27-Dec-2025
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27 दिसंबर 1822 को जन्मे और 28 सितंबर 1895 को दुनिया को कहा अलविदा नई दिल्ली,(ईएमएस)। लुई पाश्चर जिन्होंने इंसान की जान बचाने के लिए विज्ञान की दिशा ही बदल दी थी। फ्रांस के इस महान रसायनज्ञ और सूक्ष्मजीव विज्ञानी ने न सिर्फ जर्म थ्योरी की स्थापना की, बल्कि रेबीज और एंथ्रेक्स जैसी जानलेवा बीमारियों के लिए वैक्सीन भी तैयार की। लुई का जन्म 27 दिसंबर 1822 को हुआ था और उन्होंने 28 सितंबर 1895 को दुनिया को अलविदा कह दिया। लुई पाश्चर का जन्म फ्रांस के डोल नामक शहर में हुआ था। उनके पिता चमड़े का काम करते थे और उन्होंने ही लुई को मेहनत, ईमानदारी और देश प्रेम का पाठ पढ़ाया। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक बचपन में लुई पाश्चर पढ़ाई में कोई बहुत तेज नहीं थे, लेकिन उनमें एक खास गुण था वे बहुत मेहनती थे। वे किसी भी चीज को सिर्फ पढ़ते नहीं थे, बल्कि उसे गहराई से समझने की कोशिश करते थे। इसी जिज्ञासा ने उन्हें आगे चलकर महान वैज्ञानिक बना दिया। लुई पाश्चर ने पेरिस के एकोल नॉर्माल सुपीरियर से विज्ञान में अपनी शिक्षा पूरी की और डॉक्टरेट हासिल की। शुरुआत में उनका काम क्रिस्टलोग्राफी पर था, लेकिन जल्द ही उनकी रुचि फर्मेंटेशन और सूक्ष्मजीवों की ओर मुड़ गई। उन्होंने विज्ञान की दुनिया में एक बड़ा धमाका तब किया जब उन्होंने स्वान-नेक फ्लास्क प्रयोगों के जरिए यह साबित कर दिया कि जीवन स्वतः उत्पन्न नहीं होता। इस प्रयोग ने जर्म थ्योरी की नींव रखी और बाद में उन्होंने रसायन विज्ञान में भी डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की। पाश्चर का विज्ञान केवल प्रयोगशालाओं तक सीमित नहीं था, उन्होंने इसे आम लोगों के फायदे से जोड़ा। उन्होंने सिद्ध कर दिया कि कई बीमारियां सूक्ष्मजीवों के कारण होती हैं। इस आधार पर उन्होंने दूध और अन्य तरल पदार्थों को सुरक्षित बनाने के लिए पाश्चराइजेशन की प्रसिद्ध विधि विकसित की। 19वीं सदी के मध्य में फ्रांस का रेशम उद्योग बर्बाद होने की कगार पर था क्योंकि सिल्कवर्म्स (रेशम के कीड़े) मर रहे थे। पाश्चर ने खोज निकाला कि यह एक सूक्ष्मजीवों से होने वाली बीमारी है। उन्होंने सुझाव दिया कि केवल स्वस्थ कीड़ों के अंडों का इस्तेमाल किया जाए, जिससे पूरा उद्योग बच गया। पाश्चर के जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि 1885 में सामने आई। फ्रांस में एक 9 साल के लड़के को पागल कुत्ते ने काट लिया। उस समय रेबीज का मतलब मौत थी। पाश्चर ने मानवता के लिए एक बड़ा जोखिम उठाने का फैसला किया। उन्होंने डरते हुए उस बच्चे को अपने द्वारा विकसित रेबीज का टीका लगा दिया। परिणाम चमत्कारिक रहा बच्चा पूरी तरह ठीक हो गया। यह इतिहास में पहली बार था जब रेबीज के टीके से किसी इंसान की जान बचाई गई थी। इस घटना ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया और पाश्चर को दुनिया में अमर कर दिया। लुई पाश्चर के सम्मान में 1888 में पेरिस में पाश्चर संस्थान की स्थापना की गई। आज यह संस्थान दुनिया भर में मशहूर है। इसका मुख्य उद्देश्य संक्रामक रोगों जैसे रेबीज, टीबी, डिप्थीरिया और पोलियो पर शोध करना और उनके इलाज खोजना है। उनके वैज्ञानिक सफर को इन प्रमुख तारीखों से समझा जा सकता है। 1843 पेरिस के इंस्टिट्यूट ऑफ एडवांस एजुकेशन में प्रवेश लिया। 1847 रसायन विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। 1857 किण्वन (फर्मेंटेशन) पर शोध प्रकाशित कर सूक्ष्मजीवों की भूमिका सिद्ध की। 1861 प्रयोगों द्वारा स्तः उत्पत्ति के सिद्धांत को गलत साबित किया। 1867 पाश्चराइजेशन विधि को वैज्ञानिक रूप से स्थापित किया। 1881 में एन्थ्रेक्स रोग के लिए सफल टीके का प्रदर्शन किया। लुई पाश्चर का पूरा जीवन मानव कल्याण के लिए था। सिराज/ईएमएस 27दिसंबर25