लेख
01-Dec-2025
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राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस (2 दिसम्बर) पर विशेष प्रतिवर्ष 2 दिसम्बर को भोपाल गैस त्रासदी में जान गंवाने वाले लोगों की याद में भारत में ‘राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस’ मनाया जाता है। विभिन्न रिपोर्टों के मुताबिक उस गैस त्रासदी में जहरीली गैस के रिसाव के कारण पांच लाख से भी अधिक लोगों की मौत हो गई थी, हालांकि मध्य प्रदेश सरकार द्वारा मौतों की संख्या 3787 घोषित की गई थी। उस गैस त्रासदी को इतने वर्षों बाद भी पूरी दुनिया में इतिहास की सबसे बड़ी औद्योगिक प्रदूषण आपदा के रूप में जाना जाता है। 1984 की उस गैस त्रासदी के दौरान प्राण गंवाने वाले लोगों को याद करने और प्रदूषण नियंत्रण कृत्यों के महत्व से हर व्यक्ति को अवगत कराने के लिए 2 दिसबर का दिन राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस के रूप में चिह्नित किया गया। इस दिन का उद्देश्य प्रदूषण को रोकने में मदद करने वाले कानूनों के बारे में लोगों को जागरूक करना, औद्योगिक आपदाओं के प्रबंधन तथा नियंत्रण के प्रति जागरूकता फैलाना और औद्योगिक प्रक्रियाओं तथा मानवीय लापरवाही से उत्पन्न प्रदूषण को रोकना है। दरअसल आधुनिकता की अंधी दौड़ में हम पर्यावरण का महत्व भूलते जा रहे हैं। इन दिनों देश के विभिन्न हिस्सों में पर्यावरण प्रदूषण को लेकर जो विकराल स्थिति बरकरार है, ऐसे में इस दिवस का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। देश में प्रदूषण को गंभीरता से नियंत्रित करने और रोकने के लिए कानून में कई धाराएं समाहित हैं, जिनमें 1974 का जल (रोकथाम और प्रदूषण नियंत्रण) अधिनियम, 1977 का जल उपकर अधिनियम, 1981 का वायु अधिनियम, 1986 का पर्यावरण (संरक्षण) नियम, 1986 का पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1989 का खतरनाक रासायनिक निर्माण, भंडारण और आयात का नियम, 1989 का खतरनाक अपशिष्ट नियम, 1989 का खतरनाक माइक्रो जीव अनुवांशिक इंजीनियर जीवों या कोशिकाओं के निर्माण, भंडारण, आयात, निर्यात और भंडारण नियम, 1996 का रासायनिक दुर्घटनाओं (इमरजेंसी, योजना, तैयारी और प्रतिक्रिया) नियम, 1998 का जैव चिकित्सा अपशिष्ट नियम, 1999 का पुनर्नवीनीकरण प्लास्टिक निर्माण और उपयोग नियम, 2000 का ओजोन क्षयकारी पदार्थ नियम, 2000 का ध्वनि प्रदूषण नियम, 2000 का नगरपालिका ठोस अपशिष्ट नियम, 2001 बैट्री (मैनेजमेंट और संचालन) नियम, 2006 महाराष्ट्र जैव कचरा नियंत्रण अध्यादेश, 2006 का पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना नियम इत्यादि प्रमुख हैं। इतने सारे अधिनियमों के बावजूद यह विड़म्बना ही है कि देश में प्रदूषण का स्तर निरन्तर बढ़ रहा है और वायु प्रदूषण के मामले में दिल्ली, लखनऊ, कानपुर, आगरा, फरीदाबाद, वाराणसी, गया, पटना, जयपुर, पटियाला इत्यादि भारत के कई शहरों की गिनती अक्सर विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में होती रही है। बढ़ते प्रदूषण ने जलवायु परिवर्तन के खतरे को भयावह रूप से तीव्र कर दिया है। हिंदी अकादमी दिल्ली के सौजन्य से प्रकाशित पुस्तक ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ के अनुसार, औद्योगिकीकरण, जीवाश्म ईंधनों का अत्यधिक उपयोग, वनों की कटाई और शहरीकरण ने वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा बढ़ाकर पृथ्वी के तापमान को असंतुलित कर दिया है। ‘लांसेट’ जर्नल की रिपोर्ट इस संकट की गंभीरता को रेखांकित करती है। रिपोर्ट के अनुसार विश्व के 30 देशों में जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के चलते कृषि उत्पादन में गिरावट का चरण शुरू हो चुका है, जो न केवल खाद्य सुरक्षा को प्रभावित कर रहा है बल्कि करोड़ों लोगों की आजीविका पर भी प्रत्यक्ष खतरा बन गया है। यही नहीं, यूरोप और पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र गर्मी के बढ़ते जोखिम की जद