नई दिल्ली,(ईएमएस)। अंतरिक्ष की रेस में भारत अब केवल भागीदार नहीं, बल्कि लीडर बनकर उभरा है। बुधवार को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने श्रीहरिकोटा से एक ऐसा कीर्तिमान रचा, जिसने वैश्विक अंतरिक्ष बाजार में भारत की धाक को और मजबूत कर दिया है। जहाँ जापान, ब्राजील और दक्षिण कोरिया जैसे विकसित देश हाल के दिनों में अपने मिशन में विफल रहे, वहीं इसरो के बाहुबली एलवीएम 3 ने एक बार फिर 100 प्रतिशत सफलता का परचम लहराया। इसरो ने अमेरिकी कंपनी के ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 सैटेलाइट को उसकी सटीक कक्षा में स्थापित किया। यह मिशन इसरो के व्यावसायिक इतिहास में एक मील का पत्थर है। इसरो की इस कामयाबी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसरो की पूरी टीम को बधाई देकर यह भारत के लिए गौरव का क्षण है। इसरो की यह सफलता अंतरिक्ष क्षेत्र में हमारी बड़ी छलांग को दर्शाती है। इसरो की यह कामयाबी इसलिए बड़ी है क्योंकि पिछले कुछ समय में दुनिया के कई दिग्गज देशों के अंतरिक्ष मिशन धराशायी हुए हैं। भारत ने अपनी विश्वसनीयता से यह साबित किया है कि कम लागत और उच्च तकनीक का सही तालमेल क्या होता है। मार्च 2023 में जापान को तब गहरा सदमा लगा जब उसका एच3 रॉकेट दूसरे चरण में इंजन फेल होने के कारण नष्ट हो गया। इस हादसे में जापान का कीमती एएलओएस-3 उपग्रह भी बर्बाद हो गया था। हाल ही में दक्षिण कोरिया का कमर्शियल रॉकेट हनबिट-नैनो ब्राजील से लॉन्च होने के मात्र 30 सेकंड बाद ही क्रैश हो गया। इस मिशन में 5 सैटेलाइट्स थे, जो समुद्र/सुरक्षित क्षेत्र में जा गिरे। अंतरिक्ष इतिहास का सबसे दुखद हादसा ब्राजील के अल्कांतारा स्पेस सेंटर में हुआ था, जब बीएलएस-1 वी03 रॉकेट लॉन्च पैड पर ही फट गया था। इस हादसे ने 21 वैज्ञानिकों की जान ले ली थी, जिससे ब्राजील का स्पेस प्रोग्राम सालों पीछे चला गया। वहीं इसरो का एलवीएम 3 रॉकेट की यह लगातार छठी सफल उड़ान है। यह वही रॉकेट है जिसने: चंद्रयान-2 और चंद्रयान-3 जैसे ऐतिहासिक मिशन पूरे किए। अब 6100 किलो का भारी-भरकम वजन उठाकर अपनी ताकत का लोहा मनवाया। ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 सैटेलाइट के सफल प्रक्षेपण से पूरी दुनिया में मोबाइल नेटवर्क कनेक्टिविटी में क्रांतिकारी बदलाव आएंगे। अब दुर्गम इलाकों में भी सीधा सैटेलाइट-टू-फोन कनेक्शन संभव हो सकेगा। अंतरिक्ष विज्ञान में रिस्क हमेशा बना रहता है, लेकिन इसरो ने अपनी तकनीक और कठोर परीक्षणों से विफलता की दर को लगभग शून्य कर दिया है। अन्य देश अरबों डॉलर खर्च करके भी विफल हो रहे हैं, इसरो बहुत ही कम बजट में जटिल मिशन (जैसे चंद्रयान-3 और अब एलवीएम 3 की सफल उड़ानें) पूरे कर रहा है। जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों के मिशनों में तकनीकी खामियां अक्सर विदेशी इंजन या पुराने डिजाइनों पर निर्भरता के कारण भी आती हैं, जबकि भारत ने अपने क्रायोजेनिक इंजन और रॉकेट चरणों को स्वदेशी रूप से विकसित किया है। आशीष दुबे / 25 दिसंबर 2025