लंदन (ईएमएस)। मौसम परिवर्तन का प्रभाव विश्वव्यापी है और भारत भी इस संकट से बच नहीं सकता। इस साल देश ने कई चरम मौसमीय आपदाओं का सामना किया। विशेषज्ञ की माने तो आने वाला साल और भी चुनौतीपूर्ण हो सकता है। मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक इस असामान्य मौसम परिवर्तन के पीछे बड़ा कारण है क्यूबीओ यानी क्वासी-बायेनियल ऑसिलेशन का अचानक टूटना। क्यूबीओ दरअसल पृथ्वी की सतह से 20 से 30 किलोमीटर ऊपर बहने वाली हवा की वह धारा है, जो हर 28 से 30 महीने में अपनी दिशा बदलती है। सामान्य रूप से यह बदलाव जनवरी-फरवरी में होता है, लेकिन इस बार यह धारा नवंबर में ही पलट गई, जो पूरी जलवायु प्रणाली के लिए झटका साबित हुआ। वैज्ञानिक बताते हैं कि यह मौसम की मशीन का अचानक रिवर्स गियर लग जाने जैसा है एक ऐसी स्थिति जहां नियंत्रण लगभग असंभव हो जाता है। अमेरिकी मौसम विभाग एनओएए के आंकड़े दिखाते हैं कि ऊपरी हवाएं पश्चिम से पूर्व की ओर असामान्य तेजी से मुड़ रही हैं, जो सामान्य समय से 2 से 3 महीने पहले की घटना है। क्यूबीओ का टूटना ला नीना को भी प्रभावित करेगा, जो नवंबर 2025 से फरवरी 2026 तक सक्रिय रहेगा। इस अस्थिरता की वजह से तूफान अनियमित हो रहे हैं, नमी गलत स्थानों पर जमा हो रही है, और चरम मौसमीय घटनाएं समूह में सामने आ रही हैं। भारत इसके सीधे प्रभाव वाले क्षेत्र में है क्योंकि वह हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के बीच स्थित है। फिलहाल दुनिया भर में इसके संकेत साफ देखे जा रहे हैं। दक्षिण-पूर्व एशिया वियतनाम, इंडोनेशिया और फिलीपींस तेज तूफानों और विनाशकारी बाढ़ से जूझ रहे हैं। समुद्र का तापमान रिकॉर्ड स्तर पर है, विशेष रूप से पश्चिमी प्रशांत और हिंद महासागर में। ऊपर की हवाओं की टूटन नीचे के मौसम को अनियंत्रित बना रही है, जिससे अचानक बाढ़, सूखा, लू और चक्रवात जैसे हालात पैदा हो रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अगले 15 से 30 दिनों में इसके गहरे प्रभाव दिखाई देंगे और यह असर 2026 तक जारी रह सकता है। सुदामा/ईएमएस 08 दिसंबर 2025