गुवाहाटी(ईएमएस)। असम में बांग्लादेश के लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है। यहां इनकी आबादी करीब 40 प्रतिशत हो चुकी है। जिस दिन ये आबादी 50 प्रतिशत का आकड़ा पार कर लेगी उसी दिन से बांग्लादेश का हिस्सा बनाने के प्रयास शुरु हो जाएंगे। यह आशंका असम के मुख्यमंत्री हेमंत विस्वा सरमा ने राज्य की बदलती जनसांख्यिकी को लेकर एक गंभीर चेतावनी जारी की है। भाजपा की राज्य कार्यकारिणी की बैठक के दौरान मुख्यमंत्री ने कहा कि इस स्थिति को असम की अस्मिता और संस्कृति के लिए एक बड़ा खतरा पैदा हो सकता है। मुख्यमंत्री सरमा ने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि वर्तमान में बांग्लादेशी मूल के लोगों की आबादी 40 प्रतिशत को पार कर चुकी है और यह लगातार बढ़ रही है। उन्होंने कहा, आज हम अपनी आंखों से इस वास्तविकता को देख रहे हैं। यदि यह आबादी 50 प्रतिशत से अधिक हो गई, तो असम के अस्तित्व पर संकट मंडराने लगेगा। बांग्लादेश में हाल ही में हुई दीपू दास की मॉब लिंचिंग का जिक्र करते हुए मुख्यमंत्री ने असम के लोगों को आगाह किया। उन्होंने कहा कि अगर आज वहां ऐसी घटनाएं हो रही हैं, तो असम के लोग कल्पना कर सकते हैं कि अगले 20 वर्षों में यहां की स्थिति क्या होगी। उन्होंने घुसपैठियों की वफादारी पर भी सवाल उठाते हुए पूछा कि यदि भारत और बांग्लादेश के बीच युद्ध होता है तो ये लोग किसका साथ देंगे?मुख्यमंत्री ने जनगणना के पुराने आंकड़ों और भविष्य के अनुमानों को साझा करते हुए बताया कि 2011 में मुस्लिम आबादी 34 प्रतिशत थी, जिसमें बांग्लादेशी मूल के मुस्लिम 31 प्रतिशत और स्थानीय मुस्लिम मात्र 3 प्रतिशत थे। 2027 तक यह संख्या बढ़कर 40 प्रतिशत होने का अनुमान है। स्वदेशी आबादी गिरकर 60 प्रतिशत पर आ गई है और इसमें और गिरावट की आशंका है। उन्होंने भावुक होते हुए कहा कि उनके जीवनकाल में घुसपैठियों की आबादी 21 प्रतिशत से बढ़कर 40 प्रतिशत हो गई है और उनके बच्चों के समय तक असमिया समुदाय की आबादी सिमटकर मात्र 30 प्रतिशत रह सकती है। आगामी विधानसभा चुनावों को मुख्यमंत्री ने महज एक राजनीतिक मुकाबला न मानकर सभ्यता की लड़ाई करार दिया। उन्होंने कांग्रेस पर दशकों तक तुष्टिकरण की राजनीति करने का आरोप लगाया, जिसके कारण राज्य में एक नई सभ्यता विकसित हो गई है। इनकी संख्या अब लगभग 1.5 करोड़ तक पहुंच चुकी है। सरमा ने कहा कि यह लड़ाई अपनी भूमि (माटी), पहचान (जाति) और आधार (भेटी) को बचाने की है। उन्होंने भाजपा को असम के लिए उम्मीद की आखिरी किरण बताते हुए कहा कि पार्टी राज्य को घुसपैठियों के कारण पैदा होने वाले अंधेरे के गर्त में गिरने से बचाएगी। मुख्यमंत्री ने असम को शंकर-अजान (वैष्णव संत शंकरदेव और सूफी संत अजान फकीर) की धरती बताने वाली धारणा को सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि असम केवल शंकर-माधव (शंकरदेव और उनके शिष्य माधवदेव) की भूमि है। उन्होंने कहा कि अजान फकीर के साथ महापुरुषों की तुलना करके हमारी सांस्कृतिक पहचान को कमजोर करने की कोशिशों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। अपने संबोधन के अंत में उन्होंने अहोम सेनापति लाचित बोरफुकन का स्मरण किया, जिन्होंने बीमार होने के बावजूद मुगलों को हराया था। वीरेंद्र/ईएमएस/28दिसंबर2025