राष्ट्रीय
27-Nov-2025
...


-शिनलुंग के नाम से जाने जाते हैं भारत में नई दिल्ली,(ईएमएस)। भारत के पूर्वोत्तर मिजोरम और मणिपुर के दूरदराज इलाकों में दशकों से इजरायली बनी मेनाशे जनजाति के लोग रहते चले आ रहे हैं। बताया जा रहा है कि यहूदियों की यह मौजूदगी कोलकाता और मुंबई से आगे बढ़कर पूर्वोत्तर के पहाड़ी इलाकों तक फैल गई है। नेतन्याहू सरकार इन्हें वापस अपने वतन ले जाने की बात कह रही है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार भारत में रह रही बनी मेनाशे जनजाति को यहूदियों की 10 खोई हुई जनजातियों में से अंतिम माना जाता है। यही वजह है कि अब इजरायल की बेंजामिन नेतन्याहू सरकार ने इन्हें 2030 तक उनके कथित मूल वतन ले जाने का फैसला किया है। इस संबंध में नेतन्याहू सरकार ने भारत सरकार से बातचीत के बाद तय योजना के तहत मिजोरम-मणिपुर में बसे इस समुदाय के 5,800 लोग उत्तरी इजरायल के गैलिली क्षेत्र में बसाए जाने की योजना बनाई है। कौन हैं बनी मेनाशे? यरुशलम की मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत में इन्हें शिनलुंग के नाम से जाना जाता है। ये मणिपुर-मिजोरम और म्यांमार सीमा से सटे तिब्बती-बर्मी समुदायों का हिस्सा हैं, जो दावा करते हैं कि वे प्राचीन इस्राएली जनजाति मेनासेह के वंशज हैं। समुदाय के लगभग 10,000 सदस्य हैं, जिनमें से आधे भारत में रहते हैं। कई लोग समय के साथ ईसाई बने, लेकिन 20वीं सदी के उत्तरार्ध में इनकी यहूदी पहचान की ओर दोबारा रुचि बढ़ी। 1951 में शुरू हुआ आंदोलन यह आंदोलन 1951 में उस समय शुरू हुआ, जब एक आदिवासी नेता ने कथित तौर पर सपना देखा कि उसकी जाति की मातृभूमि इजरायल थी। यह विचार समुदाय के भीतर तेजी से फैला और उन्होंने अपने पूर्वजों को मनमासी नामक पात्र से जोड़ना शुरू किया। यह वही काल था जब ईसाई प्रभाव वाले इस समुदाय में यहूदी परंपराओं की ओर धीरे-धीरे झुकाव दिखने लगा। खाई हुई जनजाति की मान्यता 2005 में तब बड़ी सफलता मिली, जब इजरायल के रब्बी श्लोमो अमर ने इन्हें एक खोई हुई जनजाति के रूप में मान्यता प्रदान की। इससे पहले डीएनए परीक्षणों ने इनके मध्य-पूर्वी मूल को निर्णायक रूप से साबित नहीं किया था, लेकिन धार्मिक और सांस्कृतिक दावों को इजरायल ने अहम आधार माना। पूर्वोत्तर में यहूदी पुनरुत्थान 1970 के दशक में चुराचांदपुर के लेखक व शिक्षक थांगखोलुन डैनियल लहुंगदिम ने समुदाय के इतिहास का दस्तावेजीकरण किया। उनकी पुस्तक ‘इजरायल इहिउवे’ इस आंदोलन की आधारशिला बनी। 1972 में मणिपुर इजरायल फैमिली एसोसिएशन की स्थापना हुई, जिसने बनी मेनाशे पहचान को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाई। आइजोल और इंफाल बने केंद्र शावेई इजरायल संगठन की पहल के बाद आइजोल और इंफाल में यहूदी धार्मिक शिक्षा केंद्र खुलने लगे। वर्षों की ट्रेनिंग, धार्मिक अध्ययन और इजरायल से संपर्क के बाद आज यह समुदाय अपने इतिहास के सबसे बड़े बदलाव की दहलीज़ पर खड़ा है। अब दावा ककिया जा रहा है कि 2030 तक इनके इजरायल जाने की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी, और पूर्वोत्तर भारत में दशकों से चल रहे इस अद्भुत सामाजिक-धार्मिक अध्याय का नया पड़ाव शुरू होगा। हिदायत/ईएमएस 27 नवंबर 2025