लेख
26-Nov-2025
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अयोध्या की पावन धरा पर बने भव्य श्री राम जन्मभूमि मंदिर के शिखर पर आज भगवा ध्वज लहरा गया। माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी ने शुभ मुहूर्त में 25 नवम्बर 25 को ध्वजारोहण किया, ऐ भारत के लिए गर्व की बात है । लेकिन इसका श्रेय भगवान राम को ही जाता है क्योंकि उनकी शक्ति से ही संसार चल रही है । गोस्वामी तुलसीदासजी ने भगवान राम की कृपा ही बताई है, जिन्होंने रामचरितमानस की रचना की जिससे हर घर में भगवान श्री राम के प्रति अपार आस्था प्रकट हुई गोस्वामी तुलसीदास अपने जीवनकाल से लेकर आजतक भारतीय जनमानस पर एकछत्र राज करते आ रहे हैं। तुलसी मात्र कवि ही नहीं हैं अपितु उनका स्थान हिन्दू संस्कृति के रक्षक, त्राता और उद्धर्ता के रूप में महत्वपूर्ण है। नैतिक विषयों पर धर्मशास्त्र का क्या कहना है, हम भारतीयों में यह चिंता अधिक नहीं है। हम प्रत्येक विषय पर तुलसी की राय जानना चाहते हैं और उसे प्रायः उद्धृत भी करते हैं। तुलसी के संपूर्ण साहित्य में कहीं रंच भर भी प्रमाण नहीं है कि मुसलमानों पर उन्हें तनिक भी क्रोध या आक्रोश था। उनका सम्मान दोनों ही धर्मों के लोग करते थे। रहीम ने तो कुछ दोहों की रचना कर यह स्वीकार किया कि रामचरितमानस हिन्दू के लिए वेद और मुसलमानों के लिए कुरान है। हिन्दुआन को वेद सम , तुरुकहिं प्रगट कुरान । मूलभूत तथ्य यह है कि तुलसी निराकारवादियों के कट्टर विरोधी थे । हिन्दू समाज के भीतर रहकर जो लोग जनता को यह सिखाते थे कि मंदिरों में जाना व्यर्थ है, व्रत रखने से पुण्य नहीं होता और साकार की उपासना आंधविश्वासी मनुष्य करता है, ऐसे तत्वों के वे प्रबल विरोधी थे। एक दिन कोई अलख निरंजन की पुकार लगानेवाला फकीर उनके दरवाजे पर पहुँचा और अलख अलख का नारा लगाने लगा। तुलसी ने क्रोधित होकर कहा .... तुलसी अलख को देख चुका है, तू रामनाम का जप कर! हम लख हमहिं हमार लख, हम-हमार के बीच, तुलसी अलखहिं का लखै, राम नाम जपु नीच।। तुलसी नाथ-पंथियों और गोरख-पंथियों के भी विरुद्ध थे क्योंकि उनका विचार था कि इससे परंपरा कमजोर होती है और जनता का हृदय शून्यता से भरता जाता है। एक जगह उन्होंने लिखा कि गोरख ने ऐसा अलख जगाया कि लोगों की भक्ति भाग गई। गोरख जगायो जोग, भगति भगायो लोग चित्रकूट के घाट पर तुलसीदास ने मुफ्त का चंदन जितना भी घिसा हो, एक बात तो सार्वभौम सत्य है कि वे सन्त थे। उनकी रचना रामचरितमानस जैसा जीवन-विवेक और नीति-बोधवाला ग्रंथ विश्वसाहित्य में अनुपम है। एक-एक चौपाई और दोहे जीवन की हर परिस्थिति में विवेकपूर्ण और व्यावहारिक निर्णय लेने की क्षमता की शिक्षा देता है। कबीर और तुलसी में फर्क है। तुलसी में नम्रता बहुत थी, इससे पता चलता है कि वे भी दुष्टों द्वारा सताए गए थे। बालकांड के आरंभ में ही वे सर्वप्रथम खलों और असंतों की लंबी वंदना करते हैं। वाणी और विनायक के स्मरण के पश्चात् वे तुरंत लिखते हैं....... बन्दौं प्रथम खलजन सतभाये। जे बिनु काज दाहिने - बाएँ ।। दुष्टों की प्रकृति का अद्भुत वर्णन है इस अंश में। चरम बिन्दु यह है ...... *पर अकाज लगि तन परिहरहीं *जिमि हिम उपल कृषी दल गरहीं।।