फ्लुइट’ समुद्री मालवाहक जहाज तैयार किया जो कहीं ज्यादा माल ढोने में सक्षम था नई दिल्ली,(ईएमएस)। समुद्री व्यापार किसी भी देश की आर्थिक और रणनीतिक ताकत का बड़ा आधार होता है। हाल के महीनों में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जिस तरह भारत के समुद्री हितों, सुरक्षा और खुले जलमार्गों पर जोर दिया है, उसने इतिहास के उस दौर की याद दिला दी है जब नीदरलैंड दुनिया का सबसे ताकतवर समुद्री व्यापारिक राष्ट्र हुआ करता था। 17वीं शताब्दी में नीदरलैंड ने जिस तरह समुद्र पर अपना वर्चस्व कायम किया, वह आज भी वैश्विक व्यापार इतिहास का स्वर्ण अध्याय माना जाता है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 17वीं शताब्दी के मध्य तक नीदरलैंड के पास दुनिया का सबसे बड़ा समुद्री व्यापारी बेड़ा था। उसने पुर्तगाल और स्पेन जैसी उस दौर की महाशक्तियों को पीछे छोड़ दिया था। इसका सबसे बड़ा कारण डचों की व्यावसायिक सोच और तकनीकी नवाचार थे। उन्होंने ‘फ्लुइट’ नाम का विशेष मालवाहक जहाज तैयार किया, जिसे युद्ध नहीं बल्कि व्यापार के लिए डिजाइन किया गया था। यह जहाज सस्ता, कम कर्मचारियों वाला और अन्य जहाजों की तुलना में कहीं ज्यादा माल ढोने में सक्षम था। इससे परिवहन लागत घटी और मुनाफा कई गुना बढ़ गया। रिपोर्ट के मुताबिक डचों ने जहाज निर्माण को भी औद्योगिक रूप दिया। पवन ऊर्जा से चलने वाली आरा मशीन के आविष्कार ने जहाजों के निर्माण की रफ्तार बढ़ा दी। नतीजा यह हुआ कि कुछ ही दशकों में नीदरलैंड के पास करीब 4000 व्यापारिक जहाजों का विशाल बेड़ा तैयार हो गया, जो उस समय इंग्लैंड और फ्रांस के संयुक्त बेड़े से भी बड़ा था। यही नहीं, डचों ने समुद्री व्यापार को वित्तीय मजबूती देने के लिए दुनिया की पहली आधुनिक कंपनी और स्टॉक एक्सचेंज की नींव रखी। इसी ताकत के बल पर डचों ने मसालों, चीनी और अन्य बहुमूल्य व्यापार मार्गों पर एकाधिकार कायम किया। नीदरलैंड की भौगोलिक स्थिति भी उसके पक्ष में थी। राइन, म्यूज़ और शेल्ड्ट जैसी नदियों के डेल्टा और उत्तरी सागर के प्रमुख व्यापार मार्गों पर स्थित होने के कारण वह ‘यूरोप का प्रवेश द्वार’ बन गया। बाल्टिक अनाज व्यापार पर उसका नियंत्रण इतना मजबूत था कि उसे ‘मदर ट्रेड’ कहा जाने लगा, जिसने आगे के समुद्री विस्तार के लिए पूंजी और संसाधन उपलब्ध कराए। हालांकि यह स्वर्ण युग हमेशा के लिए नहीं रहा। इंग्लैंड और फ्रांस के साथ लगातार युद्धों और बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने 17वीं शताब्दी के आखिर तक डच समुद्री वर्चस्व को चुनौती दे दी। रिपोर्ट के मुताबिक 18वीं शताब्दी में ब्रिटिश साम्राज्य ने वैश्विक समुद्री शक्ति के रूप में शीर्ष स्थान हासिल कर लिया। इसके बावजूद नीदरलैंड आज भी समुद्री व्यापार में बेहद मजबूत है। रॉटरडैम बंदरगाह यूरोप का सबसे बड़ा और दुनिया के सबसे व्यस्त बंदरगाहों में गिना जाता है। आज जब भारत सुरक्षित समुद्री मार्गों, मानवीय सहायता और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए महासागर जैसे विजन की बात करता है, तो नीदरलैंड का इतिहास यह दिखाता है कि समुद्र पर मजबूती, व्यापारिक सोच और अंतरराष्ट्रीय सहयोग किसी भी देश को वैश्विक शक्ति बना सकते हैं। नीदरलैंड भले ही अब अकेला बेताज बादशाह न हो, लेकिन उसका समुद्री मॉडल आज भी दुनिया के लिए मिसाल है। सिराज/ईएमएस 21दिसंबर25 ----------------------------------