लेख
24-Nov-2025
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वैश्विक स्तरपर भारत में श्रम सुधारों को लेकर दशकों से बहस चलती रही है। 1930- 1950 के बीच बनाए गए श्रम कानूनों ने स्वतंत्र भारत के औद्योगिक विकास और श्रमिक सुरक्षा की बुनियाद रखी,लेकिन समय के साथ उद्योगों कीसंरचना तकनीक, रोजगार पैटर्न और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में व्यापक परिवर्तन आए। आज की अर्थव्यवस्था डिजिटल, वैश्विक और कौशल आधारित है, जहाँ पारंपरिक श्रम ढाँचों के आधार पर श्रम प्रबंधन न तो उद्योगों के लिए लाभकारी है और न ही श्रमिकों के हितों की रक्षा करने में सक्षम। इसी पृष्ठभूमि में भारत सरकार ने 21 नवंबर 2025 से चार नई श्रम संहिताओं-वेतन संहिता 2019, औद्योगिक संबंध संहिता 2020,सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 औरव्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य शर्त संहिता 2020 को लागू करने की घोषणा की। यह निर्णय भारतीय श्रम बाजार के इतिहास में सबसे बड़े संरचनात्मक परिवर्तनों में से एक माना जा रहा है,जो न केवल घरेलू औद्योगिक माहौल बल्कि वैश्विक निवेश पर भी प्रभाव डाल सकता है। बता दे। मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र नें जब इस मुद्दे का रिसर्च किया तो मुझे संगठनों और यूनियनों की प्रतिक्रिया में समर्थन और विरोध का टकराव मीडिया के माध्यम से सुनाई दे रहा है,इस सुधार पर प्रतिक्रियाएँ विभाजित हैं।जहाँ 15 प्रमुख व्यापारिक संगठनों ने इन कोडों का स्वागत किया है, उनका कहना है कि यह भारत को वैश्विक विनिर्माण और निवेश का केंद्र बनाने में मदद करेगा।तो वहीं 10 लेबर यूनियनों के संयुक्त मंच ने इस कदम को मजदूर विरोधी बताते हुए कहा है कि इससे मालिक अधिकशक्तिशाली होंगे और श्रमिकों की सौदेबाजी क्षमता घटेगी। भारतीय मजदूर संघ ने इसे सकारात्मक सुधार माना और लंबे समय से प्रतीक्षित बताया। साथियों बात कर हम औपनिवेशिक युग के श्रम कानूनों से मुक्ति, ऐतिहासिक संदर्भ और सुधार की आवश्यकता को समझने की करें तो,भारत के श्रम कानूनों की नींव ब्रिटिश शासन के दौरान डाली गई थी, जिसका उद्देश्य उस समय की औद्योगिक परिस्थितियों को नियंत्रित करना था। इन कानूनों का मुख्य फोकस श्रमिकों पर नियंत्रण, औद्योगिक उत्पादन की निरंतरता और औपनिवेशिक शासन के हितों की रक्षा रहा, न कि श्रमिक अधिकारों, सामाजिक सुरक्षा या आर्थिक विकास को प्रोत्साहन देना। स्वतंत्रता के बाद इन कानूनों में संशोधन तो हुए, लेकिन संरचनात्मक एकीकरण और सरलीकरण नहीं किया गया। परिणामस्वरूप,भारत में श्रम कानून व्यवस्थाअत्यंत जटिल, उलझी हुई और बहु- स्तरीय हो गई, जिसमें 29 अलग-अलग कानून और सैकड़ों नियम शामिल थे। इससे उद्योगों को अनुपालन की भारी लागत उठानी पड़ती थी, जबकि श्रमिकों को भी अपने अधिकारों को समझना और लागू कराना मुश्किल होता था।विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन और कई आर्थिक संस्थानों ने बार-बार सुझाव दिया कि भारत को श्रम सुधारों की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए ताकि निवेश आकर्षित हो, रोजगार बढ़े और श्रमिक सुरक्षा मजबूत बने। इसी लंबे समय से महसूस की जा रही आवश्यकता को पूरा करने के लिए भारत सरकार ने पुराने कानूनों को समेकित कर चार संहिताओं का सटीक ढाँचा तैयार किया। साथियों बात अगर हम नई श्रम संहिताएँ:संरचना और उनके उद्देश्यों को समझने की करें तो, नई श्रम संहिताओं का मूल उद्देश्य श्रम कानूनों को सरल, एकीकृत और आधुनिक बनाना है, ताकि तेजी से बदलते कार्य वातावरण के अनुरूप भारत का श्रम ढाँचा लचीला और प्रभावी बन सके। इन चार संहिताओं के प्रमुख उद्देश्य हैं-(1)श्रमिकों के अधिकारों और सामाजिक सुरक्षा को मजबूत बनाना(2)उद्योगों के लिए नियमों को सरल और पारदर्शी बनाना (3) रोजगार सृजन को प्रोत्साहित करना (4) श्रम बाजार में औपचारिकता बढ़ाना (5) वैश्विक निवेश आकर्षित करना (6) कामकाजी परिस्थितियों में सुधार करना।