राज्य
28-Nov-2025


- यूपीएस लागू करने बनी कमेटी ने नहीं की कोई सिफारिश भोपाल (ईएमएस)। मप्र में पदस्थ आईएएस, आईपीएस, आईएफएस समेत दो लाख कर्मचारी-अधिकारी केंद्र सरकार की यूपीएस (यूनिफाइड पेंशन स्कीम)और एनपीएस (नेशनल पेंशन स्कीम) की फांस में फंसे हुए हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि प्रदेश में यूपीएस लागू करने के लिए सरकार ने जो कमेटी बनाई है उसने आज तक कोई सिफारिश सरकार को नहीं की है। वहीं केंद्रीय कर्मचारियों के लिए यूनिफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) का विकल्प चुनने की अंतिम तारीख नजदीक आ गई है। केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों के लिए यूपीएस का विकल्प चुनने के लिए 30 नवंबर की डेडलाइन तय की है। यानी जो कर्मचारी इस तारीख तक यूपीएस नहीं अपनाएंगे, उन्हें अनिवार्य रूप से नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस) में बने रहना होगा। गौरतलब है कि मप्र सरकार ने भी केंद्र की तर्ज पर अपने कर्मचारियों के लिए यूपीएस लागू करने की तैयारी कर ली थी। इसके लिए मप्र सरकार ने अप्रैल, 2025 में सीनियर आईएएस अफसरों की एक कमेटी बनाई थी, लेकिन कमेटी ने अब तक इस संबंध में सरकार को कोई सिफारिश नहीं की है। आधिकारिक जानकारी के मुताबिक केंद्र में यूपीएस को मिले खराब रिस्पॉन्स को देखते हुए मप्र सरकार इसे लागू करने के मुद्दे पर आगे नहीं बढ़ पाई है। मप्र सरकार के कर्मचारी ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) लागू करने की मांग कर रहे हैं। दरअसल, केंद्र सरकार ने एक अप्रैल, 2025 से अपने कर्मचारियों के लिए यूनिफाइड पेंशन स्कीम लागू की थी। सरकार ने एनपीएस के मुकाबले यूपीएस को कर्मचारियों के लिए बेहतर बताते हुए इसे अपनाने की बात कही थी, लेकिन शुरुआत से ही यूपीएस का विकल्प चुनने में केंद्रीय कर्मचारियों ने रुचि नहीं दिखाई। गत 28 जुलाई को वित्त मंत्रालय ने संसद में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में जानकारी दी थी कि 20 जुलाई की स्थिति में कुल 31,555 केंद्रीय कर्मचारियों ने यूपीएस को चुना है, जो पात्र कर्मचारियों का सिर्फ लगभग 1.37 प्रतिशत है। यूपीएस के लिए पात्र केंद्रीय कर्मचारियों की कुल संख्या करीब 23 लाख है। यही वजह है कि केंद्र सरकार ने अपने कर्मचरियों के लिए यूपीएस का विकल्प चुनने की तारीख दो महीने बढ़ाकर 30 नवंबर तय कर दी है। इसके बाद भी कर्मचारियों ने यूपीएस का विकल्प चुनने में खास रुचि नहीं दिखाई है। 7 माह में कमेटी ने नहीं लिया कोई निर्णय मप्र में यूपीएस लागू करने के लिए सरकार ने अप्रैल में यूपीएस लागू करने की तैयारी शुरू कर दी थी। इसके लिए गत 29 अप्रैल को अपर मुख्य सचिव वन अशोक बर्णवाल की अध्यक्षता में आईएएस अफसरों की कमेटी का गठन किया था। गठन के बाद से अब तक कमेटी की सिर्फ एक बैठक हुई है। इस बैठक में यूपीएस को लेकर सामान्य चर्चा हुई थी। अधिकारियों का कहना है कि केंद्र सरकार में यूपीएस को मिले खराब रिस्पॉन्स को देखते हुए सरकार फिलहाल इस दिशा में आगे बढऩे के मूड में नहीं है। यही वजह है कि आईएएस अफसरों की कमेटी ने भी इस मामले में गंभीरता नहीं दिखाई है। कमेटी का गठन हुए सात लगभग महीने हो चुके हैं, लेकिन आज तक कमेटी ने कोई निर्णय नहीं लिया है। मप्र में वर्तमान में करीब 4 लाख 50 हजार कर्मचारी नेशनल पेंशन स्कीम के दायरे में हैं। ये कर्मचारी लंबे समय से सरकार से ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने की मांग कर रहे हैं। तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ के प्रदेश महामंत्री उमाशंकर तिवारी का कहना है कि सरकार को ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करना चाहिए। यूपीएस को लेकर प्रदेश के कर्मचारी सहमत नहीं हैं। मप्र के कर्मचारी ओपीएस के पक्ष में देश में अधिकारियों-कर्मचारियों के लिए तीन तरह की पेंशन स्कीम है। मप्र सरकार के अधिकारी-कर्मचारी ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) लागू करने की मांग कर रहे हैं। एनपीएस यानी नेशनल पेंशन स्कीम में निवेश के आधार पर पेंशन मिलती है। यह सरकारी-निजी सभी कर्मचारियों के लिए है। सरकारी कर्मचारी 10 प्रतिशत और सरकार 14 प्रतिशत योगदान देती है। रिटायरमेंट के समय कुल जमा का 60 प्रतिशत एकमुश्त निकाला जा सकता है। शेष 40 प्रतिशत पेंशन के रूप में फिक्स होता है। यूपीएस के तहत केंद्र सरकार की यूनिफाइड पेंशन स्कीम में आखिरी वेतन की 50 प्रतिशत पेंशन मिलेगी। 10 वर्ष से अधिक और 25 वर्ष से कम में रिटायर हुए तो आनुपातिक रूप से लाभ मिलेगा। कर्मचारी का योगदान 10 प्रतिशत और सरकार का 18.5 प्रतिशत (कार्पस फंड की राशि मिलाकर) होगा। एनपीएस की तरह बाजार से जुड़ा निवेश नहीं होगा, जबकि ओल्ड पेंशन स्कीम की तरह डीआर का प्रावधान होगा। वहीं देश में 2004 से पहले ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) लागू थी। इसमे पेंशन के लिए कर्मचारी के वेतन से कोई कटौती नहीं होती थी। पुरानी पेंशन योजना एक सुरक्षित पेंशन योजना है, इसमें भुगतान सरकार की ट्रेजरी के माध्यम से किया जाता था। इस योजना में रिटायरमेंट के समय अंतिम बेसिक सैलरी के 50 फीसदी तक निश्चित पेंशन मिलती थी। ओपीएस को दिसंबर, 2003 में सरकार ने समाप्त कर दिया था। लेकिन मप्र के कर्मचारी ओपीएस लागू करने की मांग लगातार कर रहे हैं। विनोद / 28 नवम्बर 25