बांग्लादेश में प्रधानमंत्री शेख हसीना के देश छोड़ने से लेकर आज तक हिंसा का जो दौर चला है वह किसी भी शांतिप्रिय पड़ोसी देश को चिंता में डाल सकता है। हद यह है कि मौजूदा हालात राजनीतिक तख्तापलट से निकलकर अब अल्पसंख्यकों के खिलाफ खूनी हिंसा तक आ गए हैं। ऐसे बिगड़े हालात में भी यदि बांग्लादेश की राजनीति में एक नई हलचल दिखाई दे रही है, तो यह वाकई काबिले जिक्र बात है। दरअसल 17 वर्षों के लंबे निर्वासन के बाद लंदन से लौटे बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के ऐक्टिंग चेयरमैन तारिक रहमान का ढाका में हुआ भव्य स्वागत केवल एक राजनीतिक कार्यक्रम नहीं था, बल्कि यह आने वाले समय की एक धुंधली तस्वीर है। लाखों समर्थकों की मौजूदगी में खालिदा जिया के बेटे रहमान ने अपने भाषण से साफ संदेश दे दिया है कि जो पहले हुआ अब वह नहीं होगा और इसी के साथ ही बांग्लादेश की राजनीति एक नए अध्याय में प्रवेश करती नजर आई है। तारिक रहमान का स्वदेश लौटना इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वे पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के बेटे हैं और बीएनपी के भीतर उन्हें भविष्य के प्रधानमंत्री के रूप में देखा जा रहा है। उनके स्वागत में उमड़ी लाखों की भीड़ ने यह भी साबित कर दिया कि लंबे समय तक देश से बाहर रहने के बावजूद उनकी लोकप्रियता और राजनीतिक स्वीकार्यता खत्म नहीं हुई है। बहरहाल यहां सवाल यह है कि रहमान जिस “प्लान” की बात कर रहे हैं, वह क्या है और क्या वह बांग्लादेश की मौजूदा चुनौतियों का समाधान कर सकता है? अपने पहले बड़े सार्वजनिक संबोधन में तारिक रहमान ने खुद की तुलना सीधे तौर पर किसी व्यक्ति से नहीं की, लेकिन मार्टिन लूथर किंग के ऐतिहासिक “आई हैव ए ड्रीम” भाषण का संदर्भ देकर उन्होंने अपने इरादों को जाहिर जरुर कर दिया है। उन्होंने कहा कि उनके पास केवल एक सपना नहीं, बल्कि बांग्लादेश के लिए एक ठोस योजना है। यह योजना लोकतंत्र की रक्षा, नागरिक अधिकारों की सुरक्षा और समावेशी विकास पर आधारित है। यह बयान ऐसे समय में आया है जब बांग्लादेश में लोकतांत्रिक संस्थाओं की मजबूती, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और राजनीतिक हिंसा जैसे मुद्दे लगातार चर्चा में हैं। दुनियां के तमाम शीर्ष देशों की नजरें इस समय बांग्लादेश पर इसलिए भी टिकी हुई हैं, क्योंकि चीन और पाकिस्तान यहां पर लगातार घुसपैठ करने की फिराक में चालें चले जा रहे हैं। भारत से बढ़ती दूरियां और बिगड़ते हालात के चलते बांग्लादेश की जनता को अब रहमान के तौर पर नए दौर के आगाज का आभास हो रहा है। रहमान भी इसे बखूबी समझ रहे हैं, इसलिए उनका प्लान भाषणों में व्यापक और भावनात्मक दिखाई देता है। उनके प्लान के केंद्र में तीन प्रमुख बातें उभरकर आती हैं। पहली, लोकतांत्रिक अधिकारों की बहाली। उन्होंने साफ कहा कि बांग्लादेश के लोग आज अपने बोलने के अधिकार और राजनीतिक स्वतंत्रता की सुरक्षा चाहते हैं। यह बयान मौजूदा राजनीतिक माहौल में सत्ता और विपक्ष के बीच बढ़ती खाई की ओर इशारा करता है। दूसरी, सामाजिक सौहार्द और शांति। अपने 15 मिनट के भाषण में तीन बार शांति का जिक्र करना यूं ही नहीं था। बांग्लादेश ने हाल के वर्षों में राजनीतिक हिंसा, टकराव और असहिष्णुता के कई दौर देखे हैं। रहमान का यह कहना कि यह देश यहां रहने वाले सभी लोगों का है और किसी के साथ राजनीतिक विचारधारा या मजहब के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए, एक सकारात्मक संकेत माना जा सकता है। हालांकि, राजनीति में ऐसे वादे पहले भी किए गए हैं, लेकिन जमीन पर उन्हें लागू करना हमेशा चुनौतीपूर्ण रहा है। तीसरी और सबसे संवेदनशील बात है, राजनीतिक संघर्ष में शहादत और न्याय की मांग। शरीफ उस्मान हादी की हत्या का जिक्र कर रहमान ने साफ संदेश दिया कि वे लोकतंत्र के नाम पर हुई हिंसा को भुलाने के पक्ष में नहीं हैं। खून का कर्ज जैसे शब्द उनके भाषण को भावनात्मक ऊंचाई देते दिखे हैं, लेकिन साथ ही यह सवाल भी खड़ा करते हैं कि क्या यह भाषा आगे चलकर टकराव को और तेज करेगी या न्यायपूर्ण राजनीति का रास्ता खोलेगी। स्वदेश वापसी के बाद रहमान का दावा है कि 1971 में आजादी और 2024 में संप्रभुता की रक्षा के बाद अब बांग्लादेश एक तीसरे चरण में प्रवेश कर रहा है, जहां नागरिक अधिकार और लोकतांत्रिक मूल्य सबसे बड़ी प्राथमिकता होंगे। यह कथन आकर्षक है, लेकिन इसके लिए केवल भीड़ और नारों से आगे बढ़कर ठोस नीतियों और भरोसेमंद नेतृत्व की जरूरत होगी। असल चुनौती यही है कि रहमान का प्लान कितना स्पष्ट और व्यावहारिक है। फिलहाल यह योजना एक व्यापक दृष्टि और भावनात्मक अपील के रूप में सामने आई है। आम जनता को जोड़ने की उनकी कोशिश सफल होती दिख रही है, लेकिन बांग्लादेश जैसे जटिल राजनीतिक परिदृश्य में केवल भावनाओं के सहारे स्थायी बदलाव संभव नहीं होता। यह सच है कि तारिक रहमान की वापसी ने बांग्लादेशी राजनीति को नई ऊर्जा प्रदान कर दी है। उनके शब्दों में उम्मीद है, आलोचना है और संघर्ष का संकल्प भी। आने वाले महीनों में यह साफ होगा कि उनका प्लान केवल एक चुनावी नारा बनकर रह जाएगा या वास्तव में बांग्लादेश को लोकतांत्रिक मजबूती, शांति और विकास की नई दिशा प्रदान करने वाला साबित होगा। यही परीक्षा उनकी राजनीतिक परिदृष्य में असली कसौटी साबित होगी। ईएमएस / 27 दिसम्बर 25