यह कदम आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया जैसे राष्ट्रीय आर्थिक अभियानों को समर्थन देता है, क्योंकि श्रम सुधारों को अक्सर वैश्विक निवेश और औद्योगिक विकास का महत्वपूर्ण आधार माना जाता है। साथियों बात अगर हम चार श्रम संहिताओं का विस्तार: प्रत्येक कोड क़े महत्व को समझने की करें तो (1) वेतन संहिता 2019 --यह संहिता वेतन से संबंधित चार अलग-अलग कानूनों को मिलाकर बनाई गई है। इसका उद्देश्य सभी श्रमिकों को समय पर और समान वेतन सुनिश्चित करना है।न्यूनतम वेतन, ओवरटाइम बोनस और वेतन भुगतान जैसे प्रावधानों को स्पष्ट और सरल बनाया गया है। इससे असंगठित और गिग वर्कर्स सहित अधिक श्रमिकों को न्यूनतम वेतन सुरक्षा के दायरे में लाया जाएगा। (2) औद्योगिक संबंध संहिता 2020-- इसका फोकस श्रमिकों और उद्योगों के बीच सामंजस्य और औद्योगिक शांति बनाए रखना है। इसमें हड़ताल, छंटनी, पुनर्नियोजन और स्थायी श्रमिकों की नियुक्ति से जुड़े प्रावधानों को सरल किया गया है। उद्योगों का तर्क है कि इससे उत्पादन स्थिर रहेगा और निवेशक विश्वास बढ़ेगा, जबकि यूनियनों का आरोप है कि इससे छंटनी आसान हो जाएगी।(3)सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020--यह संहिता भारत के श्रम इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि यह पहली बार गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाती है। ईपीएफ, ईएसआई, मातृत्व लाभ, बीमा और पेंशन जैसी सुविधाओं को अधिक व्यापक और समावेशी बनाया गया है। (4) व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य शर्त संहिता 2020--इसका उद्देश्य कार्यस्थल पर सुरक्षा, स्वच्छता और उचित कार्य परिस्थितियों को सुनिश्चित करना है। इसमें कार्यस्थल सुरक्षा मानकों को अंतरराष्ट्रीय स्तर के अनुरूप लाया गया है। साथियों बात अगर कर हम 29 कानूनों के स्थान पर चार संहिताएँ : श्रमिकों को क्या लाभ? इसको समझने की करें तो,नई संहिताओं से श्रमिकों को कई प्रमुख लाभ मिल सकते हैं (1) फिक्स्ड-टर्म स्टाफ को परमानेंट लेवल के फायदे- फिक्स्ड-टर्म वाले कर्मचारी अब परमानेंट वर्कर्स जैसे फायदे पाएंगे, जैसे सोशल सिक्योरिटी, मेडिकल कवर और पेड लीव। ग्रेच्युटी पाने के लिए 5 साल की जगह एक साल का समय ही लगेगा। इससे कॉन्ट्रैक्ट मजदूरों पर ज्यादा निर्भरता कम होगी और डायरेक्ट हायरिंग को बढ़ावा मिलेगा। (2) सभी मजदूरों के लिए मिनिमम वेज और समय पर पेमेंट- हर सेक्टर के मजदूरों को नेशनल फ्लोर रेट से जुड़ी न्यूनतम वेतन मिलेगा, साथ ही समय पर पेमेंट और अन ऑथराइज्ड कटौतियां बंद होंगी।(3) महिलाओं को सभी शिफ्ट्स और जॉब रोल्स में अनुमति- महिलाएं नाइट शिफ्ट्स में और सभी कैटेगरी में उनकी मंजूरी और सेफ्टी मेजर्स के साथ काम कर सकेंगी। जैसे माइनिंग, हैवी मशीनरी और खतरनाक जगहों पर। बराबर पेमेंट जरूरी है और ग्रिवांस पैनल्स में उनकी रिप्रेजेंटेशन जरूरी। (4)बेहतर वर्किंग-आवर रूल्स और ओवरटाइम प्रोटेक्शन-ज्यादातर सेक्टर्स में काम के घंटे 8-12 घंटे प्रति दिन और 48 घंटे प्रति हफ्ते तक रहेंगे, ओवरटाइम के लिए दोगुना वेतन और जरूरी जगहों पर लिखित कंसेंट जरूरी होगा। एक्सपोर्ट्स जैसे सेक्टर्स में 180 वर्किंग डेज के बाद लीव्स एक्यूमुलेट होंगी (5) यूनिवर्सल अपॉइंटमेंट लेटर्स और फॉर्मलाइजेशन पुश- अब सभी नियोक्ताओं (एम्प्लॉयर्स) को हर मजदूर को अपॉइंटमेंट लेटर देना जरूरी होगा।