राज्य
11-Dec-2025
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दमोह (ईएमएस)। व्यक्ति के अंदर इच्छाएं होती है जो तितिक्षा बन जीवन भर किसी की प्रतीक्षा करती रहती है कोई तितिक्षा कभी होती कभी नहीं, ऐसे में शंका का उदय होता जिसे स्वाध्याय ग्राही ही रहस्यमई युक्ति से पूरा कर पाता शास्त्र ऐसा कहता है कि शंकर ही शंका मिटाता है इसलिए उसे शंकर कहा विद्या का देव वास्तव में शिवका अर्थ है। आनन्द, कल्याण, परम मंगल, कैलासको देखकर जो आन्तरिक आनन्दकी अनुभूति होती है, वह शिवतत्त्वकी हलकी-सी झलक देती है। शिवको महाशक्तिर्महाद्युतिः अनन्त शक्ति एवं श्रेष्ठ कान्तिसे सम्पन्न कहा जाता है। कैलास अपने स्वामी शिवकी तरह ही अनन्त शक्तिसम्पन्न प्रतीत होता है। उसकी उज्ज्वल कान्ति तो देखते ही बनती है। विगालः अर्थात् अपनी जटासे गंगाजीके जलको टपकानेवाले शिवकी तरह ही कैलाससे निकलनेवाली नदियाँ विशेषकर कैलाससे गिरनेवाले झरने शिवकी जटाओंसे गंगाके निकलनेका स्मरण कराते हैं। हमारे शरीरका ७० प्रतिशत भाग जलसे बना है। जल ही प्राणका आधार है। कैलाससे निकलनेवाली नदियाँ और झरने इसी प्राणतत्त्वको प्रसारित करते हैं। विश्वकी एक-चौथाई जनसंख्याका भरण-पोषण कैलाससे निकलनेवाली नदियोंके जलसे ही होता है। कैलास प्राणतत्त्वका आधार है। कैलासपर छायी हिम, भस्म-सी प्रतीत होती है। भस्म संसारकी अनित्यताका बोध कराती है। शिव भस्म धारण करनेके साथ मस्तकपर त्रिपुण्ड्र भी लगाते हैं। त्रिपुण्ड्रकी तीन रेखाएँ प्रणवके तीन अक्षरों-अकार, उकार और मकारकी प्रतीक हैं। ये तीन रेखाएँ मानव-निर्मित तीन लोकोंकी प्रतीक हैं, जिनके संहारका कार्य शिव करते हैं। कैलासके दक्षिणी पार्श्वपर शिवका मुख और उसपर त्रिपुण्ड्र स्पष्ट प्रतीत होता है। प्रकृतिद्वारा उद्भूत सांसारिक चीजोंसे असंपृक्त हैं। इसी प्रकार शिवलिंगके ऊपर अभिषेक का लाभ ही आपने अंदर से कलमष को दूर करता है जो कलयुग में धर्म मर्मज्ञ विद्वत जनों का विचार यही से पुष्ट होता है। लक्ष्मी नारायण महायज्ञ के प्रभाव से जन मानस में अनोखा समर्पण देखने मिल रहा है जिसमें फलाहारी बाबा संत सेवा ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत श्री राम दास त्यागी जी महाराज एवं योगी राज राम करण दास त्यागी जी महाराज ने कथा श्रवण का लाभ लिया। ईएमएस / 11/12/2025