लेख
26-Nov-2025
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लगातार पाँचवीं बार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए सरकार बिहार की सत्ता में भारी बहुमत के साथ लौटी है। स्वाभाविक रूप से विजय भाषण में बड़े और साहसिक वादे शामिल थे - 2030 तक एक करोड़ नौकरियाँ, अपराध पर कठोर अंकुश, और बिहार को पूर्वी भारत का टेक्नोलॉजी व इंडस्ट्रियल पावर सेंटर बनाने की प्रतिबद्धता। शपथ लेने के कुछ ही घंटों के भीतर नई कैबिनेट की पहली बैठक हुई, जिसमें डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग कॉरिडोर, सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन पार्क, मेगा टेक सिटी और फिनटेक सिटी जैसी महत्वाकांक्षी परियोजनाओं के लिए हाई-पावर्ड कमेटियाँ गठित की गईं। यदि ये योजनाएँ सही समय पर लागू होती हैं, तो वे बिहार की आर्थिक तस्वीर को बिल्कुल नया रूप दे सकती हैं। शहरीकरण को गति देने के लिए कैबिनेट ने बिहार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मिशन को मंजूरी दी और 11 नए ग्रीनफील्ड टाउनशिप की स्थापना का भी निर्णय लिया। बंद पड़ी चीनी मिलों के पुनर्जीवन को भी प्राथमिकता दी गई है - जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि आधारित रोजगार बढ़ने की संभावना है। ‘सात निश्चय-2’ की आंशिक सफलता के आधार पर अब सरकार ने अगले पाँच वर्षों में एक करोड़ रोजगार का लक्ष्य निर्धारित किया है। निवेश के मोर्चे पर, बिहार बिज़नेस कनेक्ट–2024 के दौरान हुए समझौतों पर कार्य जारी है। विभिन्न रिपोर्टों में MoUs का मूल्य ₹50,500 करोड़ के आसपास बताया गया है, जबकि कुछ आकलन इसे ₹1.8 लाख करोड़ तक पहुँचाते हैं। अदाणी समूह सहित कई बड़े उद्योग घराने - सीमेंट, लॉजिस्टिक्स और कृषि-संबद्ध क्षेत्रों में - बिहार में अपनी गतिविधियों का विस्तार करने की तैयारी में हैं। फिर भी इन उम्मीदों के पीछे बिहार का लंबा अनुभव और गहरी आशंकाएँ मौजूद हैं। बिहार की प्रति व्यक्ति आय आज भी देश में सबसे कम राज्यों में से है। राज्य की जीडीपी वृद्धि दर हाल के वर्षों में लगभग 8–11% के बीच रही है, लेकिन ये वृद्धि निम्न आधार से शुरू होती है। बिहार अभी भी पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों के लिए प्रवासी मज़दूरों के प्रमुख स्रोतों में से एक बना हुआ है। वहीं, कोटा, बेंगलुरु, पुणे और दिल्ली में बिहार के मेधावी छात्रों का जाना इस बात का संकेत है कि राज्य की शिक्षा व्यवस्था को अभी लंबा सफर तय करना है। नई सरकार की रूपरेखा इन चुनौतियों को पहचानती है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शपथ ग्रहण के बाद निवेशकों से अपील की कि वे “बिहार की युवा जनसंख्या की शक्ति का उपयोग करें”। इसका स्पष्ट संदेश है - कार्यबल बिहार देगा, पूँजी और तकनीक निवेशक लाएँ। एआई मिशन और तकनीकी व प्रबंधन शिक्षा पर ध्यान इस एकतरफा पलायन को रोकने और रिवर्स माइग्रेशन को बढ़ावा देने का प्रयास है। हालाँकि बिहार का इतिहास सावधान भी करता है। कई महत्वाकांक्षी योजनाएँ - पटना मेट्रो से लेकर औद्योगिक कॉरिडोरों तक - भूमि अधिग्रहण की दिक्कतों, नौकरशाही की सुस्ती और राजनीतिक उतार-चढ़ाव की वजह से अटक चुकी हैं। असली चुनौती अब भी वही है: क्या 11 टाउनशिप अगले दो वर्षों में जमीन पर उतर पाएँगे? क्या डिफेंस कॉरिडोर में वैश्विक रक्षा कंपनियाँ निवेश करने आएँगी? क्या सेमीकंडक्टर पार्क ईओआई से आगे बढ़ पाएगा - जब देश में केवल गुजरात और असम ने ही इस दिशा में ठोस प्रगति की है? दाँव बड़ा है। सफलता न सिर्फ बिहार की तस्वीर बदल देगी, बल्कि पूरे पूर्वी भारत के आर्थिक मानचित्र को पुनर्परिभाषित कर सकती है। लेकिन विफलता उसी पुराने कथानक को मजबूत करेगी - एक ऐसा राज्य जिसकी क्षमता अपार है, पर क्रियान्वयन कमजोर। तीन दशक से बिहार की राजनीति को करीब से देखते हुए मैंने कई “नई सुबहों” को ढलते देखा है। लेकिन इस बार परिदृश्य अलग है - जनादेश बड़ा है, केंद्र–राज्य में तालमेल बेहतर है, और बिहार का युवा बदलाव के लिए बेचैन है। अगले पाँच साल तय करेंगे कि क्या बिहार बड़े वादों और छोटे परिणामों के चक्र से बाहर निकल पाएगा - या फिर एक और पीढ़ी सम्मान और रोजगार की तलाश में दूर शहरों का रुख करेगी। टिक टिक कर रही है। देश देख रहा है। ईएमएस/26 नवम्बर 2025