राज्य
06-Dec-2025


एक महीने के लिए मांगलिक कार्यों पर रहेगी रोक भोपाल (ईएमएस)। पंचांग की गणना के अनुसार 15 दिसंबर को सुबह 7 बजकर 20 मिनट पर सूर्य वृश्चिक राशि को छोडक़र धनु राशि में प्रवेश करेंगे। सूर्य के धनु राशि में प्रवेश करते ही विवाह आदि मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाएगा। 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर सूर्य उत्तरायण होने के बाद एक बार फिर शहनाई की गूंज सुनाई देगी। ज्योतिषाचार्य पं.अमर डब्बावाला ने बताया भारतीय ज्योतिष शास्त्र की मान्यता के अनुसार ग्रहों के राजा सूर्य एक माह में राशि परिवर्तन कर लेते हैं। इसी का परिणाम है कि एक साल में सूर्य का सभी बारह राशि में गोचर का अनुक्रम बन जाता है। सूर्य के राशि परिवर्तन का संक्रांति कहा जाता है। सूर्य 15 दिसंबर को वृश्चिक राशि को छोडक़र धनु राशि में प्रवेश करेंगे, इसे सूर्य की धनु संक्रांति कहा जाता है। आम बोलचाल में इसे मल मास भी कहा जाता है। बृहस्पति हैं धनु राशि के स्वामी सूर्य की धनु संक्रांति विशेष मानी जाती है, क्योंकि धनु राशि के स्वामी बृहस्पति हैं और सूर्य का बृहस्पति से सम संबंध है। दोनों की साक्षी में धर्म से जुड़े सभी वैदिक कार्य उत्तम फलदायी माने गए हैं। इसलिए धनुर्मास के एक माह 15 दिसंबर से 14 जनवरी तक भगवत पारायण, व्रत, उपवास आदि धार्मिक कार्य किए जा सकते हैं। इससे भक्त को रोग, दोष, ताप से मुक्ति मिलती है तथा भाग्य में आने वाले अवरोध समाप्त होते हैं। पराक्रम प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है आत्मविश्वास प्रबल होता है और पूर्व के ज्ञात अज्ञात दोषों से निवृत्ति होती है। अग्नि पुराण में इस माह का विशेष महत्व भारतीय सनातन धर्म परंपरा में 18 महापुराणों का उल्लेख मिलता है। इनमें से अग्नि पुराण में सूर्य की उत्पत्ति तथा उपासना के संबंध में विशेषता को प्रकट की गई है। पौराणिक मान्यता यह कहती है कि धनुर्मास में अधिक से अधिक धर्म और आध्यात्म के कार्य करना चाहिए, जिससे आत्म उत्थान के साथ-साथ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है। धनुर्मास में की गई देव आराधना प्रशासनिक व राजनीतिक क्षेत्र में इच्छित सफलता प्रदान करती है। इस माह में 12 ज्योतिर्लिंग की यात्रा का विशिष्ट लाभ प्रदान करती है। धनुर्मास में शनिश्चरी अमावस्या का संयोग पौष मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या पर इस बार 20 नवंबर को शनिवार होने से शनिचरी अमावस्या का योग बन रहा है। यह अमावस्या दर्श अमावस्या की श्रेणी में आती है। हालांकि इसके संबंध में कुछ पंचांगों में अलग-अलग प्रकार की गणना की गई है। किंतु 20 नवंबर शनिवार के दिन अमावस्या तकरीबन एक मुहूर्त से ऊपर है, इस दृष्टि से यह स्नान दान के साथ-साथ शनिश्चरी का योग स्वीकार करती है। इस दिन पितरों के निमित्त जल दान पिंडदान के साथ-साथ ब्राह्मणों को अन्नदान वस्त्रदान, पात्र दान करना चाहिए। जिन जातकों को जन्म कुंडली में शनि की साढ़ेसाती या लघु ढैय्या चल रहा है या शनि की महादशा चल रही है उन जातकों को शनि की वस्तुओं का दान करना चाहिए। शनि के स्त्रोत का पाठ या वैदिक अथवा बीजोक्त मंत्र का जाप करने से भी शनि महाराज की अनुकूलता प्राप्त होती है तथा बाधाओं का निवारण होता है। धनुर्मास में यह कार्य निषेध धर्म शास्त्रीय मान्यता के अनुसार जब सूर्य का धनु राशि में गोचर चल रहा हो, तो ऐसे समय में गृह वास्तु, गृह प्रवेश, विवाह कार्य, मुंडन, यज्ञोपवित आदि कार्य त्यागने चाहिए। साथ ही जहां तक संभव हो सके ब्रह्मचर्य का व्रत रखते हुए एक माह पर्यंत धर्म उपासना करना चाहिए। सूर्योदय के समय सूर्य को अघ्र्य देना चाहिए और हो सके तो रविवार को बिना नमक के उपवास करना चाहिए, यह करने से पुत्र पौत्र की वृद्धि होती है और संतान को दीर्घायु की प्राप्ति होती है। विनोद/ 6 ‎दिसम्बर /2025