काठमांडु,(ईएमएस)। बौद्धनाथ स्तूप की शांत आंखें कभी तिब्बती शरणार्थियों के लिए सुरक्षा और उम्मीद का प्रतीक हुआ करती थीं, लेकिन आज काठमांडू की गलियों और छतों पर लगी हजारों चीनी निगरानी कैमरों की आंखें कहीं अधिक निर्दयी निगरानी कर रही हैं। चीन की उन्नत सर्विलांस तकनीक और नेपाल सरकार के सहयोग से देश धीरे-धीरे एक ऐसी ‘डिजिटल जेल’ में बदलता जा रहा है, जहां सबसे ज्यादा असर तिब्बती समुदाय पर पड़ा है। मीडिया रिपोर्ट की मानें तो वर्तमान में नेपाल उन कम से कम 150 देशों में शामिल हो चुका है, जहां चीनी कंपनियां निगरानी तकनीक निर्यात कर रही हैं। ‘सेफ सिटी’ परियोजनाओं के नाम पर लगाए गए ये कैमरे केवल अपराध रोकने तक सीमित नहीं हैं, बल्कि चेहरे पहचानने, भीड़ में किसी एक व्यक्ति को ट्रैक करने और गतिविधियों के पैटर्न सहेजने में सक्षम हैं। काठमांडू में अधिकांश पुलिस कैमरों की फीड एक केंद्रीय नियंत्रण कक्ष में जाती है, जिसके बाहर लगे बोर्ड पर चीनी भाषा में चीन के सार्वजनिक सुरक्षा मंत्रालय का उल्लेख है। इस निगरानी तंत्र की विडंबना यह है कि इसकी नींव में अमेरिकी तकनीक की बड़ी भूमिका रही है। दशकों तक सिलिकॉन वैली की कंपनियों ने चीनी बाजार में प्रवेश के बदले तकनीक साझा की। आज वही तकनीक चीनी कंपनियों—हिकविजन, दाहुआ, यूनिव्यू और हुआवेई—के जरिए पूरी दुनिया में निगरानी के औजार के रूप में फैल रही है। अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद अमेजन वेब सर्विसेज जैसी कंपनियों द्वारा क्लाउड सेवाएं दिए जाने पर भी सवाल उठते रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट में बताया जा रहा है, कि नेपाल में तिब्बती शरणार्थियों की स्थिति सबसे अधिक प्रभावित हुई है। एक समय हर साल हजारों तिब्बती नेपाल में शरण लेते थे, लेकिन अब यह संख्या एकल अंक तक सिमट गई है। सख्त सीमा नियंत्रण, चीन-नेपाल के बढ़ते रणनीतिक संबंध और अभूतपूर्व निगरानी इसके प्रमुख कारण बताए जा रहे हैं। इस संबंध में तिब्बती समुदाय का कहना है कि 10 मार्च जैसे संवेदनशील दिनों से पहले संभावित प्रदर्शनकारियों को ‘प्रीडिक्टिव पुलिसिंग’ के तहत पहले ही हिरासत में ले लिया जाता है। नेपाल-चीन की 1,389 किलोमीटर लंबी सीमा पर सेंसर, ड्रोन और ऑब्जर्वेशन डोम का जाल बिछा है, जिसे स्थानीय लोग ‘ग्रेट वॉल ऑफ स्टील’ कहते हैं। मुस्तांग और लो मन्थांग जैसे क्षेत्रों में चीनी निगरानी ढांचे की मौजूदगी ने पारंपरिक तिब्बती जीवन पर गहरा असर डाला है। दलाई लामा की तस्वीरें हटाने का दबाव, सीमापार आवाजाही पर रोक और डिजिटल निगरानी ने भय का माहौल पैदा कर दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि कम संसाधनों वाले देशों के लिए चीनी तकनीक ‘किफायती सुरक्षा मॉडल’ बनकर आई, लेकिन इसकी कीमत नागरिक स्वतंत्रताओं और मानवाधिकारों से चुकानी पड़ रही है। आज नेपाल इसका जीवंत उदाहरण बन चुका है, जहां तिब्बती समुदाय के लिए सार्वजनिक रूप से अपनी पहचान जीना भी एक जोखिम बन गया है। हिदायत/ईएमएस 26दिसंबर25