राष्ट्रीय
25-Nov-2025


पटना,(ईएमएस)। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के परिणामों ने कांग्रेस को करारा झटका दिया है, जहां पार्टी महागठबंधन के हिस्से के बावजूद मात्र 6 सीटें ही हासिल कर सकी। इस हार के बाद पार्टी में शुरू हुआ असंतोष अब खुले टकराव का रूप ले चुका है। प्रदेश अनुशासन समिति द्वारा सात वरिष्ठ नेताओं को छह वर्ष के लिए प्राथमिक सदस्यता से निष्कासित करने के बाद सियासी हलचल तेज हो गई है। ये नेता पार्टी-विरोधी गतिविधियों, भ्रामक बयानबाजी और संगठनात्मक फैसलों की अवहेलना के आरोप में दोषी ठहराए गए। निष्कासन के तुरंत बाद बागी गुट ने दिल्ली का रुख किया, जहां वे राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे से मिलकर प्रदेश नेतृत्व के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने की तैयारी में हैं। जानकारों का मानना है कि यह घटनाक्रम कांग्रेस के लिए एक बड़े संगठनात्मक तूफान का संकेत हो सकता है, जो पार्टी की एकता को और चुनौती देगा। प्रदेश कांग्रेस अनुशासन समिति ने सोमवार को जारी आदेश में स्पष्ट किया कि इन नेताओं ने लगातार पार्टी मंच के बाहर बयान देकर टिकट वितरण पर भ्रामक आरोप लगाए, प्रिंट और सोशल मीडिया पर कांग्रेस की छवि को धूमिल किया। समिति के अनुसार, इनकी स्पष्टीकरण संतोषजनक नहीं था और उन्होंने राज्य कांग्रेस समिति, पर्यवेक्षकों, चुनाव पैनल तथा एआईसीसी के निर्देशों की जानबूझकर अवहेलना की। निष्कासित नेताओं में आदित्य पासवान (पूर्व उपाध्यक्ष, कांग्रेस सेवा दल), शकीलुर रहमान (पूर्व उपाध्यक्ष, राज्य कांग्रेस), राजकुमार शर्मा (पूर्व अध्यक्ष, किसान कांग्रेस), राजकुमार राजन (पूर्व अध्यक्ष, राज्य युवा कांग्रेस), कुंदन गुप्ता (पूर्व अध्यक्ष, अत्यंत पिछड़ा वर्ग विभाग), कंचना कुमारी (बांका जिला कांग्रेस अध्यक्ष) और रवि गोल्डन (नालंदा जिला कांग्रेस नेता) शामिल हैं। समिति ने पाया कि ये नेता पांच अनुशासनिक मानदंडों में से तीन का उल्लंघन कर संगठन में भ्रम फैलाते रहे, भले ही उन्हें विधानसभा पर्यवेक्षक के रूप में केंद्रीय अनुमति दी गई थी। निष्कासन की घोषणा के कुछ घंटों बाद ही एक दर्जन से अधिक बागी नेता, जिनमें पूर्व विधायक और पूर्व मंत्री भी शामिल हैं, दिल्ली रवाना हो गए। ये नेता प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम और बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरू के खिलाफ शिकायत लेकर शीर्ष नेतृत्व से मिलेंगे। सूत्रों के अनुसार, वे प्रदेश अध्यक्ष को हटाने की औपचारिक मांग करेंगे, साथ ही टिकट वितरण में कथित पक्षपात और गठबंधन समन्वय की कमी पर सवाल उठाएंगे। यह कदम प्रदेश नेतृत्व के लिए चिंता का विषय बन गया है, क्योंकि इससे पहले 21 नवंबर को पटना में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने राज्य नेतृत्व के खिलाफ प्रदर्शन किया था। बिहार महिला कांग्रेस प्रमुख शरबत जहां फातिमा ने भी टिकट न मिलने के कारण इस्तीफा दे दिया, जो आंतरिक असंतोष की गहराई को दर्शाता है। कांग्रेस में अनुशासनात्मक कार्रवाई कोई नई बात नहीं, लेकिन इस बार हालात अलग हैं। बागी गुट लंबे समय से टिकट बंटवारे और रणनीतिक फैसलों से असंतुष्ट था। एआईसीसी सदस्य और वरिष्ठ चेहरे भी इस असंतोष में शामिल हो गए हैं। निष्कासित नेता भले ही बड़े चुनावी चेहरे न हों, लेकिन वे विभिन्न इकाइयों के पूर्व पदाधिकारी हैं, जिनका स्थानीय स्तर पर प्रभाव है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यदि दिल्ली में बागियों को सुनवाई मिली, तो विवाद और भड़क सकता है। कुछ इसे वरिष्ठ नेताओं को बचाने का स्कैपगोट रणनीति बता रहे हैं, जबकि प्रदेश मीडिया विभाग के चेयरमैन राजेश राठौर ने इसे संगठनात्मक अनुशासन की प्रतिबद्धता बताया। कांग्रेस ने बिहार में पुनर्गठन के लिए नई समन्वय समिति गठित की है, जो जमीनी स्तर पर सक्रियता बढ़ाने, कार्यकर्ताओं का मनोबल बहाल करने और भविष्य की रणनीति तैयार करने पर फोकस करेगी। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यदि आंतरिक कलह नहीं रुका, तो पार्टी की राष्ट्रीय छवि पर असर पड़ेगा। बिहार जैसे महत्वपूर्ण राज्य में यह संकट 2029 के लोकसभा चुनावों से पहले कांग्रेस के लिए बड़ा खतरा बन सकता है। कुल मिलाकर, यह घटनाक्रम पार्टी की एकजुटता पर सवाल खड़ा करता है, और आने वाले दिनों में दिल्ली से कोई बड़ा फैसला ही स्थिति स्पष्ट करेगा। वीरेंद्र/ईएमएस/25नवंबर2025