* दुष्ट दूसरों का काम बिगाड़ने के लिए अपने प्राण दे देते हैं, जैसे ओला खेती का नाश करने के लिए अपने को गला देता है। एक किंवदन्ती है कि तुलसी के इस मृदुल स्वभाव को देखते हुए एक दुष्ट उनकी कुटिया के बाहर खड़ा हो कर उन्हें देर से गरिया रहा था।आखिर तुलसीदास लाठी लेकर उसे मारने दौड़े। उसने कहा--- रुकिए, आप मुझे नहीं मार सकते, आपने तो लिखा है कि *बूँद अघात सहहिं गिरि ऐसे।* *खल के वचन संत सह जैसे।।* आप कैसे संत हैं जो लठियाने पर तुले हैं ? तुलसी ने उसको छरपिटाने के बाद कहा --- मैंने ये भी तो लिखा है .... *अतिशय रगड़ करै जो कोई।* *अनल प्रगट चंदन तैं होई ।।* मूल_समस्या ये है कि तुलसी को कोई पढ़ता नहीं है, वे अब उदाहरण हो गए हैं, संत सब कोई और हैं ! साधु-संत अब गिरि कंदराओं में नहीं संसद के गलियारों में पाए जाते हैं। और जो अपनी साधना और सत्यनिष्ठा से संतत्व की प्राप्ति किए हुए हैं, उन्हें वो भक्त मानते ही नहीं हैं। राइस मिल से निकले चावल को *अक्षत* मानकर लहालोट होनेवाला वर्ग आज भगवान राम से बड़ा धर्मज्ञाता बन बैठा है। वर्तमान परिस्थिति यह है *हरित भूमि तृण संकुल सूझ परहिं नहिं पंथ।* *जिमि पाखंड विवाद तें, लुप्त होहिं सद् ग्रंथ।।* *बस्स्स्स्.......!* भावार्थ. पृथ्वी घास से परिपूर्ण होकर हरी हो गई है, जिससे रास्ते समझ नहीं पड़ते। जैसे पाखंड मत के प्रचार से सद्ग्रंथ गुप्त (लुप्त) हो जाते हैं॥राम को समझने के लिए भगवान राम के विचारों पर चलना आवश्यक है अतः राम मंदिर और ध्वजारोपण करना बहुत ही अच्छी बात है लेकिन भगवान राम को समझना एक टेढी खीर है उस कृपानिधि, संसार के मालिक राम कभी कट्टरवादी नहीं हैँ वो तो एक विचार है। हमें कट्टरवादी नहीं, उदारवादी होना चाहिए। कट्टर शब्द से मनुष्य अहंकारी हो जाता है और भगवान राम को अहंकार व्यक्ति नहीं चाहिए उदारवादी होना चाहिए एक इसका छोटा सा उदाहरण लें जब आम आदमी पार्टी की सरकार में जब केजरीवाल की सरकार दिल्ली में थी तो पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया पर कहा था वो एक कट्टर ईमानदार हैं,ऐ बात ही घमंड की तरफ इशारा करता है। बाद में उसकी सरकार हाथ से निकल गई काश संयम से काम लिया होता अतः भगवान राम का पताका हर जगह लहराना चाहिए लेकिन वो क्या चाहते हैँ और आप की हर गतिविधियों पर उसकी नजर है।अतः इसे राजनीति रंग में नहीं बल्कि सहृदय भगवान राम का ध्यान कर उसे जानने की कोशिश करे, परमार्थ, सेवा, अहिंसा और गरीबों के कल्याण से आपका कल्याण अवश्य होगा।अतः हर गतिविधि पर है भगवान राम की नजर है, और सच्ची श्रद्धा के लिए तपना होगा कर्म करना और सेवा करने से ही भगवान राम उसका फल देंगे क्योंकि वो कण कण में हैँ सब के दिल में और और अंतर्यामी है। ईएमएस/26/11/2025