रायपुर (ईएमएस)। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने कहा कि मनरेगा कानून से महात्मा गांधी का नाम हटाने का निर्णय भाजपा की गांधीजी के प्रति विद्वेष को दर्शाता है। यह भाजपा का राजनैतिक दिवालियापन है। गांधीजी श्रम की गरिमा, सामाजिक न्याय और सबसे गरीबों के प्रति राज्य की नैतिक जिम्मेदारी के प्रतीक रहे है। यह नाम परिवर्तन गांधीजी के मूल्यों के प्रति भाजपा-आरएसएस की दीर्घकालिक असहजता और अविश्वास को दर्शाता है तथा एक जन-केंद्रित कल्याणकारी कानून से राष्ट्रपिता के जुड़ाव को मिटाने का प्रयास है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने कहा कि कांग्रेस की यूपीए सरकार ने महात्मा गांधी नेशनल रोजगार गारंटी (मनरेगा) के रूप में रोजगार को कानूनी गारंटी दिया था लेकिन केंद्र की मोदी सरकार और भाजपा की साय सरकार का नाम बदलकर बंद करने की साजिश कर रही है। मोदी सरकार मनरेगा को बंद करना चाहती है। मोदी सरकार के 11 सालों में मनरेगा को पर्याप्त बजट नहीं दिया। हर साल मनरेगा के बजट में 30 से 35 प्रतिशत की कटौती की गयी है। पिछले 11 वर्षों में मनरेगा की मजदूरी में न्यूनतम वृद्धि है, जिसके कारण मजदूर वर्ग की आय स्थिर हो गयी है तथा महंगाई लगातार बढ़ती जा रही है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने कहा कि महात्मा गांधी नेशनल रोजगार गारंटी मनरेगा का नाम बदलने के लिऐ संसद में विधेयक लाना मोदी सरकार की राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के प्रति दुर्भावना को प्रदर्शित करता है। नाथूराम के महिमामंडन के लिए महात्मा गांधी के पुण्य स्मृति को मिटाने का षड़यंत्र कर रही है। भाजपा सोचती है कि वह एक योजना से गांधीजी का नाम बदलकर गांधी जी को जनमानस से दूर कर लेगी तो यह उनकी भूल है। गांधीजी भारत के जनमन में बसे है, भाजपा का कोई भी षड़यंत्र भारत के लिए गांधीजी के योगदान को मिटा नहीं सकता। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने कहा कि मनरेगा जन आंदोलनों से जन्मा कानून है, जो ‘‘हर हाथ को काम दो, काम का पूरा दाम दो’’ के वादे को अपने भीतर समेटे हुए है। इसने ग्रामीण भारत के लोगों को काम मांगने का कानूनी अधिकार दिया, पूरे ग्रामीण भारत में 100 दिनों के रोजगार की गारंटी सुनिश्चित की, विकेंद्रीकृत शासन को मजबूत किया, महिलाओं और भूमिहीनों को सशक्त बनाया तथा लागू किए जा सकने वाले अधिकारों के माध्यम से श्रम की गरिमा को कायम रखा। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने कहा कि यूपीए की मनमोहन सरकार के दौरान ग्रामीण परिवारों के वयस्क सदस्यों को हर साल 100 दिन का गारंटेड रोजगार प्रदान किया जाता था, इसमें सड़क निर्माण, तालाब और कुएं की खुदाई जल संरक्षण और सूखा राहत जैसे सार्वजनिक कार्य शामिल किए जाते थे, यदि आवेदक को 15 दिन के भीतर काम उपलब्ध नहीं कर पाए तो व्यक्ति मजदूरी के भुगतान का पात्र माना जाता था, लेकिन भाजपा की सरकार आने के बाद से हितग्राहियों को ना काम मिल रहा है, ना भुगतान। सत्यप्रकाश/चंद्राकर/18 दिसंबर 2025