राष्ट्रीय
23-Dec-2025
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चेन्नई,(ईएमएस)। मद्रास हाईकोर्ट का यह फैसला भारत में एफसीआरए (विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम) और भारतीय सांस्कृतिक शिक्षा के बीच संबंधों को लेकर एक ऐतिहासिक मिसाल पेश करता है। चन्नई की अदालत ने स्पष्ट किया है कि भगवद् गीता, वेदांत और योग जैसी शिक्षाओं को केवल धार्मिक दायरे में सीमित करना संकीर्ण दृष्टिकोण है। जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने स्पष्ट किया कि भारतीय विरासत के इन स्तंभों को किसी विशिष्ट धर्म की बाउंड्री में नहीं बांधा जा सकता। इस धार्मिक ग्रंथ के बजाय नैतिक विज्ञान माना गया है। यह भारतीय सभ्यता का अभिन्न अंग है। योग को सार्वभौमिक कल्याण का अभ्यास और वेदांत को एक दार्शनिक प्रणाली माना गया है। इन विषयों की शिक्षा देने वाला ट्रस्ट अनिवार्य रूप से धार्मिक संस्था नहीं बन जाता। गृह मंत्रालय के फैसले में खामियां अदालत ने मंत्रालय की प्रक्रिया पर दो प्रमुख आपत्तियां जाहिर की है। गृह मंत्रालय ने कहा कि ट्रस्ट धार्मिक प्रतीत होता है। कोर्ट ने कहा कि एफसीआरए की धारा 11 के तहत निष्कर्ष स्पष्ट और निश्चित होना चाहिए, न कि अनुमानों पर आधारित। मंत्रालय ने पंजीकरण खारिज करने के अंतिम आदेश में फंड ट्रांसफर का नया आरोप जोड़ा, जिस पर ट्रस्ट को सफाई देने का मौका नहीं दिया गया। यह कानूनन गलत है। रिपोर्ट के अनुसार, अर्शा विद्या परंपरा ट्रस्ट बनाम भारत संघ और अन्य मामले में मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने गृह मंत्रालय को वेदांत शिक्षाओं पर केंद्रित धर्मार्थ ट्रस्ट द्वारा प्रस्तुत आवेदन पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया। 2017 में स्थापित अर्शा विद्या परंपरा ट्रस्ट, वेदांत, संस्कृत और योग की शिक्षा देता है और प्राचीन पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए भी कार्य करता है। ट्रस्ट को प्रवासी भारतीय न्यासी से मिले थे 9 लाख रुपये गृह मंत्रालय ने ट्रस्ट को एक प्रवासी भारतीय न्यासी से प्राप्त 9 लाख के योगदान का हवाला दिया और कहा कि यह एफसीआरए नियमों का उल्लंघन है, क्योंकि इसके लिए पूर्व स्वीकृति प्राप्त नहीं की गई थी। ट्रस्ट ने अपनी गलती स्वीकार की और अधिनियम की धारा 41 के तहत अपराध को समझौते के रूप में निपटाने का विकल्प चुना, इसके तहत कुछ उल्लंघनों को शुल्क का भुगतान करके खत्म किया जा सकता है। अदालत ने टिप्पणी की कि एक बार अपराध का समझौता होने के बाद, इस बाद में पंजीकरण से इंकार करने का आधार नहीं माना जा सकता। अदालत ने कहा कि मंत्रालय ने स्वयं अगस्त 2025 में समझौता प्रक्रिया पूरी कर ली थी। मंत्रालय को तीन महीने में प्रक्रिया पूरी करने के निर्देश न्यायालय ने माना कि ट्रस्ट को जवाब देने का मौका दिए बिना अंतिम चरण में एक नया आरोप लगाना प्राकृतिक न्याय के मूलभूत सिद्धांतों का उल्लंघन है। न्यायालय ने गृह मंत्रालय के एफसीआरए विंग को ट्रस्ट के आवेदन पर पुनर्विचार करने और यदि उनके पास किसी निधि हस्तांतरण का ठोस सबूत है, तो एक नया और विस्तृत नोटिस जारी करने का निर्देश दिया। मंत्रालय को आदेश प्राप्त होने के तीन महीने के भीतर इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए कहा गया है। आशीष दुबे / 23 दिसंबर 2025