लेख
28-Dec-2025
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वैदिक विज्ञान वेदों और प्राचीन भारतीय ग्रंथों में निहित ज्ञान का एक व्यापक क्षेत्र है, जिसमें आध्यात्मिकता, दर्शन, खगोल विज्ञान, गणित, चिकित्सा (आयुर्वेद), और भौतिकीवेदों और प्राचीन भारतीय ग्रंथों में निहित ज्ञान का एक व्यापक क्षेत्र है, जिसमें आध्यात्मिकता, दर्शन, खगोल विज्ञान, गणित, चिकित्सा (आयुर्वेद), और भौतिकी जैसे विषय शामिल हैं, जो सृष्टि के नियमों और चेतना के गहरे सिद्धांतों पर आधारित हैं;वैदिक विज्ञान में वैदिक गणित की एक प्राचीन भारतीय प्रणाली है, जिसे 20वीं सदी की शुरुआत में जगद्गुरु श्री भारती कृष्ण तीर्थ जी ने पुनर्जीवित किया और 16 मूल सूत्रों और 13 उप-सूत्रों के माध्यम से सरल और तेज़ गणना के तरीके प्रदान किए, जिससे मानसिक गणित की क्षमता बढ़ती है और अंकगणित, बीजगणित, ज्यामिति जैसी जटिल समस्याओं को आसानी से हल किया जा सकता है, जो समय बचाने और एकाग्रता बढ़ाने में मददगार है। वैदिक विज्ञानजिसमें आध्यात्मिकता, दर्शन, खगोल विज्ञान, गणित, चिकित्सा (आयुर्वेद), और भौतिकीवेदों और प्राचीन भारतीय ग्रंथों में निहित ज्ञान का एक व्यापक क्षेत्र है, जिसमें आध्यात्मिकता, दर्शन, खगोल विज्ञान, गणित, चिकित्सा (आयुर्वेद), और भौतिकी जैसे विषय शामिल हैं, जो सृष्टि के नियमों और चेतना के गहरे सिद्धांतों पर आधारित हैं, पुस्तक के लेखक- डॉ दया शंकर त्रिपाठी (एम.एससी., पीएच.डी., डिप्लोमा इन योगा) है पुस्तक का प्रकाशन - वैदिक विज्ञान केन्द्र, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी द्वारा किया गया है वैदिक विज्ञान शाश्वत है। अखिल ब्रह्मांड में जो कुछ भी है और हो सकता है, वह हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा पहले ही किसी न किसी रूप में श्रुति एवं ज्ञान परम्परा में लिपिबद्ध कर मानव कल्याण हेतु प्रस्तुत किया गया है। वैदिक विज्ञान और आधुनिक विज्ञान के मध्य संबंध स्थापित करने के उद्देश्य से काशी हिंदू विश्वविद्यालय में वैदिक विज्ञान केंद्र की स्थापना की गई है, जो इस दिशा में कार्यरत है। प्रस्तुत पुस्तक वैदिक एवं पौराणिक साहित्य में विज्ञान हमारे देश के विभिन्न वैदिक और पौराणिक साहित्य में उपलब्ध कुछ विशिष्ट मंत्रों और उस लोगों का संग्रह है जो आज के परिपेक्ष में वैज्ञानिक समुदाय के लिए पठन और चिंतन-मनन के लिए प्रेरित करने वाला है। यह सब इस बात का प्रमाण है कि हमारा अतीत कितना समृद्ध और प्रतिभाशाली रहा है। इस पुस्तक को तैयार करने का उद्देश्य हमारे वैज्ञानिकों, चिकित्सकों और संस्कृत साहित्य से इधर शिक्षाविदों हेतु अध्ययन और चिंतन के लिए है जो यह बतलाता है कि हमारे ऋषि-मुनियों ने जनहित में क्या-क्या और किस-किस प्रकार के कार्य किए हैं। उन्होंने संपूर्ण धरा पर विद्यमान जितनी भी वनस्पतियां मिल सकीं उनका अध्ययन और तर्कसंगत