राष्ट्रीय
20-Dec-2025
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:: विचलित करने वाली हकीकत : 7 दिनों तक पति की लाश के पास बैठी रही पत्नी, अंत में खुद भी हारी जिंदगी की जंग; भाइयों ने पल्ला झाड़ा तो महाकाल और सुल्तान ने दिया कंधा :: इंदौर (ईएमएस)। पत्थरों के इस शहर में इंसानियत की रूह आज भी सलामत है। इंदौर के सेटेलाइट जंक्शन कॉलोनी की एक बंद दीवार के पीछे जो मंजर दफन था, उसने रिश्तों की बुनियाद हिला दी, लेकिन उसी मलबे से सेवा की एक ऐसी कहानी निकली जिसने पूरे देश को मिसाल दी है। एक बेबस पत्नी अपने लकवाग्रस्त पति की लाश के साथ सात दिनों तक इस उम्मीद में बैठी रही कि शायद कोई अपना आएगा, लेकिन अंततः वह भी उसी कमरे में खामोश हो गई। जब खून के रिश्तों ने मुँह मोड़ा, तो शहर की दो संस्थाओं ने वारिस बनकर इस अभागे दंपत्ति का अंतिम सफर ससम्मान पूरा किया। :: मृत्यु के सन्नाटे में वफ़ा की अनकही दास्तां :: मृतक कन्हैयालाल बरनवाल (47), जो पीथमपुर की एक कंपनी से सेवानिवृत्त थे, पिछले 10 दिनों से दुनिया छोड़ चुके थे। रूह कंपा देने वाला तथ्य यह है कि उनकी पत्नी स्मृति तीन दिन पहले तक जीवित थीं। यानी सात लंबी और खौफनाक रातें उन्होंने अपने पति के पार्थिव शरीर के पास रहकर काटीं। न कोई चीख, न कोई शिकायत; बस एक खामोश वफ़ा जिसने पति की मौत के बाद खुद को भी मौत के हवाले कर दिया। घर से जब दुर्गंध उठी और पुलिस ने दरवाजा तोड़ा, तो बिस्तर पर सड़ा-गला शव और ज़मीन पर मृत पत्नी की देह रिश्तों के सबसे वीभत्स और मार्मिक अंत की गवाही दे रहे थे। :: जब खून सफेद हो गया और पसीने ने रिश्ता निभाया :: पुलिस ने जब देवरिया (उत्तर प्रदेश) में मृतक के चार सगे भाइयों को फोन किया, तो जवाब में संवेदना नहीं, बल्कि निष्ठुरता मिली। भाइयों ने शव लेने और इंदौर आने से साफ इनकार कर दिया। जिस भाई के साथ बचपन खेला, उसके अंतिम संस्कार के लिए चार कदम चलना भी उन्हें भारी लगा। ऐसे में महाकाल सेवा संस्थान के अशोक गोयल और सुल्तान-ए-इंदौर के करीम पठान देवदूत बनकर सामने आए। जूनी इंदौर मोक्ष धाम पर जब शुक्रवार को चिता सजी, तो मंजर ऐतिहासिक था। वैदिक मंत्रों के बीच हिंदू और मुस्लिम भाइयों ने मिलकर कन्हैयालाल और स्मृति को मुखाग्नि दी। :: 11,500 लावारिसों के वारिस : इंदौर का गौरव :: यह केवल एक दिन की सेवा नहीं, बल्कि 1978 से चला आ रहा एक महायज्ञ है। अशोक गोयल, जयू जोशी, करीम पठान और उनकी टीम अब तक 11,500 से अधिक लावारिस शवों का विधि-विधान से संस्कार कर चुकी है। उन्होंने न केवल अंतिम विदाई दी, बल्कि 900 से अधिक भटकते मानसिक रोगियों को उनके घर पहुँचाकर घरों के बुझे चिराग रोशन किए हैं और हजारों बीमारों का उपचार कराया है। :: एक चुभता सवाल :: यह घटना हमें झकझोरती है कि क्या हम इतने आधुनिक हो गए हैं कि अपनों की लाशें भी हमें बोझ लगने लगी हैं? इंदौर के इन समाजसेवियों ने साबित कर दिया कि जब तक दुनिया में इंसानियत की लौ जल रही है, तब तक कोई भी इंसान लावारिस नहीं हो सकता। प्रकाश/20 दिसम्बर 2025