इससे मजदूरों की नौकरी का रिकॉर्ड साफ रहेगा, वेतन में पारदर्शिता रहेगी और उन्हें मिलने वाले लाभों तक पहुंच आसान होगी। इस कदम से आईटी, डॉक, टैक्सटाइल जैसी इंडस्ट्री में काम करने वाले लोगों की नौकरियां अधिक फॉर्मल होंगी और सिस्टम अधिक व्यवस्थित होगा।(6) गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स कोआधिकारिक मान्यता: पहली बार गिग और प्लेटफॉर्म मजदूरों को कानूनी तौर पर परिभाषित किया गया। एग्रीगेटर्स को अपनी कमाई का 1-2 प्रतिशत (पेमेंट्स का 5 प्रतिशत तक कैप्ड) वेलफेयर के लिए देना होगा और आधार से लिंक्ड पोर्टेबल फायदे हर राज्य में मिलेंगे। (7) जोखिम वाली इंडस्ट्रीज में हेल्थ चेकअप्स और सेफ्टी नियम जरूरी- खतरनाक फैक्ट्रियों, प्लांटेशन, कॉन्ट्रैक्ट लेबर और खदानों में काम करने वाले मजदूरों (जो तय संख्या से ज्यादा हैं) के लिए हर साल फ्री हेल्थ चेकअप कराना जरूरी होगा। इसके साथ ही सरकार द्वारा तय किए गए सेफ्टी और हेल्थ स्टैंडर्ड लागू करने होंगे, और बड़े संस्थानों में सेफ्टी कमेटी बनाना भी अनिवार्य होगा, ताकि मजदूरों की सुरक्षा पर लगातार नजर रखी जा सके।(8)उद्योगों में सोशल सिक्योरिटी का नेटवर्क और बड़ा- सोशल सिक्योरिटी कोड की कवरेज पूरे देश में फैल जाएगी, जिसमें एमएसएमई कर्मचारी, खतरनाक जगहों पर एक भी मजदूर, प्लेटफॉर्म वर्कर्स और वो सेक्टर शामिल हैं जो पहले ईएसआई की जरूरी स्कीम से बाहर थे।(9) डिजिटल और मीडिया वर्कर्स को आधिकारिक कवर- अब पत्रकार, फ्रीलांसर, डबिंग आर्टिस्ट और मीडिया से जुड़े लोग भी लेबर प्रोटेक्शन के दायरे में आएंगे।इसका मतलब है कि उन्हें अपॉइंटमेंट लेटर मिलेगा, उनकी सैलरी समय पर और सुरक्षित रहेगी, और उनके काम के घंटे तय और नियमबद्ध होंगे।(10) कॉन्ट्रैक्ट, माइग्रेंट और अनऑर्गनाइज्ड वर्कर्स के लिए मजबूत प्रोटेक्शन- कॉन्ट्रैक्ट और दूसरे शहरों से आए मजदूरों को अब स्थायी कर्मचारियों जितना ही वेतन, सरकारी वेलफेयर योजनाएं, और ऐसी सुविधाएं मिलेंगी जो एक जगह से दूसरी जगह जाने पर भी जारी रहेंगी। साथ ही जिस कंपनी में वे काम करते हैं, उसे उनके लिए सोशल सिक्योरिटी देना जरूरी होगा और पीने का पानी, आराम करने की जगह और साफ-सफाई जैसी बुनियादी सुविधाएं भी उपलब्ध करानी होंगी।विशेष रूप से असंगठित क्षेत्र के 90 प्रतिशत से अधिक श्रमिकों के लिए यह सुधार ऐतिहासिक माने जा रहे हैं। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि आत्मनिर्भर भारत के लिए श्रम सुधारों की दिशा में ऐतिहासिक कदम-चार श्रम संहिताओं का लागू होना भारत के श्रम इतिहास का सबसे व्यापक और परिवर्तनकारी कदम है। यह सुधार न केवल कानूनों को सरल और आधुनिक बनाता है, बल्कि श्रमिकों की सुरक्षा और उद्योग प्रतिस्पर्धा दोनों को संतुलित करने का प्रयास करता है। चुनौतियाँ और आलोचनाएँ अपनी जगह हैं,लेकिन यह स्पष्ट है कि भारत का श्रम ढाँचा अब वैश्विक मानकों के अनुरूप आगे बढ़ रहा है, जो देश को अधिक मजबूत,प्रतिस्पर्धी और आत्मनिर्भर बनने की दिशा में अग्रसर करेगा। (-संकलनकर्ता लेखक - क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए (एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र) ईएमएस/ 24 नवम्बर 25