नामकरण तथा उनकी उपयोगिता भी लिपिबद्ध की। उनके द्वारा रोगों का निदान स्वस्थ रहने के लिए जीवनचर्या आदि का भी वर्णन किया गया है। इनके साथ ही उन्होंने मानव शरीर का विधिवत अध्ययन कर इस प्रकार से वर्णन किया है कि आज का आधुनिक विज्ञान भी उन्हें पढ़ कर हतप्रभ हो जाता है और उन्हें गलत भी सिद्ध नहीं कर सकता। यह पढ़कर आश्चर्य होता है कि उन्होंने शरीर में हड्डियों की संख्या, नाड़ियों और धमनियों के संख्या का सटीक विवरण प्रस्तुत किया है। हमारे ऋषियों द्वारा पृथ्वी पर ऋतु, वर्षा, पंचमहाभूत आदि का विस्तृत विवरण दिया गया है जो मंत्रों और श्लोकों के माध्यम से लिपिबद्ध हैं। दूसरी तरफ हमारे वेदों और पौराणिक ग्रंथों में अखिल ब्रह्मांड, सूर्य्, पृथ्वी, उनका घूर्णन, भ्रमण और ग्रहण आदि का भी वर्णन मिलता है। ऋग्वेद में पृथ्वी के आकार का वर्णन दिया गया है, उसमें लिखा है कि पृथ्वी गोल है तथा सूर्य के आकर्षण पर टिकी हुई है। शतपथ में जो भी परिमंडल रूप है वह भी पृथ्वी के गोलाकार आकृति का प्रतीक है। हमारे ऋषि-मुनियों को पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा करने का भी ज्ञान था। यजुर्वेद में लिखा है कि पृथ्वी जल सहित सूर्य के चारों ओर घूमती है। वेद में सूर्य को वृघ्न कहते हैं अर्थात् पृथ्वी से सैकड़ों गुना बड़ा व करोड़ों कोस दूर। ऋग्वेद में लिखा है कि सूर्य की सात किरणें हैं जो दिन को उत्पन्न करती हैं। आधुनिक विज्ञान ने भी प्रिज्म के प्रयोग से सूर्य की किरणों के साथ रंगों को अलग-अलग करके साबित कर दिया है। यह भी लिखा है कि जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है तो सूर्य पूरी तरह से स्पष्ट दिखाई नहीं देता। चंद्रमा द्वारा सूर्य को घेरकर अंधकार पैदा कर देना ही सूर्य ग्रहण कहलाता है। यजुर्वेद में सूर्य की ऊर्जा के बारे में लिखा है अपां रसम् उदवयसं, इस मंत्र का अर्थ है जल का सार भाग अर्थात हाइड्रोजन और उदवयसं शब्द का अर्थ है ऊर्जा या गैस। आधुनिक विज्ञान भी मानता है कि पृथ्वी और सूर्य पर सबसे अधिक मात्रा में विद्यमान तत्व हाइड्रोजन ही है। हमारे सूर्य से जो ऊर्जा चारों तरफ विसर्जित होती है और जिस का कुछ अंश हमारी धरती को प्राप्त होता है वह हाइड्रोजन और हीलियम की क्रिया-प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप प्राप्त होता है। ऋग्वेद में बिना ईंधन उड़ने वाले विमान का भी वर्णन किया गया है जो विमान शास्त्र के अन्तर्गत आता है। इस पुस्तक में ऐसे भी संदर्भ दिए गए हैं जिसमें यक्ष्मा रोग से मुक्ति, श्वेत कुष्ठ निवारक औषधि, शल्य कार्य द्वारा प्रसव एवं लौह शलाका द्वारा मूत्रावरोध को दूर करने का वर्णन है। अथर्ववेद में कुष्ठ रोग के निवारण हेतु कुष्ठा औषधि का जिक्र है, और कुष्ठा औषधि के प्राप्तिस्थल का भी वर्णन है। आधुनिक विज्ञान ने भी कुष्ठा की पहचान की है। इसकी और भी कई प्रजातियां खोजी गई हैं। सूर्य