राष्ट्रीय
14-Dec-2025
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नई दिल्ली,(ईएमएस)। कॉलेजियम प्रणाली पर बात करते हुए मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत ने इसका बचाव किया, लेकिन यह भी स्वीकार किया कि किसी भी व्यवस्था में सुधार की गुंजाइश रहती है। उन्होंने कहा कि उम्मीदवारों के साथ व्यक्तिगत संवाद की प्रक्रिया एक सकारात्मक कदम है, जिससे कॉलेजियम के सदस्यों को उनकी योग्यता, ईमानदारी और अनुभव का प्रत्यक्ष आकलन करने में मदद मिलती है। उन्होंने बताया कि अब नियुक्तियों में स्वीकृति या अस्वीकृति के कारण दर्ज करने का प्रयास किया जा रहा है, जो अधिक पारदर्शिता की दिशा में महत्वपूर्ण बदलाव है। साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि प्रक्रिया स्वभाव से जटिल है और न्यायिक प्रणाली की अखंडता बनाए रखने के लिए कुछ आंतरिक पहलुओं को पूरी तरह सार्वजनिक करना संभव नहीं होता। भारत के नए मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत ने 24 नवंबर से अपने 15 महीने के कार्यकाल की शुरुआत की है। कार्यभार संभालने के साथ ही उन्होंने न्यायिक प्रणाली से जुड़े अहम मुद्दों पर अपने विचार और प्राथमिकताएं सामने रखी हैं। इनमें कॉलेजियम प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता, लंबित मामलों के निपटारे की रणनीति और न्यायिक जिम्मेदारियों के प्रति संवेदनशील दृष्टिकोण शामिल है। उन्होंने स्पष्ट किया कि न्यायपालिका का दायित्व केवल कानून की व्याख्या तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज में व्याप्त जटिल समस्याओं से भी जुड़ा है। न्यायिक स्वतंत्रता को लेकर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि यह देश की न्याय प्रणाली की मूल आधारशिला है। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह सिद्धांत संविधान में निहित शक्तियों के पृथक्करण के साथ पूरी तरह मेल खाता है। उनके अनुसार, न्यायपालिका की जिम्मेदारी केवल सत्ता से स्वतंत्र रहना नहीं है, बल्कि संविधान और उन नागरिकों के प्रति जवाबदेह होना भी है, जिनके अधिकारों की रक्षा के लिए यह व्यवस्था बनाई गई है।सोशल मीडिया पर न्यायाधीशों और अदालती टिप्पणियों की हो रही आलोचना पर उन्होंने संतुलित दृष्टिकोण अपनाया। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया को नियंत्रित करना उचित नहीं होगा, क्योंकि इससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रभावित हो सकती है। हालांकि उन्होंने यह भी माना कि जब अदालत की कार्यवाही के छोटे-छोटे अंश बिना संदर्भ के साझा किए जाते हैं, तो गलतफहमियां पैदा होना स्वाभाविक है। उनके अनुसार, ऐसी आलोचनाएं अक्सर अधूरी जानकारी या अज्ञानता से उपजती हैं और इन्हें नजरअंदाज करना ही बेहतर होता है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि न्यायाधीश अपने कर्तव्यों से ध्यान हटाकर सोशल मीडिया की प्रतिक्रियाओं पर केंद्रित हो जाएं, तो न्याय की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। जस्टिस सूर्यकांत ने अपने पूर्व अनुभवों का जिक्र करते हुए पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में बिताए गए 14 वर्षों के कार्यकाल को याद किया। उन्होंने बताया कि उस दौरान उन्हें पंजाब में फैली ड्रग्स की गंभीर समस्या से जुड़े मामलों की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। उन्होंने कहा कि वर्ष 2015 के आसपास स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी थी कि यह एक बड़ी सामाजिक चुनौती बन गई थी। यह ऐसा विषय नहीं था जिसे किसी एक आदेश के जरिए सुलझाया जा सके। उनके अनुसार, यह धैर्य, निरंतर निगरानी और कई स्तरों पर समन्वित प्रयासों की परीक्षा थी। अदालत को प्रशासन, जांच एजेंसियों और समाज के अन्य हितधारकों के साथ मिलकर लंबे समय तक काम करना पड़ा। मुख्य न्यायाधीश ने “मास्टर ऑफ रोस्टर”की अवधारणा पर भी अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि इस शब्द का अक्सर गलत अर्थ निकाला जाता है। मुख्य न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय का सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश होता है और इस वरिष्ठता के साथ न्यायिक दायित्वों के अलावा प्रशासनिक जिम्मेदारियां भी जुड़ी होती हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि मामलों का आवंटन किसी एक व्यक्ति की इच्छा से नहीं होता, बल्कि यह अन्य न्यायाधीशों की उपलब्धता, उनके अनुभव और विशेषज्ञता तथा न्यायालय के समग्र कार्यभार को ध्यान में रखते हुए विचार-विमर्श के बाद तय किया जाता है। वीरेंद्र/ईएमएस/14दिसंबर2025