भारतीय खुफिया एजेंसियों के लिए बढ़ी चिंता नई दिल्ली,(ईएमएस)। भारत में आतंकवाद के बदलते स्वरूप ने सुरक्षा एजेंसियों की चिंता बढ़ाई है। हालिया इनपुट्स मिले हैं कि अल-कायदा जैसे आतंकी संगठन अब पारंपरिक हिंसक हमलों के बजाय एक नए, डिजिटल और वैचारिक मॉडल पर काम कर रहे हैं। इस रणनीति का उद्देश्य तात्कालिक दहशत फैलाने से अधिक लंबे समय में विचारधारा के द्वारा प्रभाव बनाना है। दरअसल दिल्ली में हुए आतंकी हमले के बाद “वाइट कॉलर मॉड्यूल” पर फोकस बढ़ा है। इसी कड़ी में पुणे एंटी-टेररिज्म स्क्वाड द्वारा अक्टूबर 2025 में सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल जुबैर इलियास हंगरगेकर की गिरफ्तारी को एक अहम केस माना जा रहा है। जांच एजेंसियों के मुताबिक, जुबैर अल-कायदा और उसके दक्षिण एशियाई संगठन से वैचारिक रूप से जुड़ा हुआ था। उसके डिजिटल फुटप्रिंट—जैसे एन्क्रिप्टेड कम्युनिकेशन, संग्रहित प्रोपेगेंडा सामग्री और क्लोज्ड ऑनलाइन ग्रुप्स में सक्रियता ने साफ कर दिया हैं कि कट्टरपंथ अब ज्यादा “ऑनलाइन और छिपा हुआ” हो चुका है। इस मामले में सबसे बड़ी चिंता की बात यह हैं कि आरोपी का कोई आपराधिक इतिहास नहीं था। वह पढ़ा-लिखा, पेशेवर और सामाजिक रूप से स्थापित व्यक्ति था। यही पैटर्न हाल के अन्य मामलों में भी दिखा है, जिसमें डॉक्टर और दूसरे सम्मानित पेशों से जुड़े लोग शामिल हैं। खुफिया एजेंसियों का मानना है कि अल-कायदा जानबूझकर इसतरह लोगों को टारगेट कर रहा है जिन पर संदेह कम होता है, जो समाज में आसानी से घुले-मिले रहते हैं और जिनकी बातों को विश्वसनीयता के साथ सुना जाता है। डिजिटल प्लेटफॉर्म इस नए मॉडल की रीढ़ हैं। स्मार्टफोन और इंटरनेट की बढ़ती पहुंच का फायदा उठाकर आतंकी संगठन अपनी विचारधारा फैलाते हैं। इस प्रक्रिया में खुली हिंसा नहीं होती, बल्कि धीरे-धीरे नैरेटिव गढ़ा जाता हैं, शिकायतें उभारी जाती हैं। खुफिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अल-कायदा भारत को फिलहाल तात्कालिक ऑपरेशनल थिएटर की बजाय एक लॉन्ग-टर्म वैचारिक मंच के रूप में देख रहा है। यहां उद्देश्य हमदर्द तैयार करना, सहानुभूति पैदा करना और इसतरह के लोग विकसित करना है जो बाहरी तौर पर “नॉर्मल” दिखें, लेकिन अंदरूनी तौर पर कट्टर विचारधारा से जुड़े हों। यह रणनीति संगठन को जल्दी पकड़ में आने से बचाती है और समय के साथ गहरी पैठ बनाने में मदद करती है। आशीष दुबे / 28 दिसंबर 2025