पणजी(ईएमएस)। मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने कानूनी प्रक्रिया और विवादों के निपटारे को लेकर एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण साझा किया है। उन्होंने कहा कि मुकदमेबाजी अक्सर टूटे हुए रिश्तों का पोस्टमॉर्टम करने जैसी होती है, जबकि मध्यस्थता का मुख्य उद्देश्य उन रिश्तों को समय रहते बचाना है। गोवा में आयोजित एक राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि मध्यस्थता कानून की कमजोरी नहीं, बल्कि उसका सबसे उन्नत और मानवीय रूप है। मुख्य न्यायाधीश ने आधुनिक दौर की चुनौतियों पर चर्चा करते हुए कहा कि आज के समय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और साइबर अपराध एक बड़ी चुनौती बनकर उभरे हैं। इनसे प्रभावी ढंग से निपटने के लिए देशभर के वकीलों को विशेष प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है। उन्होंने सुझाव दिया कि एक राष्ट्रीय स्तर की विधि अकादमी बनाई जानी चाहिए, ताकि वकील नई तकनीक और बदलते कानूनों के साथ तालमेल बिठा सकें और खुद को भविष्य के लिए तैयार कर सकें। मध्यस्थता की बारीकियों पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि एक कुशल मध्यस्थ वही है, जो केवल कानून और भाषा ही नहीं, बल्कि पक्षकारों की स्थानीय बोली, संस्कृति और उनकी भावनाओं को गहराई से समझता हो। उन्होंने मल्टी-डोर कोर्टहाउस की अवधारणा को अपनाने पर जोर दिया, जहाँ एक ही छत के नीचे मध्यस्थता, ट्रिब्यूनल और मुकदमेबाजी जैसे विकल्प उपलब्ध हों। इससे आम आदमी को अपनी समस्या के अनुसार सही विकल्प चुनने की आजादी मिलेगी। वर्तमान स्थिति पर चिंता जताते हुए मुख्य न्यायाधीश ने बताया कि देश में ट्रेंड मेडियेटर्स की भारी कमी है। वर्तमान में देश में लगभग 39 हजार प्रशिक्षित मध्यस्थ हैं, जबकि प्रभावी व्यवस्था के लिए इनकी संख्या 2.5 लाख से अधिक होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अदालतों को अब केवल मुकदमे चलाने की जगह नहीं, बल्कि विवादों के समाधान का केंद्र बनना चाहिए। उनका मानना है कि जब कोई व्यक्ति न्याय की उम्मीद में अदालत पहुंचे, तो उसके पास सबसे पहले मध्यस्थता और पंचाट का विकल्प होना चाहिए, ताकि अदालतों पर लंबित मामलों का बोझ कम हो सके। वीरेंद्र/ईएमएस/27दिसंबर2025