- आत्मनिर्भर भारत का सबसे बड़ा उत्सव है ट्रेड फेयर 14 नवंबर से 27 नवंबर 2025 तक दिल्ली के प्रगति मैदान में 45वां भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला भव्य रूप में आयोजित हो रहा है। साल दर साल यह मेला न केवल देश के व्यापार को बढ़ावा देता है बल्कि भारत की विविध संस्कृति, कला, तकनीक और नवाचार को भी दुनिया के साथ साझा करने का सबसे बड़ा मंच बन चुका है। प्रिगति मैदान में हर वर्ष लगने वाला यह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला देश की आर्थिक, सांस्कृतिक और तकनीकी प्रगति का जीवंत उत्सव है। यह वह मंच है, जहां भारत अपने भीतर छिपी विशाल संभावनाओं, विविधताओं और नवाचारों को दुनिया के सामने पूरी ऊर्जा और भव्यता के साथ प्रस्तुत करता है। इस वर्ष आयोजित किया जा रहा 45वां भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला कई मायनों में अत्यंत खास है। यह केवल खरीदारी का मौका नहीं बल्कि हर आगंतुक के लिए सीख, अनुभव, मनोरंजन और वैश्विक सामंजस्य का अनूठा संगम बन चुका है। ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की थीम के साथ यह आयोजन देश की सांस्कृतिक एकता, तकनीकी क्षमता, आत्मनिर्भरता की भावना और वैश्विक स्तर पर भारत की बढ़ती भूमिका को नई पहचान देता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस मेले को ‘आत्मनिर्भर भारत का उत्सव’ कहना अपने आप में इस आयोजन की महत्ता को दर्शाता है। यह वास्तव में वही स्थान है, जहां भारत दुनिया से मिलता है, दुनिया भारत को समझती है और दोनों मिलकर नए विचारों और नए अवसरों का मार्ग प्रशस्त करते हैं। यही कारण है कि यह मेला दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा बी2बी और बी2सी मंच बन चुका है, जहां कारोबार, तकनीक, परंपरा, निवेश, नवाचार और संस्कृति सब एक ही स्थान पर आकार लेते हैं। इस वर्ष मेले में 11 देशों ने भागीदारी की है, जिनमें चीन, थाईलैंड, मलेशिया, दक्षिण कोरिया, तुर्किये, मिस्र, लेबनान, ईरान, यूएई, स्वीडन और ट्यूनीशिया शामिल हैं। इन देशों की भागीदारी न केवल अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संबंधों को मजबूत बनाती है बल्कि भारत के युवाओं, उद्यमियों और उद्योगों के लिए सीखने और सहयोग के नए द्वार खोलती है। विदेशी स्टॉलों पर तकनीक, फैशन, कृषि, इलैक्ट्रॉनिक्स, कला, होम डेकोर और जीवनशैली से जुड़े उत्पादों का ऐसा अनूठा मिश्रण देखने को मिलता है, जो किसी भी आगंतुक को वैश्विक बाजारों की ताजा हलचल और रुझानों से जोड़ देता है। भारत के राज्यों की भागीदारी इस मेले की सबसे बड़ी विशेषता है क्योंकि यहां देश की सांस्कृतिक और आर्थिक विविधता एक ही छत के नीचे साकार होती है। इस बार बिहार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र पार्टनर स्टेट हैं जबकि झारखंड को ‘फोकस स्टेट’ का विशेष दर्जा दिया गया है। इन राज्यों के मंडपों में कला, लोककला, परंपरागत शिल्प, कृषि आधारित नवाचार, औद्योगिक प्रगति, पर्यटन, स्वास्थ्य, शिक्षा, स्टार्टअप इकोसिस्टम और सरकारी योजनाओं की झलक मिलती है। यह वह मौका है, जब आगंतुक केवल देखते नहीं बल्कि समझते भी हैं कि भारत की सच्ची ताकत उसकी विविधता में है और यही विविधता उसे वैश्विक मंच पर सबसे अलग बनाती है। मेले के हॉलों में इस बार अत्याधुनिक तकनीक से लेकर परंपरागत कला तक सब कुछ देखने को मिलेगा। इलैक्ट्रॉनिक्स, साइबर सुरक्षा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, स्टार्टअप इनोवेशन, वस्त्र, मसाले, हस्तशिल्प, एमएसएमई उत्पाद, खादी और ग्रामीण विकास से जुड़े हजारों उत्पाद प्रदर्शित किए जा रहे हैं। हॉल 8, 9 और 10 में ‘सरस मेला’ देशभर की स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को अपने उत्पादों को प्रदर्शित करने का बड़ा अवसर देता है। यहां ओडीओपी (वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रॉडक्ट) की झलक भी देखने को मिलती है, जो स्थानीय उत्पादों को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान