनों तक श्रध्दा, भक्ति और सेवा कार्य तारण समाज के अनुयायी संपादित करते हैं। जिसमें विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ साथ विद्या दान, औषध दान तथा आहार दान के रूप में जरूरत मंद विद्यार्थियों को कॉपी पेंसिल व अन्य शैक्षिक सामग्री का वितरण, नि:सहाय या बेसहारा बुर्जुगों बच्चों को वृध्दाश्रमों अनाथालयों में पात्र भावना के रूप में भोजन प्रसादी, वस्त्र दान, अस्पतालों में चिकित्सा सहायता, सेवाकार्य, दवा फल आदि का वितरण किया जाता है और देश-दुनिया-समाज में सुख शांति समृध्दि हो ऐसी गुरुदेव तारण स्वामी से प्रार्थना की जाती है- सभी को श्री तरह जयंती की शुभकामनायें और आर्शीवाद, जय तारण जय जिनेन्द्र। (लेखिका बाल ब्रम्हचारिणी, तारण तरण दिगम्बर जैन समाज की संत, तारण साहित्य की गहन अध्येता एवं प्रवचनकार हैं) .../ 26 नवम्बर/2025