महिला जस्टिस निशा बानु को केरल हाईकोर्ट मैं जॉइनिंग के आदेश नईदिल्ली (ईएमएस)। जस्टिस निशा बानु अभी मद्रास हाई कोर्ट में पदस्थ हैं। इनका ट्रांसफर केरला हाई कोर्ट में किया गया था। मद्रास हाईकोर्ट में वह वरीयता क्रम में तीसरे नंबर पर थी। केरला हाईकोर्ट में यह नोवें नंबर पर पहुंच जाएंगी। जिसके कारण उन्हें करियर में बहुत नुकसान उठाना पड़ेगा। ना तो वह किसी हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश बन पाएंगी। ना ही वह सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में नॉमिनेट हो पाएगी। इस कारण उन्होंने केरल हाईकोर्ट में पदभार ग्रहण नहीं किया था। उन्होंने आदेश पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया था। हाल ही में राष्ट्रपति के नाम से जारी इस आदेश में निशा बानु को कहा गया है, वह 20 दिसंबर के पहले केरल हाईकोर्ट में पदभार ग्रहण करें। न्याय पालिका में पहली बार इस तरह का आदेश राष्ट्रपति की ओर से जारी किया गया है। इस आदेश के बाद देश की न्याय पालिका में हड़कंप की स्थिति देखने को मिल रही है। पिछले कुछ महीनो में जजों की वरीयता क्रम को दरकिनार कर जजों की नियुक्ति की जा रही है। जस्टिस अतुल श्रीधरन के मामले में भी यही हुआ था। निशा बानु की पोस्टिंग मे भी वरीयता नजर अंदाज की गई है। कॉलेजियम द्वारा वरीयता क्रम का ध्यान नहीं रखा जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट की कालेजियम ने 27 अगस्त 2025 को जिन 14 जजों के ट्रांसफर की अनुशंसा की गई थी। उसमें निशा बानो का नाम केरल हाईकोर्ट के लिए प्रस्तावित था। उन्होंने ट्रांसफर आदेश के बाद केरल हाईकोर्ट में जॉइनिंग नहीं दी। उन्होंने कॉलेजियम में पुनर्विचार करने के लिए अनुरोध किया था। इस मामले में कोई निर्णय होता, इसके पूर्व ही विधि मंत्रालय की अनुशंसा पर राष्ट्रपति की ओर से निशा बानू को जो आदेश जारी किया गया है। यह पहली बार हुआ है।निशा बानू ने ईड़ी के मामले में एक ऐसा फैसला दिया था। जिसे सरकार की नाराजी से जोड़कर देखा जा रहा है। म।प्र। हाईकोर्ट के जज अतुल श्रीधरन ने मध्य प्रदेश के मंत्री विजय शाह के खिलाफ स्वयं संज्ञान लेते हुए सेना अधिकारी सोफिया कुरैशी के मामले में कार्यवाही शुरू की थी। उसके बाद उनका ट्रांसफर आदेश छत्तीसगढ़ से बदलकर इलाहाबाद हाई कोर्ट कर दिया गया। जहां पर वह वरीयता क्रम में काफी नीचे पहुंच गए हैं। इसी तरह से सुप्रीम कोर्ट में बीवी नागरत्ना ने कालेजियम के सदस्य के रूप मे सुप्रीम कोर्ट के लिए विपुल पंचोली के नाम पर आपत्ति जताई थी। वह जजों की वरीयता क्रम में काफी नीचे थे। उसके बाद भी उनके नाम की अनुशंसा सुप्रीम कोर्ट के लिए कालेजियम ने की थी। जिस पर उन्होंने नाराजी जताते हुये कहा था। उनकी आपत्ति को रिकार्ड नही किया गया।अभी तक यह सारे मामले दबे छुपे चल रहे थे। अब ट्रांसफर-पोस्टिंग में विधि मंत्रालय का सीधा हस्तक्षेप हो गया है।जिसके कारण न्याय पालिका के जजों में हड़कंप की स्थिति देखी जा रही है। एसजे/13/12/2025