रश्मि द्वारा चिकित्सा, जल और वायु, आहार आदि जीवनोपयोगी संदर्भों के विवरण भी दिए गए हैं। हमारे शास्त्रों में रसायन चिकित्सा के माध्यम से च्यवन ऋषि को जरा अवस्था (बुढ़ापा) से मुक्ति दिलाने का वर्णन है। एक स्थान पर दधीचि को अश्व का सिर लगाकर मधु विद्या पढ़ने का वर्णन इस प्रकार मिलता है- भगवान इंद्र द्वारा महर्षि दधीचि को मधु विद्या इस शर्त पर पढ़ाया गया कि यदि वह दूसरे को पढ़ाएंगे तो उनका सिर काट लिया जाएगा। तब अश्वनीकुमार ने दधीचि ऋषि के सिर को काटकर अश्व का सिर लगा दिया और उनसे मधु विद्या पढ़ ली। इसके बाद जब भगवान इंद्र को ज्ञात हुआ तो उन्होंने दधीच के सिर को काट कर अपना शर्त पूरा कर लिया, बाद में अश्विनीकुमार ने दधीचि का पहला वाला सिर जोड़कर उन्हें पूर्व की भांति कर दिया। इस पुस्तक में एक स्थान पर वायु का वर्णन किया गया है जिसमें बताया गया है कि वायु दो प्रकार के होते हैं और इन्हें देवदूत भी करते हैं। वायु का पहला प्रकार समुद्र के ऊपर चलता है और दूसरा पृथ्वी के ऊपर। समुद्र का वायु बलदाता है, जबकि पृथ्वी का वायु हमारे विकारों को अपने साथ ले जाता है। इस प्रकार के अनेक मंत्र हमारे वैदिक और पौराणिक साहित्य में मिल जाएंगे। आज आवश्यकता है कि ऐसे संदर्भों को खोज-खोज कर उनमें छिपे वैज्ञानिक तथ्यों को आधुनिक संदर्भ में प्रस्तुत किए जाएं, जिससे हमारे ज्ञान विज्ञान समृद्धि अतीत पर गर्व करने का मार्ग प्रशस्त हो सके और हमारा मानव समाज लाभान्वित हो सकें। इसी पर आधारित वैदिक विज्ञान की पुस्तक पुस्तक का नाम- वैदिक एवं पौराणिक साहित्य में विज्ञान है जिसके लेखक- डॉ दया शंकर त्रिपाठी ने पुस्तक में पूर्ण जानकारी दि हैपुस्तक के संपादन प्रोफेसर उपेन्द्र कुमार त्रिपाठी, समन्वयक, वैदिक विज्ञान केन्द्र, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी द्वारा किया गया व प्रकाशन - वैदिक विज्ञान केन्द्र, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी द्वारा किया गया है लेखक ने लिखा है कि हमारे शास्त्रों में इस प्रकार के अनेक वर्णन मिल जाएंगे, जिन्हें एक साथ प्रस्तुत करना असंभव है। उनका सुझाव है कि जिन्हें इस तरह के संदर्भ में रुचि हो और विस्तार से पढ़ना चाहते हों, उन्हें किसी शास्त्र के जानकार व्यक्ति मिलकर पढ़ने और समझने का प्रयास करना चाहिए औरपुस्तक को उ.प्र. संस्कृत संस्थान, लखनऊ द्वारा वर्ष 2021 के अन्तर्गत विविध पुरस्कार श्रेणी में पुरस्कृत करने की घोषणा हुई जिसे शीघ्र ही लखनऊ में सम्मानित किया गया ।इस पुस्तक का संपादन- प्रोफेसर उपेन्द्र कुमार त्रिपाठी, समन्वयक, वैदिक विज्ञान केन्द्र, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी द्वारा किया गया,मूल्य-का मूल्य ₹200/- मात्र है इसका आईएसबीएन- न 978-81-951360-6-3 है और पृष्ठों की कुल संख्या 100 है व - रंगीन आवरण अच्छा व सजिल्द है । .../ 28 ‎दिसम्बर /2025