-मांस के अलावा दूध, चीनी, तेल और सीमेंट पर भी सवाल नई दिल्ली,(ईएमएस)! शीतकालीन सत्र के दौरान बुधवार को राज्यसभा में हलाल सर्टिफिकेशन को लेकर गर्मा-गरम बहस हुई। महाराष्ट्र से भाजपा सांसद डॉ. मेधा विश्राम कुलकर्णी ने कहा, हलाल केवल मांस से संबंधित एक धार्मिक और आस्था-संकेतित प्रक्रिया है, लेकिन इसके दायरे को कई अन्य पदार्थों तक बढ़ा दिया गया है। उन्होंने विशेष रूप से कहा कि मांस के अलावा दूध, चीनी, तेल और यहां तक कि सीमेंट, प्लास्टर और अन्य निर्माण सामग्री को भी हलाल सर्टिफिकेट दिया जा रहा है, जो अतार्किक और आशंकाओं को पैदा करने वाला है। भाजपा सांसद डॉ. कुलकर्णी ने कहा, कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और यहां विभिन्न आस्थाओं के लोग रहते हैं। हलाल सर्टिफिकेशन केवल मुस्लिम आस्था से जुड़ा विषय है, लेकिन इसे अन्य लोगों पर थोपने से उनके धार्मिक विश्वासों का उल्लंघन होता है। उन्होंने कहा, हिंदू और सिख समुदाय के लोग हलाल मांस नहीं खाते, ऐसे में उनके लिए हलाल प्रमाणित मांस अनिवार्य रूप से उपलब्ध कराना सही नहीं है। सांसद ने यह भी आरोप लगाया कि हलाल सर्टिफिकेशन देने वाली संस्थाओं द्वारा चार्जेस लगाए जाने से बाजार में कीमतें बढ़ती हैं और उपभोक्ताओं को अप्रत्यक्ष रूप से इसका भुगतान करना पड़ता है। उन्होंने इसे उपभोक्ता स्वतंत्रता और बाजार पारदर्शिता के लिए हानिकारक बताया। डॉ. मेधा ने मेडिकल अध्ययनों का हवाला देते हुए यह भी दावा किया कि हलाल प्रक्रिया से मांस में कुछ ऐसे रासायनिक तत्व उत्पन्न होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं। उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि मांस पर हलाल सर्टिफिकेशन केवल सरकारी निकाय द्वारा दिया जाए, न कि किसी धार्मिक संस्था द्वारा। उनका यह भी कहना था कि गैर-मांस खाद्य पदार्थों और गैर-खाद्य वस्तुओं पर हलाल सर्टिफिकेशन देने का कोई आधार नहीं है और इससे धर्मनिरपेक्षता और संविधान के सिद्धांतों का उल्लंघन होता है। सांसद ने कहा कि इस तरह के कदम से उपभोक्ताओं की स्वतंत्रता बाधित होती है और सामाजिक रूप से मतभेद बढ़ सकते हैं। हिदायत/ईएमएस 03दिसंबर25