देने का महत्वपूर्ण प्रयास है। खादी और ग्रामोद्योग आयोग, आयुष मंत्रालय, रेलवे, आरबीआई, एलआईसी, एनसीईआरटी, पीएमबीआई और कई अन्य प्रमुख सरकारी संस्थाएं भी इस मेले में अपने नवाचार और सेवाओं के माध्यम से देश की प्रगति को दर्शाती हैं। यह मेला वास्तव में भविष्य की दिशा दिखाता है, एक ऐसा भारत, जो परंपरा को भी संभाले हुए है और आधुनिक तकनीक के साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ रहा है। इस मेले की एक और खासियत इसका सांस्कृतिक वैभव है। रोजाना विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के सांस्कृतिक कार्यक्रम खुले मंचों पर प्रस्तुत किए जाते हैं। लोक संगीत, शास्त्रीय नृत्य, जनजातीय नृत्य, फोक फ्यूजन और पारंपरिक कला का अनूठा मेल न केवल वातावरण को जीवंत बनाता है बल्कि आगंतुकों को भारत की सांस्कृतिक आत्मा से जोड़ देता है। साथ ही, भारतीय व्यंजनों की खुशबू और स्वाद हर आगंतुक के लिए इस मेले के अनुभव को अविस्मरणीय बना देते हैं। प्रगति मैदान जैसे विशाल परिसर में सुचारू व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए इस वर्ष विशेष प्रबंध किए गए हैं। हर हॉल के पास फर्स्ट एड बूथ, मेडिकल सुविधाएं, दर्जनों एंबुलेंस और पर्याप्त संख्या में व्हीलचेयर की व्यवस्था की गई है। 245 यातायात पुलिसकर्मियों की तैनाती, 16 बाइक पैट्रोल टीमें, 15 क्रेन और तीन आपदा प्रबंधन वाहन मेले की भीड़-भाड़ को नियंत्रित करने में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। यातायात नियंत्रण कक्ष और सोशल मीडिया पर लगातार जारी की जा रही ट्रैफिक एडवाइजरी सुनिश्चित करती है कि कोई भी आगंतुक परेशानी का सामना न करे। टिकट व्यवस्था की बात करें तो 19 से 27 नवंबर तक आम जनता के लिए सामान्य दिनों में 80 रुपये और सप्ताहांत पर 150 रुपये का टिकट रखा गया है। बच्चों के लिए टिकटें 40 और 60 रुपये हैं जबकि वरिष्ठ नागरिकों और दिव्यांगजन के लिए प्रवेश पूर्णतः निःशुल्क है। टिकट दिल्ली मैट्रो स्टेशनों और आईटीपीओ की वेबसाइट पर आसानी से उपलब्ध हैं। आवागमन के लिए दिल्ली मैट्रो सबसे सुरक्षित और सुविधाजनक विकल्प है। सुप्रीम कोर्ट मैट्रो स्टेशन सीधे भारत मंडपम के प्रवेश द्वार तक पहुंच प्रदान करता है। गेट नंबर 3, 4, 6 और 10 से आगंतुकों का प्रवेश सुनिश्चित किया गया है जबकि अन्य द्वारों पर प्रवेश प्रतिबंधित है। ट्रैफिक को ध्यान में रखते हुए प्रगति मैदान के आसपास कई मार्गों में बदलाव किए गए हैं, इसलिए सलाह दी जाती है कि वाहन से आने वाले लोग पार्किंग संबंधी दिशा-निर्देशों का पालन करें। बेसमेंट पार्किंग और राष्ट्रीय स्टेडियम पार्किंग में बड़े पैमाने पर वाहन पार्किंग की सुविधा है। कुल मिलाकर, भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला केवल एक प्रदर्शनी नहीं बल्कि यह उन लाखों लोगों का साझा मंच है, जो भारत के सपनों, संभावनाओं, उद्यमिता, नवाचार और सांस्कृतिक गौरव को साथ लेकर चलते हैं। यह मेला बताता है कि भारत न केवल दुनिया से सीख रहा है बल्कि दुनिया को बहुत कुछ सिखाने की क्षमता भी रखता है। यहां हर स्टॉल एक नई कहानी कहता है, कहीं नवाचार की, कहीं परंपरा की, कहीं तकनीक की तो कहीं रचनात्मकता और संस्कृति की। यही विविधता और बहुआयामी आकर्षण इसे हर साल देश-दुनिया के लिए खास बनाता है। इस वर्ष का आयोजन इसलिए भी अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भारत की विकास यात्रा, आत्मनिर्भरता, तकनीकी क्षमता और सांस्कृतिक शक्ति का सम्मिलित स्वरूप प्रस्तुत करता है। प्रगति मैदान का यह मेला वास्तव में भारत की प्रगति, प्रतिभा और पहचान का भव्य उत्सव है, एक ऐसा उत्सव, जिसे हर भारतीय को कम से कम एक बार जरूर अनुभव करना चाहिए क्योंकि यहां पहुंचकर वास्तव में महसूस होता है कि ‘जहां भारत मिलता है दुनिया से’, वहीं भविष्य की राहें बनती हैं। (लेखक साढ़े तीन दशक से पत्रकारिता में निरंतर सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार हैं) ईएमएस / 24 नवम्बर 25