क्या न्यायपालिका को अपनी निष्पक्षता साबित करने के लिए सनातन धर्म और बहुसंख्यक हिन्दू समाज के खिलाफ फैसला देना जरूरी है? क्या इस देश में बहुसंख्यक आस्था के पक्ष में मेरिट के आधार पर भी कोई न्यायिक निर्णय देना तथाकथित सेकुलर सियासतदानों की नजर में अपराध है? इन दिनों मद्रास हाइकोर्ट के न्यायाधीश के एक फैसले को लेकर देश की कथित सेकुलरिज्म की झंडाबरदार राजनीति में हलचल मची हुई है। ये वही सियासतदान हैं जो आजादी के बाद पिछले सात दशक तक अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की सियासती आंच पर अपनी रोटी सकते रहे उन्हें एक नयायाधीश का एक दीप जलाने की इजाजत देने वाला फैसला जहर लग रहा है। अब विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक के 107 सांसदों ने मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ के न्यायाधीश न्यायमूर्ति जीआर स्वामीनाथन को पद से हटाने के लिए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को एक महाभियोग प्रस्ताव सौंपा है । इस प्रस्ताव में कांग्रेस, डीएमके आप , सपा, सीपीआई, सीपीएम, और शिवसेना (उद्धव ठाकरे) सहित कई प्रमुख दलों के सांसदों के हस्ताक्षर हैं। नियम के अनुसार, किसी जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश करने के लिए लोकसभा में कम से कम 100 सांसदों के समर्थन की आवश्यकता होती है,इंडिया ब्लॉक के 107 सांसदों ने महाभियोग प्रस्ताव पर दस्तखत किए हैं। आपको बता दें कि इस पूरे राजनीतिक विवाद की पृष्ठभूमि में न्यायमूर्ति स्वामीनाथन का एक फैसला है। पिछले हफ्ते, उन्होंने तमिलनाडु के तिरुप्परनकुंद्रम पहाड़ी पर स्थित 6वीं शताब्दी के सुब्रमण्यम स्वामी मंदिर के प्रशासन को एक निर्देश दिया। यह निर्देश था कि 13वीं शताब्दी की सिकंदर बादुशाह दरगाह के पास एक स्तंभ पर दीपक जलाने की परंपरा को फिर से शुरू किया जाए। जब राज्य सरकार ने विरोध किया और मंदिर प्रबंधन ने पालन नहीं किया, तो जज ने अवमानना का आदेश भी जारी किया।न्यायमूर्ति स्वामीनाथन ने अपने आदेशों का पालन न करने पर तमिलनाडु के मुख्य सचिव और अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (कानून एवं व्यवस्था) को 17 दिसंबर को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कोर्ट में पेश होने के लिए भी तलब किया है। उन्होंने राज्य सरकार के अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा, मैं यहां हाथ उठाकर असहाय होकर यह कहने के लिए नहीं हूं कि, हे पिता, उन्हें माफ कर दो, क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं। यह जानबूझकर उल्लंघन है। उन्होंने केओसुबल की रिपोर्ट का संज्ञान लिया, जिसमें बताया गया था कि मदुरै पुलिस आयुक्त ने 200 से अधिक पुलिसकर्मियों के साथ अदालत के आदेश का पालन करने से केओसुबल टुकड़ी को रोका था। दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाई कोर्टों के 56 पूर्व न्यायाधीशों ने विपक्षी सांसदों द्वारा मद्रास हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति जी.आर. स्वामीनाथन के खिलाफ महाभियोग की पहल को लेकर कड़ी आपत्ति व्यक्त की है। पूर्व न्यायाधीशों ने कहा कि यह कदम उन न्यायाधीशों को दबाव में लाने का प्रयास है जो राजनीतिक या वैचारिक उम्मीदों के अनुरूप फैसले नहीं देते। 12 दिसंबर को जारी संयुक्त बयान में उन्होंने कहा कि ऐसे प्रयास लोकतंत्र और न्यायपालिका की स्वतंत्रता की बुनियाद को कमजोर करते हैं। उन्होंने कहा कि महाभियोग का इस्तेमाल न्यायिक आचरण की रक्षा के लिए होता है, न कि राजनीतिक हथियार की तरह। मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन को हटाने की मांग करते हुए 100 से अधिक सांसदों की ओर से लाए गए महाभियोग प्रस्ताव के खिलाफ बड़ा विरोध सामने आया। 