मुंबई (ईएमएस)। महाराष्ट्र की सत्ता में बीजेपी और एकनाथ शिंदे गुट की शिवसेना भले ही साथ मिलकर सरकार चला रहे हों, लेकिन निकाय चुनाव ने दोनों दलों के बीच की दोस्ती में गहरी दरार पैदा कर दी है। राज्य में हो रहे 288 शहरी निकाय चुनावों ने मुकाबले को ‘महायुति बनाम विपक्ष’ से हटाकर सीधे ‘फडणवीस बनाम शिंदे’ की जंग में तब्दील कर दिया है। कई सीटों पर बीजेपी और शिवसेना एक-दूसरे के खिलाफ आमने-सामने हैं और तकरार अब तंज, ताबड़तोड़ हमलों और राम-रावण तक पहुंच गई है। निकाय चुनाव में ‘दोस्त’ बने दुश्मन महाराष्ट्र की 246 नगर पालिकाओं और 42 नगर पंचायतों में दो दिसंबर को मतदान होना है। इन चुनावों में 6,859 पार्षदों और 288 नगर अध्यक्षों का चयन होना है। स्थानीय स्तर पर पकड़ मजबूत करने के लिए महायुति के दोनों प्रमुख दल बीजेपी और शिवसेना किसी भी कीमत पर अपनी जमीन छोड़ने को तैयार नहीं हैं। इसी कारण टिकट वितरण और उम्मीदवार चयन में दोनों दलों के कार्यकर्ता और नेता आमने-सामने भिड़ गए हैं। सूत्र बताते हैं कि कई सीटों पर शिंदे गुट के नेताओं को बीजेपी ने टिकट देकर अपने पाले में खींच लिया, तो वहीं शिंदे ने भी बीजेपी के कई पार्षदों को अपने साथ मिला लिया। नतीजतन दोनों दलों में तनातनी खुलकर सामने आ गई है और नेताओं की बयानबाजी भी उफान पर है। पालघर बना ‘युद्ध का मैदान’ पालघर जिले के दहानू नगर परिषद चुनाव में बीजेपी और शिवसेना की सीधी भिड़ंत ने विवाद को चरम पर पहुंचा दिया है। शिवसेना प्रमुख और उप मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे यहां प्रचार करने पहुंचे तो उन्होंने बीजेपी पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने बीजेपी को रावण और अहंकारी बताते हुए कहा— “अहंकार में रावण की लंका जली थी, 2 दिसंबर को दहानू की जनता भी वही करेगी।” शिंदे के इस तीखे हमले के बाद राजनीतिक माहौल सुलग उठा। फडणवीस का पलटवार—हम रामभक्त, लंका में नहीं रहते दहानू में ही मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने शिंदे पर सीधे नाम लिए बिना जवाब दिया। उन्होंने कहा— “जो हमारे बारे में बुरा बोलते हैं, उन्हें नजरअंदाज करें। वे कह सकते हैं कि हमारी लंका जला देंगे, लेकिन हम लंका में नहीं रहते। हम रामभक्त हैं, रावण नहीं।” फडणवीस ने आगे कहा कि उनका उम्मीदवार ‘भरत’ है और भरत ही लंका जलाता है जब विकास विरोधी ताकतें सामने आती हैं। इस तरह उन्होंने बड़े ही रोचक अंदाज में शिंदे को जवाब देते हुए अपने कार्यकर्ताओं में जोश भरा। पुरानी खटास अब मंच पर राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि फडणवीस-शिंदे के बीच की खटास नई नहीं है। शिंदे बगावत के बाद से ही दोनों के बीच सत्ता संतुलन को लेकर तनाव चलता रहा है। लेकिन अब चुनावी मंच पर यह दूरी खुलकर सामने आ रही है। कल्याण-डोंबिवली में फडणवीस ने शिंदे के बेटे श्रीकांत शिंदे के करीबी नेता को बीजेपी में शामिल कराकर बड़ा संदेश दिया। जवाब में शिंदे ने भी बीजेपी के कई समर्थकों को शिवसेना (शिंदे गुट) का टिकट देकर मुकाबला बराबरी पर ला दिया। निकाय चुनाव बने नाक का सवाल स्थानीय निकाय चुनाव भले ही छोटे पैमाने के हों, लेकिन राजनीतिक प्रतीकात्मकता के लिहाज से बिजेपी और शिव सेना दोनों के लिए बेहद अहम हैं। इन्हीं चुनावों से भविष्य के विधानसभा समीकरणों की नींव भी तैयार होती है। इसी कारण दोनों नेता चाहकर भी पीछे नहीं हट रहे हैं। सीटों पर समझौता न होने से अब मुकाबला पूरा राजनीतिक प्रतिष्ठा का सवाल बन चुका है। विपक्ष की नजरें भी टिकीं दोनों सत्ताधारी दलों की आंतरिक लड़ाई ने विपक्ष—शरद पवार गुट, उद्धव ठाकरे की शिवसेना और कांग्रेस—को भी नई उम्मीद दी है। विपक्ष इसे ‘महा-युति की महा-फूट’ बताते हुए जनता के बीच मुद्दा बनाने में जुट गया है। निष्कर्ष महाराष्ट्र निकाय चुनाव ने दिखा दिया है कि सत्ता साझेदारी अलग बात है, लेकिन जमीन पर राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई कहीं ज्यादा तीखी होती है। फडणवीस बनाम शिंदे की यह जंग न केवल महायुति में तनाव बढ़ा रही है, बल्कि भविष्य की राजनीति के कई संकेत भी दे रही है। दो दिसंबर का मतदान यह तय करेगा कि लंका जलेगी, रामभक्त जीतेंगे या बैड बॉय—यह लड़ाई अब सिर्फ प्रतीक नहीं, महाराष्ट्र के राजनीतिक भविष्य की बिसात बन चुकी है। ईएमएस / 28 नवम्बर 25