ज़रा हटके
28-Dec-2025
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बीजिंग,(ईएमएस)। चीन में रहने वाले करीब सवा दो करोड़ मुसलमानों में सबसे प्रमुख आबादी उइगर समुदाय की है। अपनी विशिष्ट संस्कृति और धार्मिक पहचान के लिए जाने जाने वाले उइगर मुसलमानों पर चीनी सरकार की सख्त निगरानी और उत्पीड़न की खबरें लंबे समय से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय रही हैं। लेकिन अब स्थिति और भी गंभीर हो गई है, क्योंकि चीन के भीतर दमन झेलने के बाद विदेशों में शरण लेने वाले उइगरों पर भी वापसी का खतरा मंडराने लगा है। चीन अब उन देशों पर दबाव बना रहा है जहाँ ये लोग शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं। शिनजियांग प्रांत में रहने वाले उइगरों पर चीन की पाबंदियां अत्यंत कड़ी हैं। यहाँ मस्जिदों के पारंपरिक डिजाइन से लेकर धार्मिक रीति-रिवाजों के पालन तक पर रोक है। चीनी संस्कृति थोपने के नाम पर साल 2017 से 2019 के बीच लगभग 10 लाख उइगरों को डिटेंशन कैंप (नजरबंदी शिविरों) में रखा गया, जहाँ उनसे जबरन मजदूरी कराने के गंभीर आरोप लगे। हालांकि, कड़ी सुरक्षा और निगरानी के बावजूद कई उइगर चीन से निकलने में सफल रहे और उन्होंने अमेरिका, यूरोप तथा तुर्की जैसे देशों में शरण ली। लेकिन अब चीन के आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव के कारण ये सुरक्षित ठिकाने भी उनके लिए असुरक्षित होते जा रहे हैं। हालिया रिपोर्टों के अनुसार, तुर्की, जो कभी उइगरों के लिए सबसे सुरक्षित देश माना जाता था, अब बैकफुट पर नजर आ रहा है। आरोप है कि वहाँ रह रहे उइगरों से जबरन चीन वापसी के फॉर्म भरवाए जा रहे हैं। इसी तरह, थाईलैंड ने भी हाल ही में 40 उइगरों को चीन वापस भेज दिया, जिससे उनकी सुरक्षा को लेकर अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने गहरी चिंता व्यक्त की है। चीन दुनिया भर में यह दुष्प्रचार कर रहा है कि उइगरों को वापसी पर कोई खतरा नहीं है, ताकि उन पर अंतरराष्ट्रीय शरणार्थी नीतियां लागू न हों। पश्चिमी देशों, विशेषकर अमेरिका और यूरोप की बदलती प्रवासी और शरणार्थी नीतियों ने भी उइगरों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। कई देश अब चीन के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों और व्यापारिक हितों को प्राथमिकता दे रहे हैं, जिसके कारण उइगर शरणार्थियों को स्थायी निवास मिलने में कठिनाई हो रही है। यदि वैश्विक स्तर पर उइगरों के संरक्षण के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले समय में बड़ी संख्या में इन शरणार्थियों को वापस चीन भेजा जा सकता है, जहाँ उन्हें फिर से वही उत्पीड़न और शिविरों की अमानवीय स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। वीरेंद्र/ईएमएस/28दिसंबर2025