मॉस्को,(ईएमएस)। मामला अंतरराष्ट्रीय राजनीति और मानवाधिकारों के लिहाज से बेहद गंभीर और संवेदनशील है। वह उन रिपोर्ट्स पर आधारित है जो रूस-यूक्रेन युद्ध के एक काले पक्ष को उजागर करती हैं। यह मामला इतना गंभीर है कि इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (आईसीसी) ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और उनकी बाल अधिकार आयुक्त मारिया लवोवा-बेलोवा के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया है। उन पर युद्ध अपराध और बच्चों के अवैध निर्वासन का आरोप है। संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) ने स्पष्ट रूप से कहा है कि बच्चों को उनकी पहचान से दूर करना अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन है। रिपोर्ट्स के अनुसार, रूस इन कैंपों को मानवीय सहायता और छुट्टियों के कैंप का नाम देता है, लेकिन हकीकत में वहां निम्नलिखित गतिविधियां होने के दावे किए गए हैं। बच्चों को यह सिखाना कि यूक्रेन कभी कोई स्वतंत्र देश था ही नहीं और वह रूस का हिस्सा है। कैंपों में यूक्रेनी भाषा बोलने पर सजा या रोक की खबरें आई हैं। जैसा कि आपने उल्लेख किया, छोटे बच्चों को हथियारों और सैन्य ड्रिल की ट्रेनिंग देना उन्हें भविष्य के रूसी सैनिकों के रूप में तैयार करने की कोशिश मानी जा रही है। वहीं रूस इन सभी आरोपों को सिरे से खारिज करता है। मॉस्को का तर्क है कि: वे बच्चों का अपहरण नहीं कर रहे, बल्कि उन्हें युद्धग्रस्त इलाकों से रेस्क्यू (बचाव) कर रहे हैं। रूस का कहना है कि वे अनाथ बच्चों को सुरक्षित आश्रय और परिवार (गोद लेना) प्रदान कर रहे हैं। उनकी नजर में यह रूसीकरण नहीं, बल्कि बच्चों का पुनर्वास है। इस पूरी बहस में यूक्रेन का दावा हैं कि लगभग 19,500+ बच्चों को जबरन ले जाया गया। लेकिन अब तक केवल 400-500 के करीब बच्चे ही किसी तरह (अक्सर कतर जैसे देशों की मध्यस्थता से) वापस अपने परिवारों तक पहुँच पाए हैं। क्या वाकई यह जेनोसाइड है? अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार, किसी समूह के बच्चों को जबरन दूसरे समूह में स्थानांतरित करना नरसंहार की श्रेणी में आ सकता है, क्योंकि यह उस समूह की भविष्य की पीढ़ी और सांस्कृतिक पहचान को खत्म करने की कोशिश है। आशीष/ईएमएस 19 दिसंबर 2025