लेख
26-Nov-2025
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2026 की शुरुआत मे वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए चुनौतीपूर्ण संकेत मिल रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों, बाज़ार विश्लेषकों और दुनिया भर की सभी केंद्रीय बैंकों ने चेतावनी दी है, कि दुनिया एक व्यापक आर्थिक मंदी की ओर बढ़ रही है। कई देशों में उत्पादन, निवेश और उपभोक्ता खर्च में भारी कमी देखने को मिल रही है, जिसे वैश्विक आर्थिक मंदी का शुरुआती संकेत माना जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और विश्व बैंक की ताज़ा रिपोर्टों के अनुसार, 2025 के अंत से शुरू हुई आर्थिक मंदी 2026 में और गहरी हो सकती है। अमेरिका और यूरोप जैसी विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाओं में उद्योग उत्पादन में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। अमेरिकी बाज़ार में नौकरी के अवसर 18 महीनों के निचले स्तर पर पहुंच गए हैं। वहीं यूरोप में ऊर्जा की कीमतें और महंगाईदर उपभोक्ता खर्च को बढा रही हैं। जिसके कारण यूरोप में भी लगातार मांग घटती चली जा रही है। विशेषज्ञों का कहना है, अगर ब्याज दरों में राहत नहीं मिली, तो स्थिति तेजी के साथ बिगड़ सकती है। एशियाई देशों में भी हालात बेहतर नहीं हैं। चीन की आर्थिक सुस्ती का असर पूरी दुनिया की सप्लाई चेन पर पड़ रहा है। चीन के रियल- स्टेट और विनिर्माण क्षेत्र की कमजोरी ने वैश्विक व्यापार को धीमा कर दिया है। दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में निर्यात कम होने से विनिर्माण गतिविधियाँ प्रभावित हुई हैं। जापान और दक्षिण कोरिया में भी आर्थिक विकासदर ऐतिहासिक रूप से निचले स्तर पर पहुंच गई है। भारत मे भी वैश्विक मंदी का दबाव दिखने लगा है। हालांकि भारत की घरेलु मांग स्थिर बनी हुई है। लेकिन निर्यात में डॉलर के मुकाबले रुपए में गिरावट, विदेशी निवेश में कमी, विदेशी निवेशकों का सावधानी का रुख भरतीय अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती पैदा कर रहा है। आईटी, वस्त्र, ऑटो कंपोनेंट और फार्मा जैसे प्रमुख निर्यात क्षेत्रों मे विदेशी मांग में कमी देखी जा रही है। कृषि क्षेत्र में वैश्विक कमोडिटी की कीमतों के उतार-चढ़ाव ने अनिश्चितता को ओर बढ़ा दिया है। अंतरराष्ट्रीय आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है, अगर यह स्थिति कुछ माह और देखने को मिली, तो रोजगार और छोटे उद्योगों पर इसका बड़ा असर पड़ना तय है। वित्तीय बाज़ारों की हलचल तेज़ हो गई है। शेयर बाज़ारों में लगातार उतार-चढ़ाव बना हुआ है। निवेशक सुरक्षित परिसंपत्तियों की ओर रुख कर रहे हैं। क्रिप्टोकरेंसी बाज़ार में भी भारी गिरावट देखी जा रही है। निवेशकों का भरोसा क्रिप्टोकरंसी और शेयर बाजार में कमजोर हुआ है। आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है, वैश्विक मंदी का असर कम करने के लिए दुनिया के सभी देशों को नीतिगत सहयोग और समन्वय बनाने की जरूरत होगी। ग्रीन एनर्जी, तकनीकी नवाचार और वैकल्पिक सप्लाई चेन मे निवेश से अर्थव्यवस्था को फौरी तौर पर कुछ राहत मिल सकती है। इस समय दुनिया के अर्थशास्त्रियों की निगाहें प्रमुख देशों के केंद्रीय बैंकों और उनके द्वारा अगले कौन से कदम उठाए जाएंगे इस पर टिकी हैं। जिस तरह से दुनिया के सभी देशों में अफरा-तफरी का माहौल बना हुआ है, अमेरिका ने जिस तरह के टेरिफ वार की शुरुआत की है उसके बाद अर्थव्यवस्था को लेकर दुनिया भर के देशों में अनिश्चितता बढ़ी है। दुनियाभर के सभी देशों के ऊपर कर्ज का भार पिछले एक दशक में तेजी के साथ बड़ा है। सरकारी खजाने की बड़ी रकम कर्ज की अदाएगी और ब्याज में जा रही है। पिछले एक दशक में दुनियाभर के देशों के नागरिकों पर कर्ज का बोझ बढ़ा है। आय मे कमी आई है। महंगाई के कारण आम आदमी की मांग घट रही है, जिसके कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। इस बात की आशंका आर्थिक विशेषज्ञ और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं खुलकर कहने लगी हैं। आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार 2026 आर्थिक मंदी का साल होगा। इसमें शेयर बाजारों में भी भारी उथल-पुथल होगी। इसका असर वैश्विक स्तर पर पडना तय है। ईएमएस / 26 नवम्बर 25