गुना (ईएमएस)| देश की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखला अरावली को बचाने और प्राकृतिक संसाधनों के निजीकरण के विरोध में गुरुवार को गुना के पर्यावरण प्रेमियों और गणमान्य नागरिकों ने हुंकार भरी। स्थानीय शास्त्री पार्क के सामने एकजुट हुए शहर के बुद्धिजीवियों ने केंद्र और राज्य सरकार की पर्यावरण विरोधी नीतियों के खिलाफ जमकर विरोध प्रदर्शन किया। इस दौरान अरावली बचाओ के नारों के साथ एक विशाल मानव श्रृंखला बनाई गई, जिसके माध्यम से यह संदेश दिया गया कि जल, जंगल और जमीन पर पहला हक प्रकृति और जनता का है, न कि चंद पूंजीपति घरानों का। प्रदर्शनकारियों ने केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों पर निशाना साधते हुए कहा कि विकास के नाम पर प्राकृतिक संपदा को निजी मुनाफे के लिए बलि चढ़ाया जा रहा है। वक्ताओं ने कहा कि भारत के चार राज्यों (हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और दिल्ली) में लगभग 692 किलोमीटर तक फैली अरावली पर्वत श्रृंखला मरुस्थलीकरण को रोकने वाली एकमात्र दीवार है। सर्वोच्च न्यायालय की एक पीठ द्वारा स्वीकृत अरावली की नई परिभाषा इस प्राचीन पर्वतमाला के लिए विनाशकारी साबित हो सकती है। इससे न केवल वन्यजीवों के आवास नष्ट होंगे, बल्कि जल पुनर्भरण के स्रोत भी खत्म हो जाएंगे, जिससे आने वाले समय में देश के एक बड़े हिस्से में पारिस्थितिकी संकट खड़ा हो जाएगा। प्रदर्शन में मध्य प्रदेश की स्थिति पर भी चिंता व्यक्त की गई। नागरिकों ने आरोप लगाया कि केंद्र की तर्ज पर प्रदेश सरकार भी सडक़ चौड़ीकरण और उत्खनन के नाम पर वनों की अंधाधुंध कटाई कर रही है। सिंगरौली और बक्सवाह जैसे स्थानों पर जनता के कड़ेे विरोध के बावजूद जंगलों का सफाया किया जाना चिंताजनक है। प्रदर्शनकारियों ने मांग रखी कि सरकार पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझे और न्यायालय अपने निर्णय पर पुनर्विचार करे ताकि इस अमूल्य प्राकृतिक धरोहर को बचाया जा सके। इस महत्वपूर्ण आयोजन में इंजीनियर एस.के. राजौरिया, राकेश मिश्रा, प्रोफेसर श्याममोहन मिश्रा, नरेंद्र भदौरिया, राकेश टरका, लोकेश शर्मा, सुरेंद्र कुमार, मनीष श्रीवास्तव, एडवोकेट पुष्पराग, विकास बंसल, रवि शर्मा बंजारा, गुलाब राज, प्रदीप आरबी, मनोहरलाल शर्मा, राधेश्याम चंदेल, एडवोकेट सीमा राय और शुभम राव सहित बड़ी संख्या में आमजन उपस्थित रहे। सभी ने सामूहिक संकल्प लिया कि प्रकृति के विनाश के खिलाफ उनका संघर्ष निरंतर जारी रहेगा। - सीताराम नाटानी