50 से अधिक पूर्व न्यायाधीशों, जिनमें सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज और कई हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश शामिल हैं, ने एक कड़े शब्दों वाला पत्र जारी कर इस कदम की कड़ी निंदा की। उन्होंने इस कदम को जजों को डराने-धमकाने की खुली कोशिश बताया। पूर्व जजों ने कहा कि कार्तिगई दीपम दीप-प्रज्वलन मामले में दिए गए निर्णय के आधार पर जस्टिस स्वामीनाथन को हटाने की कोशिश लोकतंत्र और न्यायपालिका की स्वतंत्रता की जड़ें हिला देने वाली है। उन्होंने लिखा कि सांसदों द्वारा बताए गए कारण सतही और इतने गंभीर संवैधानिक कदम के लिए बिल्कुल भी पर्याप्त नहीं हैं। पत्र में पूर्व जजों ने इस कोशिश को न्यायपालिका को कमजोर करने वाली लंबी और चिंताजनक राजनीतिक परंपरा का हिस्सा बताया। उन्होंने आपातकाल के बाद तीन वरिष्ठ जजों की सुपरसिडिंग, जस्टिस एचआर खन्ना की उपेक्षा और पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, एसए बोबडे, डीवाई चंद्रचूड़ और अब सीजेआई सूर्याकांत के खिलाफ चलाए गए राजनीतिक अभियान का उल्लेख किया। पूर्व न्यायाधीशों ने चेतावनी दी कि महाभियोग जैसे संवैधानिक प्रावधान का इस्तेमाल आर्म-ट्विस्टिंग और बदले की राजनीति के हथियार के रूप में नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा, “आज निशाना एक जज है, कल पूरा संस्थान निशाने पर होगा। ” पूर्व जजों ने सांसदों, बार काउंसिल, सिविल सोसाइटी और नागरिकों से अपील की कि इस कदम को शुरुआत में ही रोक दिया जाए, क्योंकि जज संविधान के प्रति जवाबदेह होते हैं, न कि राजनीतिक समूहों की पसंद-नापसंद के प्रति कोई जबाबदेही बता दें कि यह पूरा विवाद तमिलनाडू में तब उठा, जब जस्टिस स्वामीनाथन ने तिरुप्परंकुंद्रम हिल पर दीपथून स्तंभ पर कार्तिगई दीपम का दीप जलाने का आदेश दिया। यह स्थान सिकंदर बादूशा दरगाह के पास है और लंबे समय से संवेदनशील माना जाता रहा है। याचिकाकर्ताओं की मांग पर जज ने 4 दिसंबर शाम 6 बजे तक दीप जलाने का निर्देश दिया। उन्होंने दलील दी कि यह कदम मुस्लिम समुदाय के अधिकारों का उल्लंघन नहीं करता, लेकिन दीप न जलाने से पहाड़ी पर मंदिर के अधिकार कमजोर हो सकते हैं, क्योंकि वहां कथित अतिक्रमण की शिकायतें उठती रही हैं। हालांकि तमिलनाडू सरकार ने यह कहते हुए कि इससे कानून-व्यवस्था बिगड़ सकती है, आदेश लागू करने से इनकार कर दिया। इसके बाद पुलिस और हिंदू संगठनों के बीच झड़पें भी हुईं। डीएमके ने आरोप लगाया कि जज ने 2017 की डिवीजन बेंच के आदेश को उलट दिया है और उनका निर्देश चुनाव से ठीक पहले सांप्रदायिक तनाव भड़का सकता है। पार्टी नेता टीआर बालू ने लोकसभा में यह मुद्दा उठाते हुए दावा किया कि बीजेपी राज्य में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश कर रही है। वहीं तमिलनाडू बीजेपी अध्यक्ष नैनार नागेन्द्रन ने महाभियोग प्रस्ताव को लोकतंत्र के लिए खतरनाक बताया। उन्होंने कहा कि डीएमके न्यायिक फैसले तभी स्वीकार करती है जब वे उसके हित में हों। भाजपा नेता ने कहा कि जस्टिस स्वामीनाथन ने कोई अपराध नहीं किया और मंदिर व पुलिस प्रशासन की विफलता के कारण ही उन्हें आदेश देना पड़ा। उन्होंने चेतावनी दी कि इस तरह के महाभियोग प्रयास गलत परंपरा कायम करेंगे और संस्थानों के बीच टकराव को जन्म दे सकते हैं। आपको पता रहे यह मुद्दा सिर्फ अदालत तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि पिछले हफ्ते लोकसभा में भी बवाल मच गया था। डीएमके सदस्यों ने सदन में विरोध प्रदर्शन करते हुए बीजेपी पर सांप्रदायिक तनाव भड़काने का आरोप लगाया। वहीं, केंद्रीय उपमंत्री एल. मुरुगन ने डीएमके पर एक विशेष समुदाय को निशाना बनाने का पलटवार किया। डीएमके सांसद टीआर बालू ने सदन में न्यायमूर्ति स्वामीनाथन के एक विशेष विचारधारा के प्रति निष्ठा रखने की आलोचना की, जिस पर केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने न्यायपालिका पर आक्षेप न लगाने की चेतावनी दी थी। अब स्पीकर ओम बिरला के सामने इन आरोपों की जांच और प्रस्ताव पर निर्णय लेने की बड़ी जिम्मेदारी है।देखना है कि इस मामले का पटाक्षेप किस तरह होता है।इतना तय है कि अब इस देश में तुष्टिकरण की सियासत चलने वाली नहीं है। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं पिछले 38 वर्ष से लेखन और पत्रकारिता से जुड़े हैं) (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है) .../ 16 दिसम्बर /2025