लंदन (ईएमएस)। साल 2010 से 2023 के बीच अंटार्कटिका के थ्वाइट्स ग्लेशियर के आसपास 360 से ज्यादा ऐसे भूकंप दर्ज किए गए हैं। थ्वाइट्स को दुनिया ‘डूम्सडे ग्लेशियर’ के नाम से जानती है, क्योंकि इसके पूरी तरह ढहने से समुद्र का स्तर करीब 3 मीटर तक बढ़ सकता है। अंटार्कटिका की जमी हुई चुप्पी के भीतर अब एक खतरनाक हलचल सुनाई देने लगी है। पहली बार वैज्ञानिकों ने यहां इतने बड़े पैमाने पर रहस्यमयी ग्लेशियल भूकंपों का पता लगाया है। यही वजह है कि इन असामान्य कंपन ने वैज्ञानिकों की नींद उड़ा दी है। अंटार्कटिका की जमी हुई चुप्पी के भीतर अब एक खतरनाक हलचल सुनाई देने लगी है।ये कंपन सामान्य टेक्टोनिक भूकंपों से अलग हैं। इन्हें ग्लेशियल अर्थक्वेक कहा जाता है, जो धरती की प्लेटों के टकराने से नहीं, बल्कि बर्फ के भीतर होने वाली जबरदस्त हलचलों से पैदा होते हैं। जब विशाल और लंबे आइसबर्ग ग्लेशियर से टूटकर समुद्र में गिरते हैं और पलटते हुए अपनी ही मूल बर्फ से टकराते हैं, तो इतनी ताकतवर ऊर्जा निकलती है कि जमीन तक कंपन महसूस होता है। खास बात यह है कि ये कंपन लो-फ्रीक्वेंसी होते हैं, इसलिए पारंपरिक सेंसर अक्सर इन्हें पकड़ नहीं पाते। पहले माना जाता था कि ऐसे ग्लेशियल भूकंप मुख्य रूप से ग्रीनलैंड में होते हैं और अंटार्कटिका में बेहद दुर्लभ हैं। लेकिन नई रिसर्च ने इस धारणा को तोड़ दिया है। स्थानीय अंटार्कटिक स्टेशनों के डेटा का विश्लेषण करने पर वैज्ञानिकों ने पाया कि 362 में से 245 घटनाएं सिर्फ थ्वाइट्स ग्लेशियर के पास दर्ज की गईं। कुछ गतिविधियां पाइन आइलैंड ग्लेशियर के आसपास भी मिलीं, हालांकि वहां के भूकंप समुद्र से काफी दूर थे, जिससे उनका कारण अभी रहस्य बना हुआ है। चिंता की सबसे बड़ी वजह यह है कि जिन वर्षों में थ्वाइट्स ग्लेशियर की समुद्र की ओर खिसकने की रफ्तार तेज हुई, उन्हीं वर्षों में ग्लेशियल भूकंपों की संख्या भी सबसे ज्यादा रही। वैज्ञानिकों का मानना है कि समुद्री पानी का बढ़ता तापमान, बदलती धाराएं और तेजी से पिघलती बर्फ मिलकर ग्लेशियर को पहले से कहीं ज्यादा अस्थिर बना रहे हैं। इसका मतलब यह हो सकता है कि ग्लेशियर अंदर से कमजोर हो रहा है और टूटने की प्रक्रिया तेज हो सकती है। अगर थ्वाइट्स ग्लेशियर तेजी से ढहता है, तो इसके असर अंटार्कटिका तक सीमित नहीं रहेंगे। समुद्र स्तर में तेज बढ़ोतरी से दुनिया के तटीय शहरों पर स्थायी बाढ़ का खतरा मंडराने लगेगा। लाखों लोगों को विस्थापन झेलना पड़ सकता है, मौसम के पैटर्न में भारी उथल-पुथल आएगी और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी गहरा असर पड़ेगा। भारत सहित एशिया, अमेरिका, यूरोप और अफ्रीका के तटीय इलाके सीधे इसकी चपेट में आ सकते हैं। सुदामा/ईएमएस 17 दिसंबर 2025