में हैं, जहां 65 वर्ष से अधिक आयु वाले लगभग 42 प्रतिशत लोग भीषण तापमान से होने वाले दुष्प्रभावों का सामना कर रहे हैं। वर्ष 2000 से 2017 के दौरान दुनिया के 15 करोड़ से अधिक लोग भीषण गर्मी की चपेट में आए जबकि वर्ष 2017 में यह संख्या 2016 की तुलना में 1.8 करोड़ अधिक थी। उसके बाद से यह आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। यह स्पष्ट करता है कि यदि प्रदूषण नियंत्रण और पर्यावरण संरक्षण के ठोस कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले वर्षों में जलवायु परिवर्तन मानव सभ्यता के अस्तित्व के लिए गंभीर चुनौती बन सकता है। प्रदूषण आज न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए नासूर बनता जा रहा है, जिसकी वजह से बढ़ती बीमारियों के कारण स्वास्थ्य सेवाओं पर बोझ कई गुना बढ़ता जा रहा है। हवा में मौजूद प्रदूषण के कण न केवल दिल, दिमाग और फेफड़ों पर गंभीर असर डालते हैं बल्कि कैंसर जैसी असाध्य बीमारियों का भी कारण बन रहे हैं। प्रतिवर्ष करीब सात मिलियन लोग वायु प्रदूषण के कारण अपनी जान गंवाते हैं। दुनियाभर में प्रदूषण को लेकर इस समय स्थिति इतनी बदतर है कि प्रत्येक दस में से नौ लोगों को शुद्ध हवा नसीब नहीं हो पाती और यदि समय रहते इन परिस्थितियों पर नियंत्रण करने में सफलता नहीं मिली तो यह तय है कि हमारे आने वाली पीढ़ियां जहरीली हवा में ही सांस लेकर जीवन के दिन काटने को विवश होंगी। प्रदूषण से पैदा होती विकराल वैश्विक स्थिति के बारे में प्रदूषण नियंत्रण के लिए कार्यरत शिकागो के प्रो. माइकल ग्रीनस्टोन कहते हैं कि प्रदूषण किसी भी व्यक्ति के लिए ऐसी समस्या है, जिससे स्वयं को बचाने के लिए वह निजी स्तर पर कुछ विशेष नहीं कर सकता बल्कि यह एक सामूहिक प्रयास है। प्रदूषण को लेकर विभिन्न रिपोर्टों के मुताबिक विश्व की करीब 75 फीसदी आबादी ऐसे क्षेत्रों में रहती है, जहां वायु प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से ज्यादा है। प्रदूषण से कम होती औसत आयु और लगातार बढ़ती शारीरिक व्याधियों को लेकर अब लगभग हर वर्ष चिंताजनक रिपोर्टें आ रही हैं। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के शोधकर्ताओं द्वारा तैयार एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स (एक्यूएलआई) में तो चौंका देने वाला यह तथ्य भी सामने आया कि भारत के अलावा चीन में भी औसत आयु में कमी आने के पीछे वायु प्रदूषण सबसे बड़ा कारण है, जिसकी इसमें करीब 73 फीसदी भागीदारी है। एक्यूएलआई में औसत आयु पर पड़ने वाले प्रभावों के आधार पर वायु प्रदूषण को दुनियाभर में मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया गया है। पर्यावरण विशेषज्ञों का मत है कि प्रदूषण से उम्र पर पड़ने वाला प्रभाव धूम्रपान और टीबी जैसी बीमारियों से भी ज्यादा है और यदि प्रदूषण को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों का सख्ती से पालन किया जाए तो लोगों की उम्र में कई वर्ष की बढ़ोतरी हो सकती है। चिंतनीय स्थिति यह है कि प्रकृति ने पृथ्वी को जितना खूबसूरत बनाया है, प्रदूषण से पृथ्वी प्रदत्त वह खूबसूरती बर्बाद हो रही है। दरअसल दुनिया जितनी तीव्र गति से विकास के मार्ग पर अग्रसर है, उससे भी तेज रफ्तार से प्रदूषण का स्तर बढ़ाने में भी योगदान कर रही है। ऐसे में संजीदगी से प्रदूषण की रोकथाम के गंभीर प्रयास करने की दरकार है क्योंकि यदि प्रदूषण को नियंत्रित नहीं किया गया तो हमारे आने वाली पीढ़ियां बेहद विषैली हवा में सांस लेने को विवश होंगी और इस दुनिया में जन्म लेते ही बच्चे तरह-तरह की बीमारियों के शिकार होंगे। बढ़ते वायु प्रदूषण, गर्म होती धरती और बीमारियों के विस्फोट ने साफ संकेत दे दिए हैं कि पृथ्वी अब और बोझ सहन नहीं कर सकती। यदि अभी कठोर कदम नहीं उठाए गए तो आने वाली पीढ़ियों को हम एक ऐसी दुनिया सौंपेंगे, जहां सांस लेना भी संघर्ष होगा। (लेखिका डेढ़ दशक से अधिक समय से शिक्षण क्षेत्र में सक्रिय शिक्षाविद हैं) ईएमएस/01/12/2025