अंतर्राष्ट्रीय
22-Dec-2025
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-संदिग्ध पासपोर्ट पर मुहर नहीं, रॉ ने खोल दी पूरे आईएम के नेटवर्क की पोल ढाका,(ईएमएस)। खामोश रात, ढाका एयरपोर्ट का शोर और एक संदिग्ध पासपोर्ट। यही वो पल था जिसने भारत के सबसे खतरनाक आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन के अंत की पटकथा लिख दी, जहां दुश्मन की एक छोटी सी गलती भारतीय जासूसों के लिए हथियार बन गई। जब पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने अपने प्यादे जिया-उर-रहमान उर्फ वकास को नेपाल के रास्ते पाकिस्तान भेजने की साजिश रची तो उन्हें अंदाजा भी नहीं था कि भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ की नजरें उन पर हैं। बिना एंट्री स्टैंप वाले पासपोर्ट ने एक ऐसी हलचल पैदा की जिसने भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को वह मौका दे दिया जिसका उन्हें इंतजार था। इस जासूसी के खेल में भारतीय जासूसों ने न केवल आतंकियों को दबोचा बल्कि उनकी ही जाल में उन्हें उलझाकर पूरे नेटवर्क को नेस्तनाबूद कर दिया। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल 2014 की वह घटना भारतीय खुफिया इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। ढाका एयरपोर्ट पर जब वकास के पासपोर्ट पर सवाल उठे तो वहां मौजूद रॉ के एक अधिकारी ने उसकी तस्वीर खींच ली। यह तस्वीर दिल्ली मुख्यालय पहुंची और वकास की पहचान उजागर हो गई। सुरक्षा एजेंसियों ने बिना शोर मचाए एक अत्यंत गुप्त ऑपरेशन चलाया। वकास को बांग्लादेश से चुपचाप भारत लाया गया। हिरासत में आने के बाद वकास को पता भी नहीं चला कि वह अब भारतीय एजेंसियों के हाथों की कठपुतली बन चुका है। एजेंसियों ने उसे गिरफ्तार दिखाने के बजाय चारे के रूप में इस्तेमाल किया। वकास को निर्देश दिया गया कि वह अपने हैंडलर तहसीन अख्तर उर्फ मोनू से ऑनलाइन चैटिंग जारी रखे ताकि किसी को शक न हो। जासूसी का असली खेल तब शुरू हुआ जब वकास ने तहसीन को नेपाल में आमने-सामने मिलने के लिए राजी किया। तहसीन को पकड़ने के लिए नेपाल के उस मीटिंग स्पॉट को चारों तरफ से घेर लिया गया। जैसे ही तहसीन वहां पहुंचा, भारतीय जासूसों ने स्थानीय अधिकारियों के साथ मिलकर उसे दबोच लिया। इसके बाद उसे चुपचाप भारत की सीमा में लाया गया और आधिकारिक तौर पर गिरफ्तार कर लिया। यह ऑपरेशन जासूसी के ‘टेक्स्टबुक’ उदाहरण के रूप में जाना जाता है। इन ऑपरेशंस की सफलता के पीछे तीन मुख्य कारण थे- धैर्य, समन्वय और तकनीकी महारत। भारतीय एजेंसियों ने जल्दबाजी में गिरफ्तारी करने के बजाय नेटवर्क की गहराई तक जाने का विकल्प चुना। आईएसआई की एक छोटी सी चूक को एक बड़े इंटेलिजेंस ब्रेकथ्रू में बदलना भारतीय जासूसों की बुद्धि को दर्शाता है। आज इंडियन मुजाहिदीन का नामोनिशान मिट चुका है, तो इसका श्रेय उन गुमनाम नायकों को जाता है जिन्होंने सरहदों के पार जाकर दुश्मन की हर चाल को मात दी। इन जासूसी कारनामों ने साबित कर दिया कि जब देश की सुरक्षा की बात आती है, तो भारतीय एजेंसियां पाताल से भी गुनहगारों को खींच लाने का दम रखती हैं। सिराज/ईएमएस 22 दिसंबर 2025